मध्य प्रदेश की पंचायतों को ई-पंचायत बनाने के लिए कंप्यूटर, इनवर्टर, प्रिंटर और तमाम दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लाए गए. केंद्र सरकार ने इसके लिए 220 करोड़ रुपए खर्च किए. लेकिन बिना इंटरनेट कनेक्शन सिर्फ कंप्यूटर-प्रिंटर आ जाने से ई-पंचायत की योजना ख्वाब से ज्यादा कुछ नहीं है.….तो इसलिए अमित शाह के इस कदम से BJP के नेता के छुटे पसीने…..
इंटरनेट की आस में ग्राम पंचायतें
ई-पंचायत के लिए जरूरी था कि हर ग्राम पंचायत में इंटरनेट पहुंचे. मध्य प्रदेश में 22 हजार ग्राम पंचायते हैं, लेकिन उनमें से एक फीसदी में ग्राम पंचायतों में अभी इंटरनेट नहीं पहुंचा है.
अधिकारी घर उठा ले गए उपकरण
बिना इंटरनेट के कंप्यूटर, प्रिंटर, टीवी वगैरह सब खरीद लिए गए और जब काम हुआ नहीं तो किसी ग्राम पंचायत में रखे कंप्यूटर, प्रिंटर, स्कैनर वगैरह खराब हो गए तो कहीं से चोरी हो गए. कहीं अधिकारी या पंचायत के सदस्य ही उपकरण घर उठा ले गए.
ढहने की स्थिति में ई-भवन
दरअसल, ई-पंचायतों के जरिए सब पंचायतों को आपस में जोड़ने की योजना थी. ई-पंचायत बनाने के लिए खास ई-भवन भी बनाना था. कई जगह ई-भवन बनाए भी गए, जो अब ढहने की स्थिति में आ गए हैं. कई जगह भवन बन ही नहीं पाए, तो कंप्यूटर भी नहीं लगे. जिन पंचायतों में कंप्यूटर-प्रिंटर वगैरह बचे भी हैं, उनकी वारंटी खत्म हो चुकी है.
220 करोड़ रुपये का खर्च
गौरतलब है कि लघु उद्योग निगम ने केंद्रीयकृत टेंडर के जरिए कंप्यूटर की खरीद की थी और इस पूरी खरीद पर करीब 220 करोड़ रुपये का खर्च आया था. यूं सरकार भी मान रही है कि कई जगह कंप्यूटर अधिकारियों के घरों में पहुंच चुके हैं, लेकिन यह कहने से सरकार नहीं चूक रही कि पंचायतों में काम हो रहा है.
इन दो सवालों का क्या है जवाब?
-ई पंचायतों के नाम पर करीब 220 करोड़ रुपए क्या कूड़े में चले गए?
-और अगर फिजूलखर्ची हुई तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
सच यही है कि ई-पंचायतें बनीं नहीं और 200 करोड़ रुपए से ज्यादा स्वाहा हो गए. अब आप इसे घोटाले कहिए या ऊं शांति शांति कहते हुए शांत हो जाइए.