नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने #Adultery कानून के सेक्शन 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध के दायरे से बाहर करने का आदेश दिया। गुरुवार को पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने एकमत से इस कानून को खारिज कर दिया।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है लेकिन अपराध नहीं होगा। चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी अपराध तो नहीं होगा लेकिन अगर पत्नी अपने लाइफ पार्टनर के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है तो सबूत पेश करने के बाद इसमें खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें मैं, मेरा और तुम सभी शामिल हैं। चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में व्यभिचार अपराध नहीं है। चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है। महिला से असमान बर्ताव असंवैधानिक। महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी कानून मनमाना है। उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अडल्टरी कानून महिला के सेक्सुअल चॉइस को रोकता है और इसलिए ये असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि महिला को शादी के बाद सेक्सुअल चॉइस से वंचित नहीं किया जा सकता है।
पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने भी अडल्टरी को असंवैधानिक बताते हुए इसे खारिज कर दिया। जस्टिस मल्होत्रा ने अडल्टरी को नैतिकता की दृष्टि से गलत कहा और यह भी कहा कि सेक्सुअल स्वायत्तता सही नहीं। जस्टिस रोहिग्टन नरीमन ने भी सेक्शन 497 असंवैधानिक बताते हुए इस 158 साल पुराने कानून को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार होंगे।