गुजरात की सियासी रणभूमि में बीएसपी प्रमुख मायावती पूरी ताकत के साथ उतर रही हैं. लेकिन दलित मतों के सहारे गुजरात में अपनी जड़ें जमाने को बेताब मायावती के अरमानों पर पानी फेरने के लिए कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता चला है. गुजरात में दलित आंदोलन से निकले युवा नेता जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस ने गले लगा लिया है. गुजरात के विधानसभा चुनाव में जिग्नेश ने कांग्रेस को समर्थन करने का ऐलान भी कर दिया है. इस दांव के सहारे कांग्रेस गुजरात में बीएसपी के पास जो सियासी जमापूंजी है उसमें भी सेंधमारी करने की जुगत में है. इससे मायावती के अरमानों पर पानी फिरता और उनका राजनीतिक खेल बिगड़ता नजर आ रहा है.अभी-अभी: प्रदेश के लोगों को लगा बड़ा झटका, इलाज के लिए मिलने वाली ये सरकारी सुविधा हुई बंद
गुजरात में दलित-आदिवासी
बीएसपी को भले ही अभी तक के गुजरात में हुए विधानसभा चुनावों में एक भी सीट हासिल नहीं हुई है, लेकिन चुनाव लड़ने के उसके उत्साह में कोई कमी नहीं आई है. इस बार भी बीएसपी ने गुजरात की 182 सीटों पर पूरी ताकत के साथ उतरने का मन बनाया है.
गुजरात में बीएसपी की जमापूंजी
बीएसपी ने 2002 के विधानसभा चुनावों में अपने 34 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से कोई भी जीत नहीं सका था. 2002 में बीएसपी को 0.32 फीसदी वोट मिले थे. 2007 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी ने 166 उम्मीदवार उतारे और सभी को हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि पार्टी को अपना वोट शेयर बढ़ाने में जरूर कामयाबी मिली, उसे 2.62 फीसदी वोट मिला. 2012 में बीएसपी 163 विधानसभा सीटों पर लड़ी उसे 1.25 फीसदी वोट मिला. यानी 2007 की तुलना में बीएसपी को नुकसान का सामना करना पड़ा.
गुजरात में 40 सुरक्षित सीटें
गुजरात में 7 फीसदी दलित मतदाता हैं, तो वहीं 11 फीसदी आदिवासी. गुजरात में दलित और आदिवासी समाज के लिए 182 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें सुरक्षित है. इनमें से 13 दलित और 27 आदिवासी समाज के लिए हैं. पिछले चुनाव में देखा जाए तो दलित सीटों पर बीजेपी का दबदबा था. 13 सीटों में से 10 पर बीजेपी ने और 3 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. आदिवासी सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. 27 आदिवासी सीटों में से 16 पर कांग्रेस और 10 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
दलित आंदोलन से बदला समीकरण
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक़, अनुसूचित जाति के लोगों पर होने वाले अत्याचार, जिसमें गंभीर चोटें आई हों, ऐसे मामलों में गुजरात देश में दूसरे नंबर पर है. गुजरात लगातार उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं. बता दें आपको कि ऊना में दलित युवकों की पिटाई को लेकर गुजरात में आंदोलन खड़ा हो गया था, जिसका नेतृत्व जिग्नेश मेवाणी ने किया था. इस आंदोलन के जरिए ही जिग्नेश को देश में पहचान मिली और वो गुजरात मे दलितों के सबसे बड़े चेहरा बनकर उभरे हैं.
जिग्नेश का कांग्रेस के समर्थन करने से गुजरात का सियासी समीकरण बदला है. ऐसे में कांग्रेस को दलित समुदाय के बीच अपनी जगह बनाने का मौका मिल गया है. इससे बीजेपी के साथ-साथ बीएसपी को भी झटका माना जा रहा है. दलित चिंतक व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल मानते हैं कि जिग्नेश के जाने से कांग्रेस को फायदा मिलेगा.
जिग्नेश से कांग्रेस को फायदा: बीना
अहमदबाद में दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाली बीना का कहना है कि गुजरात में दलित वोटर बहुत निर्णयक नहीं है. यही वजह है कि उनकी हालत काफी दयनीय है. गुजरात में राजनीतिक दलों के ऐजेंडे में कभी दलित नहीं रहे हैं. लेकिन ऊना घटना ने देश को झकजोर दिया है. इस आंदोलन से जिग्नेश मेवाणी की दलित समुदाय में मजबूत पकड़ बनी है. ऐसे में उनका कांग्रेस के समर्थन करने से कांग्रेस को फायदा मिलेगा.
बीएसपी को होगा नुकसान: सुमन
अंबेडकरवादी आदिवासी विचारक सुनील कुमार सुमन ने कहा कि गुजरात में दलित चेहरे के रूप में जिग्नेश मेवाणी की एक पहचान बन चुकी है. भले ही वह अंबेडकरवादी आंदोलन से न निकले हों लेकिन गुजरात में दलित आंदोलन से जरिए जिग्नेश मेवाणी ने अपनी पहचान बनाई है. गुजरात में वह बहुत बड़ा चेहरा नहीं हैं, लेकिन जो भी हैं वही हैं. ये बात सच है कि उनका आधार पूरे गुजरात में नहीं है, लेकिन ऊना के आसपास काफी है.
उन्होंने कहा कि मायावती को स्वतंत्र चुनाव नहीं लड़ना चाहिए. गुजरात में मायावती का जमीन पर न काम है और न ही जनाधार. जबकि जिग्नेश गुजरात में दलितों की आवाज बन चुका है, लोगों के दुख दर्द में शामिल हो रहा है. जिग्नेश का कांग्रेस के समर्थन करने कांग्रेस को अच्छा फायदा मिलेगा तो वहीं बीएसपी को नुकसान उठाना पड़ेगा.