स्थायी सिंधु आयोग की बैठक को निलंबित करना
क्या होगा असर
सिंधु जल समझौते से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए तीन स्तरीय व्यवस्था है। इसके अंतर्गत पहली बार विवाद को आयोग की बैठक में उठाया जाता है। अगर समाधान नहीं हुआ, तो इसको विश्व बैंक की ओर से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ को भेजा जाएगा। इसके बाद भी हल नहीं निकलने की दशा में इसको यूएन की मध्यस्थता अदालत को भेजने का प्रावधान है। ऐसे में बिना पहले चरण से गुजरे मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में पाक इससे जुड़े विवादित मुद्दे को आगे नहीं ले जा सकेगा और उसे मात खानी पड़ेगी।
यह प्रोजेक्ट समग्र वार्ता का हिस्सा था, लेकिन मनमोहन सरकार ने खुद ही इसे खत्म कर दिया। अब पाक के विरोध की परवाह किए बिना मोदी सरकार ने पूर्व सरकार के इस फैसले की समीक्षा करने के संकेत दिए हैं। मतलब साफ है कि अब तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू किया जाएगा।
क्या होगा प्रभाव
तुलबुल परियोजना को दोबारा से शुरू करने से झेलम नदी के जल पर भारत का नियंत्रण हो जाएगा, जिसका असर पाकिस्तान की कृषि पर पड़ेगा। साथ ही पीओके और पाकिस्तान बाढ़ की चपेट में आ जाएगा। इससे पाकिस्तान की तिहरी नहर परियोजना के लिए मुश्किल पैदा हो जाएगी। यह नहर परियोजना झेलम-चेनाब को अपर बारी दोआब नहर से जोड़ती है।
अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स
केंद्र सरकार ने पश्चिमी नदियों के जल के इस्तेमाल की निगरानी करने के लिए अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स स्थापित किया है। इस संधि के तहत भारत बिना किसी प्रतिबंध के रावी, ब्यास और सतलज नदी के जल का इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि पश्चिमी नदियों का महज 20 फीसदी जल ही उपयोग कर सकता है। ऐसे में भारत घरेलू उपयोग, बिजली बनाने और कृषि के लिए पूर्वी नदियों के जल के इस्तेमाल को अनुमति दे सकता है।
क्या होगा असर
भारत 1960 के समझौते के तहत झेलम, चिनाब और सिंधु नदी का पूरा जल इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे में भारत इन नदियों के जल का इस्तेमाल अपने उपयोग में करेगा। इससे पाकिस्तान को पानी मिलने में दिक्कत आएगी।