लंबे समय से फांसी की सजा के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में एक याचिका भी दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि जीवन की ही तरह मृत्यु भी सम्मानजनक होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दायर इस याचिका में अदालत से यह दरख्वास्त की गई है सजा-ए-मौत के तरीके पर विचार किए जाने की आवश्यकता है।
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उनके मुताबिक फांसी की सजा दिए जाने में करीब 40 मिनट का समय लगता है, साथ ही एक दोषी को दी जाने वाली सजा-ए-मौत बेहद दर्दनाक घटना होती है।
मल्होत्रा ने कोर्ट कहा कि अगर एक दोषी को गोली मारकर या जहर देकर मौत दी जाए तो इसमें कम समय लगेगा और उसे ज्यादा दर्द भी नहीं होगा। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों में गोली और जहर से मौत देने के तरीके उपयोग किए जाते हैं। जबकि हमारे देश में अब भी मौत की सजा पाए दोषी को रस्सी से लटकाकर फांसी दी जाती है।
मल्होत्रा ने पंजाब सरकार के खिलाफ ज्ञान कौर (1996) के केस का हवाला देते हुए कहा कि जीने, सम्मानजनक जीवन जैसे अधिकारों को महत्व दिया जाता है, तो जिंदगी को खत्म करने के लिए भी इसी के समान महत्व होना चाहिए। मल्होत्रा ने ये भी बताया कि लॉ पैनल ने 1967 में अपनी 35वीं रिपोर्ट में भी फांसी के अलावा दूसरे तरीकों से सजा-ए-मौत दिए जाने का प्रस्ताव दिया था।
दरअसल आईपीसी की धारा 353 (5) में मल्होत्रा ने बदलाव की मांग की है, जिसके मुताबिक दोषी के गले में रस्सी डालकर और फिर लटका कर मौत दी जाती है। उन्होंने कहा कि मौत दिए जाने का सम्माजनक तरीका होना बेहद जरूरी है। गौरतलब है कि दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन भी फांसी की सजा को अमानवीय मानते हैं और इसके खिलाफ हैं। हालांकि कई संगठन तो मौत की सजा देने की ही खिलाफत करते हैं।
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