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RLSP सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा ने पीएम मोदी को लेकर दिया बड़ा बयान, जानिए क्या कहा….

रालोसपा अध्यक्ष और केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि एनडीए में ही कुछ लोग हैं जो नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनते नहीं देखनाचाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बात करना अपने घर की बात को बाहर के लोगों को बताने जैसा होगा। समय आने पर ऐसे लोगों का खुलासा करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने सीएम नीतीश के बारे में कहा कि उनकेएनडीए में आने से एनडीए मजबूत हुआ है। वहीं, सीट शेयरिंग के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इस तरह की खबरें बिल्कुल गलत है। अभी तक हमारी कोई बैठक नहीं हुई है और अभी तक इस बारे में कोई निर्णय नहीं हुआ है। जो भाजपा और लोजपा का आधिकारिक बयान बताया जा रहा है, इसमें कोई सच्चाई नहीं है। इस खबर पर चर्चा करने की अभी कोई आवश्यकता नहीं है। ये बिल्कुल निराधार है। कुशवाहा ने कहा कि मुझे लगता है कि कुछ लोग जान बूझकर ऐसी खबरें फैलाने की कोशिश करते हैं और इस तरह के लोग एनडीए के भीतर के ही हैं। –– ADVERTISEMENT –– आरक्षण को लेकर दिया बड़ा बयान RLSP सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा ने पीएम मोदी को लेकर दिया बड़ा बयान, जानिए क्या कहा.... यह भी पढ़ें आरक्षण के मामले में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरक्षण से किसी वर्ग को नुकसान नहीं होता है। दक्षिण के राज्यों में सबसे ज्यादा आरक्षण है और ये राज्य ही सबसे ज्यादा विकसित हैं। आरक्षण को लेकर लोगों में गलत धारणा बनी हुई है। बिहार के लोग विकास चाहते हैं और इसलिए गलतफहमी दूर करने की जरूरत है। रालोसपा नेता ने कहा कि हमारी पार्टी एक महीने तक अति पिछड़ा अधिकार सम्मेलन चलाएगी। इस कार्यक्रम के जरिए हम पिछड़ों के हक की लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे और न्यायालय में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने की लड़ाई लड़ेंगे। IRCTC केस में तेजस्वी-राबड़ी को मिली जमानत, गरमायी बिहार की सियासत यह भी पढ़ें उन्होंने कहा कि मेरे खीर बनाने की बात को भी गलत तरीके से पेश किया गया। हमारा मतलब समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने का था। मैंने कृष्ण वंश का दूध, राम के वंश का चावल और दलति से यहां तुलसी और ब्रहर्षि के यहां के चीनी और मुसलमान के यहां से दस्तरखान की बात कही थीं।

रालोसपा अध्यक्ष और केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि एनडीए में ही कुछ लोग हैं जो नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनते नहीं देखनाचाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बात करना अपने घर की बात को बाहर के लोगों को बताने जैसा …

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15 अगस्त नहीं, करोड़ों भारतीयों के लिए आज है स्वतंत्रता दिवस

