जून, 2013…ये वो महीना था जब उत्तराखंड एक ऐसी आपदा का सामना करने वाला था, जिसका उसे हरगिज अंदाजा न था. इस आपदा का नाम ‘केदारनाथ त्रासदी’ था. इस त्रासदी में हजारों लोग काल के गाल में समा गए. आज भी सैकड़ों लोग लापता हैं. दरअसल हर साल बरसात का मौसम आते ही उत्तराखंड सहम सा जाता है. इस मौसम में पहाड़ी इलाकों में बादल फटना, बाढ़ आना बड़ी आम सी बात हो जाती है.शरद यादव के बदलते तेवर पर नीतीश हुए नाराज, JDU से कर सकते हैं बाहर…
उत्तराखंड की खूबसूरत वादियां सदियों से इस समस्या से जूझ रही हैं. इस साल भी पिथौरागढ़, धारचूला, अल्मोड़ा समेत घाटी से सटे कई इलाके बुरी तरह बाढ़ की चपेट में घिरे रहे. स्थिति सामान्य होने की राह ताकते हुए लोगों के माथे पर बल पढ़ने लगे. अभी भी बारिश के हालातों से उत्तराखंड पूरी तरह बच नहीं पाया है. समूचे उत्तर भारत में भारी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा हो गई. इससे प्रभावित अन्य राज्य हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश हैं. बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान हुआ और बहुत से लोग बाढ़ में बह गए और हजारों लोग बेघर हो गए. कई लोग इस आपदा की चपेट में आ गए.
मंगलवार को भी पिथौरागढ़ के बरम क्षेत्र में बादल फट गया. बादल फटने से भारी नुकसान की आशंका है. बादल फटने से एक मोटर पुल बह गया है. एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें स्पॉट पर पहुंच गई हैं. भारी बारिश और भूस्खलन की भी खबर है.
पहाड़ों पर हुई बारिश के चलते रामनगर के ढेला बैराज से पानी छोड़ने के कारण काशीपुर में बाढ़ आ गई. पानी के अधिक बहाव के कारण इलाके की कई बस्तियां जलमग्न हो गईं और खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा. रामनगर के मालधनचौड़ स्थित ढेला बैराज से मंगलवार रात छोड़े गए 35 हजार क्यूसेक पानी से नदी में बाढ़ आ गई. यहां नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, जो स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. प्रशासन ने इस दौरान लोगों को यात्रा आदि से बचने की हिदायत दी है. फिलहाल उत्तराखंड सरकार पूरी मुस्तैदी से इस आपदा से निपटने की बात कह रही है. गौरतलब है कि हर साल प्रशासन बाढ़ से निपटने के दावे तो खूब करता है, लेकिन उन दावों की हकीकत आपदा के नालों में बहती हुई नजर आती है.