नई दिल्ली: Aadhar एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ बुधवार को अहम फैसला सुनाएगी। सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ आधार एक्ट के खिलाफ दायर दर्जनों याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी। सेवानिवृत जज पुत्तासामी समेत कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी है। याचिकाओं में विशेषतौर पर आधार के लिए एकत्र किए जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की दलील दी गई है।
आधार की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट मे निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया था। इसके बाद पांच न्यायाधीशों ने आधार की वैधानिकता पर सुनवाई शुरु की थी।
कुल साढ़े चार महीने में 38 दिनों तक आधार पर सुनवाई हुई थी। आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान, अरविन्द दत्तार, गोपाल सुब्रमण्यम, पी चिदंबरम, केवी विश्वनाथन सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने बहस की और आधार को निजता के अधिकार का हनन बताया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि एकत्र किये जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।
इसके अलावा बायोमेट्रिक पहचान एकत्र करके किसी भी व्यक्ति को वास्तविकता से 12 अंकों की संख्या में तब्दील किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने आधार कानून को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। ये भी आरोप लगाया था कि सरकार ने हर सुविधा और सर्विस से आधार को जोड़ दिया है जिसके कारण गरीब लोग आधार का डाटा मिलान न होने के कारण सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित हो रहे हैं।
उन्होंने ये भी कहा था कि सरकार ने आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पेश कर जल्दबाजी में पास करा लिया है। आधार को मनी बिल नहीं कहा जा सकता। अगर इस तरह किसी भी बिल को मनी बिल माना जाएगा तो फिर सरकार को जो भी बिल असुविधाजनक लगेगा उसे मनी बिल के रूप में पास करा लेगी।
पी चिदंबरम ने कहा था कि मनी बिल के आड़ में इस कानून के पास होने में राज्यसभा के बिल में संशोधन के सुझाव के अधिकार और राष्ट्रपति के बिल विचार के लिए दोबारा वापस भेजे जाने का अधिकार नजरअंदाज हुआ है। उधर दूसरी ओर केन्द्र सरकार, यूएआईडी, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार सहित कई संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून को सही ठहराते हुए याचिकाओं को खारिज करने की अपील की थी। सरकार की ओर से मुख्य बहस अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने की थी।