भारत का स्वतंत्रता दिवस कब है? इसका आसान सा जवाब है 15 अगस्त, जो 15 दिन पहले बीत चुका है। अगर हम आपसे कहें कि करोड़ों भारतीयों के लिए आज (31 अगस्त) स्वतंत्रता दिवस है। आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। दरअसल, 1947 को भारत तो आजाद हो गया, लेकिन इसकी 190 जनजातियों के करोड़ों नागरिकों को पांच साल बाद 31 अगस्त, 1952 को असली आजादी मिली। इसे ये लोग इस तारीख को विमुक्ति दिवस के तौर पर भी मनाते हैं। अंग्रेजों ने इन करोड़ों लोगों को एक खास अधिनियम के तहत 180 साल तक उनके घरों में ही कैद कर दिया था। अब ये आजादी से घूम सकते हैं। लेकिन अब भी अंग्रेजों द्वारा इन पर लगाया गया दाग, समाज में इन्हें वो स्थान और सम्मान नहीं देता जो इनका हक है और आजाद भारत का नागरिक होने के नाते मिलना चाहिए। EXCLUSIVE: 15 अगस्त नहीं, करोड़ों भारतीयों के लिए आज है स्वतंत्रता दिवस यह भी पढ़ें क्यों विमुक्ति दिवस मनाती हैं 190 जनजातियां देश की 190 जनजातियां 31 अगस्त को क्यों विमुक्ति दिवस या दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाती हैं। इसका जवाब जानने के लिए आपको गुलाम भारत के इतिहास में जाना होगा। जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। वर्ष 1871 में अंग्रेजों ने 'आपराधिक जनजाति अधिनियम' लागू करके देश की कई जनजातियों को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था। जानिये- 3 साल में कितना बदल गए केजरीवाल, 'आप' में भी नहीं रही वो बात यह भी पढ़ें 1857 के विद्रोह से घबराकर अंग्रेजों ने उठाया था कदम इसकी एक बड़ी वजह अंग्रेजों के खिलाफ हुआ 1857 का विद्रोह भी माना जाता है। जानकारों का मानना है कि 1857 के विद्रोह में बहुत सी जनजातियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने भारतीयों पर नज़र रखने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए दर्जनों कानून बनाए थे। हालांकि इन कानूनों से उन जनजातियों पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल था, जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं था। पढ़ें- रूह कंपा देने वाली मर्डर मिस्ट्री का सच, जिसने करोड़ों लोगों के उड़ाए थे होश यह भी पढ़ें ये घुमंतु जनजातियां थीं, जो एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाना बदलती रहती थीं। ऐसी जनजातियों को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें सूचीबद्ध कर 1871 में उन पर 'आपराधिक जनजाति अधिनियम' लागू कर दिया। इस अधिनियम के तहत इन जनजातियों के सभी सदस्यों को अपराधी घोषित कर दिया गया। मणिपुर के मुख्यमंत्री को धमकी देने वाला शख्स दिल्ली में गिरफ्तार यह भी पढ़ें बच्चा पैदा होते ही अपराधी मान लिया जाता था ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ में शामिल जनजातियों के यहां बच्चा पैदा होते ही उस पर अपराधी का ठप्पा लग जाता था। करीब 180 सालों तक देश ने इन जनजातियों को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना। इसके चलते धीरे-धीरे हमारे भारतीय समाज ने भी इन जनजातियों को अपराधी मान लिया। बस्ती बनाकर कैद कर दिया गया था इन्हें अंग्रेजों के बनाए इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन हुए। इन संशोधनों के तहत अधिनियम में सुधार की जगह धीरे-धीरे 190 जनजातियों को इसके दायरे में लाकर अपराधी घोषित कर दिया गया। इसके बाद पुलिस में भर्ती होने वाले जवानों को इनके बारे में पढ़ाया जाने लगा। