आमतौर पर राजनीति में आने के बाद व्यक्ति की पहचान उसके सियासी कद और पद से ही होती है। पर, कुछ बिरले ऐसे भी होते हैं जिनके हर काम पर उनके सेवा कार्य जीवन भर चादर बनकर छाए रहते हैं।अभी-अभी: CM योगी ने दिया बड़ा बयान, कहा- UP में गोवंश से क्रूरता करने की वालों की जगह जेल में
लखनऊ में प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया से सीधे जनता से चुने जाने वाले पहले नगर प्रमुख डॉ. एससी राय ऐसे ही बिरले व्यक्तियों में रहे। वे राजधानी के दस साल मेयर रहे लेकिन पहचान आजीवन ‘डॉक्टर’ की बनाए रखी।
डॉ. राय में इन गुणों को अटल बिहारी वाजपेयी ने शायद पहले ही देख लिया था। तभी तो उनके समर्थन में आयोजित पहली सभा की शुरुआत ही उन्होंने इस तरह की थी, ‘हम सत्ता का मुकाबला सेवा से और पैसे का मुकाबला पुरुषार्थ से करने के लिए डॉ. राय को लाए हैं।’
डॉ. राय ने नगर प्रमुख बनने के बाद अटल जी की इस इच्छा को हकीकत में बदलकर दिखाया। वे नियमित रूप से मरीजों को देखते। लखनऊ के आसपास लगने वाले चिकित्सा कैंपों में जाकर जटिल रोगों का ऑपरेशन करते।
कई बार तो उस समय लोगों की हंसी निकल जाती थी जब वे नगर निगम की समस्या लेकर आने वालों से आदतन, बीमारी का हालचाल पूछने लगते और इलाज के लिए आने वालों से मोहल्ले का हालचाल लेने लगते। उनका यही समर्पण भाव था जिसके चलते उन्हें ‘पद्मश्री’ उपाधि से भी नवाजा गया।
लंबे समय तक उनके सहयोगी और साथी रहे जेपी सिंह बताते हैं, ‘डॉक्टर साहब मेयर कम ‘डॉक्टर राय बलरामपुर’ वाले नाम से ही ज्यादा जाने गए। बात वोट मांगने की रही हो या उनके नगर प्रमुख बनने के बाद की, डॉ. राय के पद पर उनका डॉक्टर वाला कद हमेशा भारी पड़ा।
बकौल सिंह एक दिन डॉक्टर साहब ने कहा, ‘हम लोगों को मुस्लिम मोहल्लों में भी तो चलकर संपर्क कर लेना चाहिए।’ अयोध्या का ढांचा गिरे बमुश्किल ढाई वर्ष ही बीते थे। हम सभी लोगों को लगा कि डॉक्टर साहब वास्तव में पूरी तरह गैर राजनीतिक व्यक्ति हैं।
इनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वहां कौन भाजपा को वोट देगा। कुछ लोगों ने कहा भी, ‘वहां जाने से कोई फायदा नहीं। इतना समय अपने मतदाताओं के बीच में देना ठीक रहेगा। बिना वजह बालू में तेल निकालने का सपना देखने का क्या फायदा? ’ पर, डॉक्टर साहब नहीं माने।
उन्होंने कहा, ‘वोट मिले या न मिले लेकिन हमें पुराने लखनऊ के मुस्लिम बहुल मोहल्लों में भी जाना जरूर चाहिए। जिससे गलत संदेश न जाए।’ हम लोग गए। कश्मीरी मोहल्ले से शुरुआत की। एक घर पर आवाज दी गई। अंदर से कोई बोला, ‘कौन है भाई!’ हमने कहा, ‘डॉक्टर राय भाजपा के मेयर उम्मीदवार आए हैं। वोट मांगने।’ एक बुजुर्गवार अंदर से आते हुए बोले, ‘आता हूं भाई! पर, जनाब! भाजपा उम्मीदवार नहीं ‘डॉक्टर राय बलरामपुर वाले’ कहिए।’ बुजुर्गवार बाहर आए और अपना कुर्ता उठाकर पेट पर लगा बड़ा सा चीरा दिखाया।
बोले, ‘मेरा नाम फलां है। आपको याद नहीं होगा, मेरी तबीयत काफी खराब थी। सब तरफ से जवाब मिलने के बाद बलरामपुर अस्पताल में आपके पास आया था। पैसे नहीं थे। आपने ऑपरेशन करके जिंदगी बचाई थी।’ फिर वे मोहल्ले में साथ लेकर गए और अंत में विदा करते कहा, ‘डॉक्टर साहब अब आप वोट मांगने न आइएगा। जीतने के बाद मिठाई खाने आइएगा। कुछ तो कर्ज उतारने दीजिए।’ सिंह बताते हैं कि जब मतपेटी खुलीं तो उससे कश्मीरी मोहल्ले जैसे इलाके से भी डॉ. राय के वोट निकले।