लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का पक्ष लेते हुए चुनाव आयोग ने रविवार को कहा कि ऐसा कुछ करने से पहले तमाम राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए सहमत करना जरूरी है।
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चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा, ‘चुनाव आयोग का हमेशा से नजरिया रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से निवर्तमान सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से आने वाली रुकावट के बगैर नीतियां बनाने और लगातार कार्यक्रम लागू करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।’ उन्होंने कहा कि संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून में जरूरी बदलाव करने के बाद ही एक साथ चुनाव कराना मुमकिन हो सकेगा।
मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं।
रावत ने कहा कि संवैधानिक और कानूनी खाका बनाने के बाद ही तमाम तरह के समर्थन मांगना और एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक होगा। उन्होंने कहा, ‘आयोग संवैधानिक और कानूनी बदलाव करने के बाद ऐसे चुनाव छह महीने बाद करा सकता है।’ उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए तमाम राजनीतिक पार्टियों की सहमति आवश्यक है।
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा विधानसभाओं के चुनाव 2019 के मध्य में अगले आम चुनाव के साथ होने हैं। रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने पर निर्वाचन आयोग से 2015 में अपना रुख बताने को कहा गया था।
रावत ने कहा कि आयोग ने उस साल मार्च में अपने विचार दे दिए थे। उसने कहा था कि इस तरह के चुनावों को व्यावहारिक बनाने के लिए कुछ कदम उठाना जरूरी है। रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना तभी संभव हो पाएगा जब आयोग को पर्याप्त वक्त दिया जाए।
24 लाख ईवीएम और इतनी ही वीवीपीएटी की पड़ेगी जरूरत
रावत ने कहा कि इसके लिए 24 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( ईवीएम) और उतनी ही संख्या में वोटर वेरीफाइवल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों की जरूरत पड़ेगी।
उन्होंने कहा, ‘हमें ईवीएम के दो सेट की जरूरत होगी एक लोकसभा के लिए और दूसरा विधानसभा चुनावों के लिए।’ ईवीएम व वीवीपीएटी मशीनों के ऑर्डर पहले ही दिए जा चुके हैं। रावत ने कहा, ‘आयोग आवश्यक संख्या में ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को 2019 के मध्य तक या जरूरी हुआ तो इससे पहले हासिल कर लेगा।’
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