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें बताया जाता था कि ये जनजातियां पारंपरिक तौर से अपराध करती आई हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि इन जनजातियों के लोगों को हर जगह अपराधियों के तौर पर देखा जाने लगा। साथ ही पुलिस को उनका शोषण करने करने के लिए अपार शक्तियां दे दी गईं। देशभर में लगभग 50 ऐसी बस्तियां भी बनाई गईं जिनमें इन जनजातियों को जेल की तरह कैद कर दिया गया। इन बस्तियों की चारदीवारी के बाहर हर वक्त पुलिस का पहरा लगता था। बस्ती के बच्चों से लेकर हर सदस्य को बाहर आते-जाते वक्त पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचना देनी होती थी या उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी। आजादी के पांच साल बाद खत्म हुआ अधिनियम 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया। बावजूद 1871 में अपराधी घोषित हुईं जनजातियों की स्थिति नहीं सुधरी। देश की आजादी के पांच साल बाद 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ से आजादी (विमुक्ति) मिली। इसीलिए इन जनजाति के लोगों ने 31 अगस्त को 'विमुक्ति दिवस' के रूप में मनाना शुरू कर दिया और इसे दूसरे स्वतंत्रता दिवस के तौर पर देखा जाने लगा। आजाद भारत में भी इन जनजातियों के प्रति सोच नहीं बदली देश आजाद होने और अधिनियम खत्म होने के बावजूद आज भी हमारा समाज इन जनजातियों को अपराधी मानता है। यही वजह है कि वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश के घाट अमरावती गांव में पारधियों के दस घर फूंके गए दिए गए थे। वर्ष 2007 में जिला वैशाली बिहार में नट जनजाति के दस लोगों को भीड़ ने चोर होने के संदेह में पीट-पीट कर मार डाला था। सितंबर 2007 में ही बैतूल जिला मध्य प्रदेश के चौथिया गांव में पारधियों के 350 परिवारों के घर जला दिए गए थे। इस घटना के बाद चौथिया गांव के जिला पंचायत सदस्य ने बयान दिया था कि 'कुछ भी करना पड़े, किसी भी स्तर तक जाना पड़े, पर इन कुत्ते हरामजादे पारधियों को यहां बसने नहीं देना चाहिए।' दरअसल उन्होंने ये बयान इस जनजाति को अपराधी मानते हुए दिया था। आज भी पुलिस इन जनजातियों को अपराधी मानती है ये महज कुछ बड़ी घटनाएं ही हैं। इन जनजातियों पर होने वाले अत्याचार की दर्जनों घटनाएं हर साल पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होती हैं। बहुत सी घटनाओं में तो शिकायत ही नहीं की जाती है या पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। घुमंतू जनजातियों के साथ आज भी समाज ही नहीं बल्कि पुलिस, प्रशासन और व्यवस्था द्वारा भी ऐसा ही सौतेला व्यवहार होता है। आज भी पुलिस इन जनजातियों को जन्मजात अपराधी मानती है। लिहाजा इन्हें किसी भी मामले में गिरफ्तार कर लिया जाता है। सरकारी नौकरी पर भी बावरिया के बेटे को नहीं मिला एजुकेशन लोन पुलिस उत्पीड़न के अलावा भी इन लोगों को कई मोर्चों पर अपनी जनजातीय पहचान का नुकसान भुगतना पड़ता है। गुड़गांव जिले के नरहेड़ा गांव निवासी छन्नूराम बावरिया जन स्वास्थ्य विभाग में सरकारी नौकरी करते हैं। कई साल की सरकारी नौकरी के बाद उन्होंने जब अपने बेटे की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बैंक से एजुकेशन लोन मांगा तो उन्हें मना कर दिया गया। उन्होंने अपने घर के पेपर तक गिरवी रखने की बात आवेदन पत्र में लिखी, बावजूद उन्हें लोन नहीं दिया गया। छन्नूराम के अनुसार बैंक ने उन्हें केवल इसलिए लोन नहीं दिया क्योंकि वह उस बावरिया समाज से हैं, जिस पर अपराधी होने का ठप्पा लगा है। अब इन्हें आदतन अपराधी मान लिया गया है 1952 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ तो खत्म कर दिया गया, लेकिन इससे पहले ही 1950 के दशक में ‘हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट’ (आदतन अपराधी अधिनियम) बना दिया गया। ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ खत्म होने के बाद धीरे-धीरे इन जनजातियों को ‘हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट’ में शामिल कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इस कानून को रद्द करने के लिए कई बार भारत सरकार को कह चुके हैं, लेकिन इस दिशा में अभी तक कुछ नहीं किया गया। शिकारी जनजाति बावरिया अब खुद हो रही शिकार अक्सर बड़ी घटनाओं और निर्मम हत्या में बावरिया गिरोह के शामिल होने की आशंका जताई जाती हैं। ऐसी खबरें मीडिया और समाज में जबरदस्त चर्चा बटोरती हैं। आम धारणा है कि बावरिया गिरोह बहुद निर्दयी होता है। इनकी पूरी जनजाति को गिरोह मान लिया जाता है। माना जाता है कि ये लोग अपराध करने से पहले भगवान की पूजा करते हैं। ये लोग महिलाओं और बच्चों के साथ वारदात करते हैं। जनजातियों के उत्थान को आयोग तो बना पर काम नहीं हुआ वर्ष 2005 में तत्कालीन सरकार ने ‘विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों’ के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था। आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण रेनके ने 2008 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। रिपोर्ट में इन जनजातियों के इतिहास से लेकर इनकी वर्तमान चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों का जिक्र किया गया था। लगभग 150 पन्नों की इस रिपोर्ट में बावरिया जनजाति के बारे में बताया गया है कि वह कई पीढ़ियों से जंगली जानवरों के शिकार का काम किया करती थी। ‘फॉरेस्ट एक्ट’ और ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट’ जैसे कानूनों ने बावरिया लोगों का जंगल से रिश्ता खत्म कर दिया। ऐसे कानून बनाते समय जंगल पर ही आश्रित जनजातियों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की गई। प्रमुख जनजातियां - हबूडा, भांतु, धतुरिया, पारधी, नट, बावरिया, कंजर, सांसी, छारा, मदारी आदि। भारत में जनजातीय स्थिति और विकासात्मक पहल - वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में आदिवासियों की संख्या 8.61% है जो लगभग 104.28 मिलियन् है और देश के क्षेत्रफल का लगभग 15% भाग पर स्थापित है। - आदिवासी जनसंख्या की 52 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है और कारण क्या है कि 54 प्रतिशत आदिवासियों के पास यातायात एवं दूर संचार के रूप में आर्थिक संपत्तियाँ उपयोग के लिए नहीं हैं। - देश में जनजातियों की कुल आबादी करीब 14 करोड़ है। यहां बसाई गईं थीं बस्तियांः कानपुर में 159 एकड़ में अंग्रेजों ने 1992 में क्रिमिनल ट्राइब सेटलमंट प्लान के तहत सीटीएस कॉलोनी बसाई थी। इसके अलावा मुरादाबाद, गोरखपुर और पालिया आदि शहरों में भी इन जनजातियों को कैद करने के लिए अंग्रेजों द्वारा बस्तियां बसाई गईं थीं। ये कॉलोनियां इन जनजातियों के लिए एक खुली जेल की तरह थीं।

