मसौदा बिल को राय के लिए राज्य सरकारों को शुक्रवार को भेजा गया है। राज्यों को तत्काल अपना जवाब देने को कहा गया है। राज्यों की राय मिलने के बाद कानून मंत्रालय मसौदे को मंजूरी के लिए कैबिनेट के सामने पेश करेगा। सूत्रों का कहना है कि सरकार इस बिल को 15 दिसंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में पेश कर सकती है।
एक बार में तीन तलाक पर ही लागू होगा कानून
संसद से बिल के पारित होने के बाद यह कानून सिर्फ एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर ही लागू होगा। यह कानून पीड़िता को खुद और अपने नाबालिग बच्चों के लिए भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने की शक्ति देगा।पीड़िता नाबालिग बच्चों की कस्टडी भी मांग सकेगी। इस मामले पर मजिस्ट्रेट अंतिम फैसला लेंगे।
ये स्वरूप किए जाएंगे शामिल
प्रस्तावित बिल में इस बात के विशेष प्रावधान किए गए हैं कि किसी भी स्वरूप में दिया गया तीन तलाक मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक जैसे ईमेल, एसएमएस या व्हाट्सएप गैरकानूनी और अमान्य होगा।
जम्मू-कश्मीर को छूट
प्रस्तावित बिल के अनुसार, नया कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश पर लागू होगा।
अभी के तलाक संबंधी कानून से किस प्रकार से अलग
सरकारी सूत्रों का कहना है कि 1986 के शाहबानो केस के बाद बना कानून तलाक के बाद के लिए था जबकि इस नए कानून से सरकार तीन तलाक को रोकना चाहती है और पीड़ित महिलाओं को न्याय देना चाहती है। ये कानून संसद से पारित होने के बाद अस्तित्व में आएगा लेकिन संसद चाहे तो इसे पहले से भी लागू कर सकती है। इससे उन महिलाओं को मदद मिलेगी जो तीन तलाक के दर्द से गुजर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 66 मामले
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक पर रोक लगाने के बावजूद ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। इस साल कोर्ट के फैसले के पहले 177 मामले सामने आए थे जबकि आदेश के बाद 66 मामले आए हैं। एक बार में तीन तलाक के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।
घरेलू हिंसा कानून के प्रावधान मददगार नहीं
सरकारी अधिकारी ने बताया कि घरेलू हिंसा कानून के प्रावधान एक बार में तीन तलाक के मामलों में ज्यादा मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं से उत्पीड़न की शिकायत मिली हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक और मनमाना करार दिया था
अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक बोलकर शादी तोड़ने पर छह माह की रोक लगा दी थी। उसने इसे असंवैधानिक, मनमाना और एक पक्षीय करार दिया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस पर कानून बनाए।