केंद्र सरकार ने अखिलेश सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति के छात्रों को बांटे गए 7 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के वजीफे की जांच का आदेश दिया है। भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) की एक टीम ने बृहस्पतिवार को शासन के अफसरों और समाज कल्याण निदेशालय के अधिकारियों से 15 दिन में हर जिले का रिकॉर्ड मांगा है।अभी-अभी: रक्षा मंत्री से मिलने पहुचें आर्मी चीफ, चीन-पाक सीमाओं का बताया सूरत-ए-हाल…
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक बांटी गई छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति का ऑडिट करने का फैसला किया है। प्रदेश में दो लाख रुपये तक सलाना आमदनी वाले परिवारों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के साथ-साथ उनकी शुल्क की भरपाई का प्रावधान है। पिछली सपा सरकार के कार्यकाल में इसके तहत अनुसूचित जाति के छात्रों को 7045 करोड़ रुपये की राशि वितरित की थी।
अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति एवं शुल्क की प्रतिपूर्ति में बड़े घपलों की शिकायतें अक्सर ही होती रही हैं। तमाम संस्थानों के मामले में ये शिकायतें सही मिलीं। पाया गया कि पीजीडीएम (पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट)जैसे ज्यादा फीस वाले कोर्सेज में बड़ी संख्या में फर्जी छात्र दिखाकर संस्थानों और अफसरों ने योजना के तहत दी गई राशि हड़प ली।
केंद्र सरकार सख्त : कैग ने सभी जिलों का रिकॉर्ड मांगा
7045 करोड़ रुपये हुए थे खर्च
3305 करोड़ राज्य सरकार का खर्च
3740 करोड़ केंद्र ने किया व्यय