भारत का स्वतंत्रता दिवस कब है? इसका आसान सा जवाब है 15 अगस्त, जो 15 दिन पहले बीत चुका है। अगर हम आपसे कहें कि करोड़ों भारतीयों के लिए आज (31 अगस्त) स्वतंत्रता दिवस है। आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। दरअसल, 1947 को भारत तो …

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बीडीओ के कार्यक्षेत्र में फेरबदल

बीडीओ के कार्यक्षेत्र में फेरबदल

जिला विकास अधिकारी हवलदार ¨सह ने चार खंड विकास अधिकारियों का तबादला कर दिया। स्थानांतरित बीडीओ अमानीगंज केडी भारती को पूराबाजार में तैनाती के साथ मयाबाजार ब्लॉक का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। मयाबाजार के बीडीओ पीयूषमोहन श्रीवास्तव की नई तैनाती अमानीगंज ब्लॉक में हुई है। पूराबाजार के बीडीओ जनार्दन को …

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‘आस्मा’ से रखी जाएगी सोशल मीडिया पर नजर

सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाकर या गलत सूचनाएं पोस्ट कर माहौल खराब करने वालों पर पुलिस अब प्रभावी ढंग से लगाम लगा सकेगी। इसके लिए विभाग के तकनीकी विशेषज्ञों ने 'एडवांस अप्लीकेशन सोशल मीडिया एनालीटिक्स' (आस्मा) नाम का खास तरह का साफ्टवेयर तैयार किया है। इस साफ्टवेयर की मदद से न केवल सोशल मीडिया पर नजर रखना पुलिस के लिए आसान हो जाएगा बल्कि आपत्तिजनक पोस्ट खुद हटाने के साथ ही साथ पोस्ट डालने वाले की आसानी से पहचान भी हो सकेगी। इस साफ्टवेयर की मदद से पुलिस, सोशल मीडिया पर अराजकतत्वों को ब्लाक कर सकेगी। –– ADVERTISEMENT –– 'आस्मा' से रखी जाएगी सोशल मीडिया पर नजर यह भी पढ़ें वर्तमान समय में सोशल मीडिया सूचनाओं के आसानी से आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसकी व्यापकता और बेहद कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की क्षमता एक तरफ जहां तमाम लोगों के लिए बेहद मुफीद साबित हो रही है वहीं दूसरी तरफ उन्माद और अराजकता फैलाने वाले तत्व इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग भी कर रहे हैं। लोगों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने, अश्लील और आपत्तिजनक वीडियो अपलोड कर लोगों को बदनाम करने में भी कुछ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। सोशल मीडिया का बढ़ रहा यही दुरुपयोग पुलिस के सामने नए तरह की चुनौती बन गया है। इससे निपटने के लिए पुलिस लगातार प्रयास कर रही है। इस दिशा में अब तक की सबसे कामयाब कोशिश पुलिस विभाग के विशेषज्ञों द्वारा खासतौर से तैयार किया गया 'आस्मा' नाम के साफ्टवेयर के रूप में सामने आई है। इस साफ्टवेयर की मदद से फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, यू ट्यूब, इंस्ट्राग्राम और गुगल प्लस सहित सभी सोशल मीडिया पर नजर रखना और आपत्तिजनक पोस्ट डालने वालों की पहचान कर पकड़ना पुलिस के लिए बेहद आसान हो जाएगा। रेंज कार्यालय से रखी जाएगी निगरानी यहां 73 साल से बह रही भक्ति की धारा यह भी पढ़ें फिलहाल रेंज स्तर से सोशल मीडिया पर नजर रखने की योजना तैयार की गई है। रेंज कार्यालय में गठित साइबर सेल खास तौर से तैयार इस साफ्टवेयर का उपयोग करेगा। रेंज स्तर पर गठित साइबर सेल को इस साफ्टवेयर का आइपी एड्रेस और हर रेंज का अलग-अलग लांगिग और पासवर्ड की जानकारी दे दी गई है। साइबर सेल में कार्यरत पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करने के बाद बहुत जल्दी इस साफ्टवेयर की मदद से सोशल मीडिया की निगरानी शुरू हो जाएगी। राज्य साइबर सेल स्थापित करेगा समन्वय प्रदेश के सभी रेंज कार्यालयों और दूसरे प्रदेश की पुलिस से तालमेल स्थापित करने के लिए आइजी एसटीएफ के नेतृत्व में राज्य साइबर समन्वय सेल का गठन किया गया है। समन्वय सेल के प्रभारी के तौर पर आइजी एसटीएफ का पदनाम राज्य साइबर क्राइम समन्वयक होगा। रेंज स्तर पर गठित साइबर सेल के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिलाना, साइबर क्राइम के मामलों की विवेचना में मार्गदर्शन करना तथा दूसरे राज्यों की पुलिस से समन्वय स्थापित करना राज्य साइबर क्राइम समन्वयक की जिम्मेदारी होगी।

सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाकर या गलत सूचनाएं पोस्ट कर माहौल खराब करने वालों पर पुलिस अब प्रभावी ढंग से लगाम लगा सकेगी। इसके लिए विभाग के तकनीकी विशेषज्ञों ने ‘एडवांस अप्लीकेशन सोशल मीडिया एनालीटिक्स’ (आस्मा) नाम का खास तरह का साफ्टवेयर तैयार किया है। इस साफ्टवेयर की मदद से …

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पोस्टमार्टम में हत्या, फोरेंसिक जांच में निकला हादसा

