
ब्रिटेन में भारत के कार्यकारी उच्चायुक्त दिनेश पटनायक ने दोहराया कि दोनों देशों के राजनयिक शुरुआत से ही एक-दूसरे के संपर्क में थे। यह भारत और ब्रिटेन के मजबूत संबंधों को दर्शाता है। उन्होंने कहा, ब्रिटिश विदेश विभाग के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि से शुरुआत से संपर्क बना हुआ था। यह इस बात को दर्शाता है कि दोनों मित्र देशों में एक जैसी कानूनी प्रणाली चल रही है।
यह पूरी प्रक्रिया सौहार्दपूर्ण रही और ये किसी भी तरह से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करेगी। दरअसल, न्यूयार्क में 11वें दौर की वोटिंग शुरू होने से कुछ मिनट पहले ही ब्रिटिश दूतावास की ओर से संयुक्त राष्ट्र को एक पत्र जारी किया गया। इसमें यह घोषणा की गई कि सर क्रिस्टोफर ग्रीनवुड ने हार स्वीकार कर ली है और वह संयुक्त राष्ट्र की हेग स्थित मुख्य कानूनी संस्था में खाली पद को अपने भारतीय प्रतिद्वंद्वी द्वारा भरे जाने को स्वीकार करते हैं।
71 साल के इतिहास में अंतरराष्ट्रीय अदालत की पीठ में ब्रिटेन का कोई जज नहीं होगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने प्रतिद्वंद्वी के आगे झुकने का फैसला ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय साख को लगा अपमानजनक झटका है। यह अंतरराष्ट्रीय मामलों में ब्रिटेन की कम होती प्रतिष्ठा को स्वीकार करने जैसा है।
– द गार्डियन
एक संगठन में जगह पाने में ब्रिटेन की नाकामी यह स्थापित करती है कि वैश्विक स्तर पर उसकी अप्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। यह सब यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले के बाद शुरू हुआ है।
– इंडीपेंडेंट
ज्यादातर विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करने वाला तथाकथित ग्रुप 77 लगातार प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। ब्रिटेन पर भारत की जीत को जी-77 की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जाएगा। जिसमें सुरक्षा परिषद में पारंपरिक उत्तरी शक्तियों को उन्होंने पीछे धकेल दिया।
– बीबीसी
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…हम निराश हैं
ब्रिटेन का यह मानना था कि सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा के कीमती समय को आगे के राउंड की वोटिंग के लिए खराब करना गलत होगा। निश्चित तौर पर हम निराश हैं लेकिन यह ऐसा मुकाबला था, जहां छह मजबूत प्रत्याशी मैदान में थे।
– मैथ्यू रायक्रॉफ्ट, संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के राजदूत