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अगर इस जन्माष्टमी को बनाना है 'यादगार' तो जरुर जाये मुंबई नगरिया...

अगर इस जन्माष्टमी को बनाना है ‘यादगार’ तो जरुर जाये मुंबई नगरिया…

यूँ तो मथुरा और वृन्दावन कृष्णा-कन्हैया की नगरी मानी जाती है, तो जाहिर सी बात है की जन्माष्टमी का उत्सव भी यहाँ बड़े ही जोरो शोरो से मनाया जाता है. लेकिन जन्माष्टमी उत्सव में मुंबई नगरीया भी कुछ कम नहीं हैं, तो यदि इस जन्माष्टमी पर आप कही घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो इतना सोचिये मत बस मुंबई की ओर निकल जाईये…… अब आप सोच रहे होंगे की मथुरा का जन्माष्टमी उत्सव छोड़कर आप मुंबई क्यों जाए तो इतना सोचिये मत, माना की मथुरा की जन्माष्टमी सबसे अच्छी होती है.अगर इस जन्माष्टमी को बनाना है 'यादगार' तो जरुर जाये मुंबई नगरिया...मानसून में ‘जन्नत’ देखनी है तो एक बार भारत की इन 5 जगहों पर जरुर जायें घूमने…

लेकिन मुंबई जैसी दहीहांडी आपको कही और देखने को नहीं मिलने वाली. जी हाँ…. अगर आप इसे देखना चाहते है तो मुंबई की गलियों में निकल पड़िये जहाँ दहीहांडी का लुत्फ़ तो आप उठा ही लेंगे, और साथ ही समुद्र किनारे मानसून का मजा भी ले सकते हैं. वैसे तो दहीहांडी का उत्सव पुरे देश भर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं, लेकिन यह त्यौहार महाराष्ट्र के कुछ प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक हैं. सिर्फ आम जन ही नहीं बल्कि बॉलीवुड की हस्तियाँ भी जोरो-शोरो से यह त्यौहार मनाती हैं.

दहीहांडी का पर्व जन्माष्टमी के दूसरे दिन मनाया जाता हैं.. इस दिन हांडी में मक्खन भरकर ऊंचाई पर तार से बाँध दी जाती हैं, जिसके बाद बहुत सी टोलियो में मटकी फोड़ की प्रतियोगिता होती हैं. लड़को की टोली एक बड़ा सा पिलर बना कर हांडी फोड़ने का प्रयास करती हैं. यह उत्सव देखने के लिए दर्शको की भीड़ जमा हो जाती है जो प्रतियोगियों का उत्साह भी बढ़ाती है साथ ही जोर-जोर से ‘गोविंदा आला रे आला’ भी गाती हैं.

प्रतियोगिता को मुश्किल करने के लिए प्रतोयोगियो पर पानी की बौछार भी की जाती है, तमाम मुश्किलों को पार करके जो भी टोली हांडी को फोड़ देती है उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है. आज के समय में तो लड़किया भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने लगी है. खास बात तो यह है कि जो भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस हर युवक-युवती को गोविंदा कहा जाता है.

वैसे तो आप सभी यह जानते है कि, भगवान कृष्णा बचपन में बहुत शैतान थे और मक्खन तो उन्हें बचपन में काफी प्रिय था सभी के घर से वह मक्खन चुरा कर खाया भी करते थे, इसलिए अक्सर उनकी माता यशोदा उनसे मक्खन बचाने के लिए हांडी को ऊपर रख देती थी लेकिन नन्हे बाल गोपाल को मक्खन खाना होता था…. तो वह घर में लटकी दही की हांडी को फोड़ कर बड़े मजे से खुद भी मक्खन खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे, यही वजह है की उन्हें ‘माखनचोर’ भी कहा जाता है.

दहीहांडी के इस उत्सव में सभी लोग इतने उत्साही होते है की वह बिना किसी परवाह के मस्ती-मस्ती में अपनी जान जोखिम में डाल देते है. इसलिए अब सरकार ने दहीहांडी प्रतियोगिताओ के लिए नए-नए नियम लागु कर दिए है जिसमे महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने दहीहांडी को लटकाने की उच्चत्तम सीमा 20 फीट कर दी है साथ 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चो को दहीहांडी में भाग लेने पर भी रोक लगा दी है.

दही हांडी का उत्सव उल्लास के साथ-साथ भगवान श्री कृष्णा की एक सीख भी देता है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं।

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