किसी भी हादसे या हत्या होने पर उसकी हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सामने आती है पर इसमें जरा सी चूक पूरे केस को उलझा देती है। फोरेंसिक जांच में एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सवालों के घेरे में है। फीलखाना में बंद फ्लैट में मिले कारोबारी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जिसमें हत्या की बात थी, फोरेंसिक रिपोर्ट में हादसा माना गया है। इसके आधार पर पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी है। बता दें, चार माह पहले संवासिनी गृह में संवासिनी की मौत और कचहरी के चैंबर में मिले अधिवक्ता के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या की आशंका जताई गई थी लेकिन दोनों ही मौतें हादसा साबित हुईं। सिख दंगा पीड़ितों की स्टेटस रिपोर्ट पेश करे सरकार यह भी पढ़ें - - - - - - - - - –– ADVERTISEMENT –– ये था मामला घटना फीलखाना के सवाई सिंह हाता की है। 17 जून को व्यापारी ज्ञान अग्रवाल का शव उनके बंद फ्लैट में फर्श पर पड़ा मिला था। रिश्तेदारों ने पड़ोसियों की मदद से रोशनदान का शीशा तोड़कर दरवाजा खोला था। फोरेंसिक जांच कराई तो फ्लैट में हत्या किए जाने के सबूत नहीं मिले। कमरे में आने जाने का कोई सबूत और व्यापारी के साथ कोई दुश्मनी सामने न आने पर पुलिस हादसा मान रही थी। वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोटने की बात सामने आने पर हत्या का मामला दर्ज किया था। दोबारा जांच शुरू हुई लेकिन हत्या का सबूत नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों ने स्वरूप नगर में संवासिनी व कचहरी में अधिवक्ता की मौत को लेकर पोस्टमार्टम की नजीर देते हुए रिपोर्ट पर एक्सपर्ट की राय मांगी। लखनऊ से स्टेट मेडिकोलीगल एक्सपर्ट विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर डा. गयासुद्दीन खान टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने दोबारा पड़ताल कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जांच की तो घटना हादसा निकली। इंस्पेक्टर आशीष शुक्ला ने बताया कि फोरेंसिक टीम की रिपोर्ट के अनुसार व्यापारी की मौत गिरने से हुई थी। मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है। अखिलेश ने नहीं की सेक्युलर मोर्चा पर कोई टिप्पणी यह भी पढ़ें - - - - - - - - - कहां हुई पोस्टमार्टम में चूक रिपोर्ट के अनुसार व्यापारी को हाई ब्लडप्रेशर की बीमारी थी। अचानक चक्कर आने से वह जमीन पर मुंह के बल गिरे और हायड बोन (गले की हड्डी) टूट गई। सांस की नली चोक होने से उनकी मौत हुई। वहीं हड्डी नली में घुसने से खून भी निकला। गले पर कोई निशान नहीं थे। जानकारों के मुताबिक पोस्टमार्टम में डॉक्टर ने पुलिस के पंचनामा रिपोर्ट और घटना की परिस्थितियों पर ध्यान नहीं दिया। सूत्रों के मुताबिक पोस्टमार्टम करने वालों के भरोसे पूरी रिपोर्ट तैयार होती है। डॉक्टर शव को हाथ तक नहीं लगाते और दूर खड़े होकर दिशा निर्देश देते रहते हैं।

किसी भी हादसे या हत्या होने पर उसकी हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सामने आती है पर इसमें जरा सी चूक पूरे केस को उलझा देती है। फोरेंसिक जांच में एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सवालों के घेरे में है। फीलखाना में बंद फ्लैट में मिले कारोबारी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जिसमें …

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अखिलेश यादव की गैर मौजूदगी में मुलायम सिंह सपा कार्यालय में सक्रिय

भाई शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के बाद समाजवादी पार्टी के सरंक्षक मुलायम सिंह यादव अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में सक्रिय हो गए हैं। कल के बाद आज वह फिर अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में समाजवादी पार्टी के कार्यालय पहुंचे। अखिलेश यादव आज इटावा में हैं। उनकी गैर हाजिरी में आज मुलायम सिंह यादव विक्रमादित्य मार्ग पर सपा के कार्यालय पहुंचे। कल मुलायम सिंह यादव राज्यसभा के पूर्व सांसद बाबू दर्शन सिंह के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। भाई शिवपाल यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने और लोकसभा की सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩे के ऐलान के बाद आज मुलायम सिंह यादव यहां समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर पहुंचे। मुलायम सिंह ने पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। उन्होंने आज भी सपा ऑफिस में करीब एक घंटा का वक्त गुजारा। उन्होंने राजनीति पर बात करने से साफ मना कर दिया था, लेकिन उनके दफ्तर पहुंचने के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं। इंटरनेट-सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बढ़ रहा एडिक्शन, खतरे समझ लें फिर बच्चों को दें मोबाइल यह भी पढ़ें अखिलेश यादव के पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद काफी लंबे समय से मुलायम सिंह यादव यहां समाजवादी पार्टी के दफ्तर नहीं आ रहे थे। समाजवादी कुनबे की रार एक बार फिर सामने आने के मुलायम सिंह का लगातार समाजवादी पार्टी कार्यालय में आने से अटकलों का बाजार तेज है। अभी तक मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव के मोर्चा बनाने पर कोई बयान नहीं दिया है। बीते 48 घंटों में सपा के कई दिग्गज नेता उनसे मिल चुके हैं। इनमें सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी, आजम खान, संजय सेठ और सुनील सिंह साजन समेत कई अन्य दिग्गज नेता भी हैं।

भाई शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के बाद समाजवादी पार्टी के सरंक्षक मुलायम सिंह यादव अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में सक्रिय हो गए हैं। कल के बाद आज वह फिर अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी में समाजवादी पार्टी के कार्यालय पहुंचे। अखिलेश यादव आज इटावा …

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शिवपाल यादव का बड़ा ऐलान, UP 80 सीट पर चुनाव लड़ेगा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा

समाजवादी पार्टी के अलग होकर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन करने वाले शिवपाल सिंह यादव ने बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस ली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आज उन्होंने बागपत के साथ ही साथ मुजफ्फरनगर में अपनी पार्टी के लिए लोगों की नब्ज टटोली। बागपत के बिनौली में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के अध्यक्ष व शिवपाल यादव ने दरकवदा गांव में पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने को मोर्चा बनाया गया है। शिवपाल सिंह यादव ने पत्रकारों से वार्ता के दौरान कहा कि उपेक्षित और अपमानित होकर उन्होंने मोर्चा बनाया। भाजपा में जाने की बात को सिरे से खारिज किया। समाजवादी सेक्युलर मोर्चा क्यों बनाया के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने नेताजी के साथ मिलकर बड़ी शिद्दत से समाजवादी पार्टी बनाई थी। उनकी सपा में लगातार हो रही उपेक्षा के चलते सीनियर, अपमानित व उपेक्षित हैं, जिनको हाशिये पर रख दिया गया था उनको जोड़कर सेक्युलर मोर्चा का गठन किया है। प्रदेश में मोर्चे के लोकसभा चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलना है। मोर्चा प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लडे़गा। अक्षरधाम से बागपत तक बनेगा फोरलेन हाईवे यह भी पढ़ें उन्होंने कहा दबे कुचलों और वंचितों को उनका हक न्याय दिलाना ही मोर्चे का लक्ष्य है। अखिलेश के चाचा शिवपाल ओर अंकल अमरसिंह के भाजपा से सांठ-गांठ होने के आरोप को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि यह बात निराधार है और उनके सेक्युलर अभियान को बाधित करने का प्रचार है। अखिलेश व सपा से क्या मुखालफत है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारी किसी से मुखालफत नहीं है। इससे पूर्व कार्यकर्ताओं ने दरकावदा पहुंचने पर ढोल नगाड़ों व फूल मालाओं से जोरदार स्वागत भी किया। मोर्चा लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इस दौरान उन्होंने अखिलेश यादव के उस बयान को बेबुनियाद बताया, जिसमें अखिलेश ने शिवपाल सिंह यादव का भाजपा से सम्पर्क होने की बात कही थी। शिवपाल यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी में उपेक्षित और सामान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर वह चुनाव लड़ेंगे। इससे अब यह साफ हो चुका है कि उन्होंने अलग राह पकड़ ली है। शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव (2019) में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। शिवपाल ने कहा कि उन्होंने इस समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन राष्ट्रीय एकता के लिए किया है। अब तो समाजवादी पार्टी के उपेक्षित तथा अपमानित के साथ जो लोग वहां हाशिए पर है उन्हें एकजुट करके आगे की लड़ाई लड़ेंगे। निवाड़ा में संघर्ष,असलाह लहराए,11 धरे गये यह भी पढ़ें बिनोली के दरकावदा गांव में आज शिवपाल सिंह यादव ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने के बाद मीडिया से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश की किस्मत बदलना ही इस सेक्युलर मोर्चे के उद्देश्य है। आने वाले चुनावों में सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। इसके लिए समान विचारधारा वाली पार्टी को एक साथ लेकर आएंगे। जब उनसे पूछा गया कि उनकी किस्से मुखालफत है समाजवादी पार्टी या फिर अखिलेश से, तो उन्होंने कहा कि उनकी किसी से मुखालफत नहीं है। वह उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं जो भी सपा में उपेक्षित और अपमानित हैं। इस मौके पर उनके साथ आचार्य प्रमोद कृष्णम भी मौजूद थे। आचार्य प्रमोद ने 2014 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर संभल से लड़ा था। छपरौली में लोगों की जान का दुश्मन बना सांड़ यह भी पढ़ें शिवपाल सिंह यादव ने बीती बुधवार को समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि समाजवादी पार्टी में काफी उपेक्षित और अपमानित लोगों को सेक्युलर मोर्चा से जोड़ेंगे। शिवपाल का कहना था कि पार्टी में नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का सम्मान न होने से आहात हूं। मुझे भी पार्टी में किसी भी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता। इस मोर्चे से वे ऐसे सभी लोगों को जोड़ेंगे जिनका अपमान हो रहा है। इसके साथ ही इसके साथ क्षेत्रीय दलों को भी जोडऩे की बात कही। शिवपाल यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने को मोर्चा बनाया गया है। समाजवादी पार्टी से अलग हुए शिवपाल यादव ने अपनी अलग सियासी राह चुन ली है। उनके ताल ठोंकने से साफ हो गया है कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को भाजपा से मुकाबला करने के साथ-साथ अपने चाचा से भी दो-दो हाथ करने होंगे। अश्लील फब्तियां कसने पर पांच छात्र कालेज से निकाले यह भी पढ़ें शिवपाल यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार लोकसभा चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। इससे पहले सूबे सियासत तक ही अपने को सीमित रख रहे थे। शिवपाल ने कहा कि मैं पहली बार लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा हूं, मेरे खिलाफ प्रत्याशी उतरते हैं या नहीं यह फैसला मुलायम सिंह यादव को करना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ के बजाय मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लडऩे का फैसला किया है।

समाजवादी पार्टी के अलग होकर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन करने वाले शिवपाल सिंह यादव ने बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस ली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आज उन्होंने बागपत के साथ ही साथ मुजफ्फरनगर में अपनी पार्टी के लिए लोगों की नब्ज टटोली। बागपत के बिनौली …

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कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा

असम के गुवाहाटी शहर के पास देवी सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर किसी को जाने की इज़ाजत नहीं, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं। मंदिर का इतिहास पुरानी कथाओं के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया। जिसमें देवी सती के पति भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यह बात सती को बुरी लग गई और अपने पति का अपमान सह नहीं सकीं। इसके चलते नाराज होकर अग्‍निकुंड में कूदकर उन्‍होंने आत्‍मदाह कर लिया। जिसके बाद शिव जी ने सती का शव उठा कर भयंकर तांडव किया, जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। इसे शांत कराने के लिए भगवान विष्‍णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई सारे टुकड़े कर दिए। देवी के अंगों के ये टुकड़े अलग-अलग जगहों पर जा गिरे। जहां-जहां ये गिरे वो जगह शक्‍तिपीठ कहलाए। कामाख्‍या मंदिर में देवी सती की योनि और गर्भ गिरा थे, ऐसा कहा जाता है कि जून के महीने में इससे रक्त का प्रवाह होता है। इस दौरान यहां ब्रह्मपुत्र नदी पूरी लाल हो जाती है। इस दौरान अम्बुवाची मेला चलता है। मंदिर में देवी की अनुमानित योनि के पास पंडित जी नया साफ-स्वच्छ कपड़ा रखते हैं। जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है। ट्रैवलिंग के दौरान प्लास्टिक से फैलने वाली गंदगी को ऐसे कर सकते हैं कम यह भी पढ़ें क्या है अंबुवाची पर्व कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा यह भी पढ़ें अंबुवाची पर्व का सीधा संबंध मां कामाख्या के प्रजनन धर्म से है। कहा जाता है कि इस पर्व के दौरान मां रजस्वला होती हैं। जिसमें मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं। चौथे दिन कपाट खुलने पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। मां के रज से भीग कपड़ा बहुत ही पवित्र और शक्ति का स्वरूप माना जाता है। एडवेंचर के साथ बर्फबारी का मजा लेना हो तो साच पास है बहुत ही खूबसूरत जगह यह भी पढ़ें कैसे पहुंचे हवाई मार्ग- गुवाहाटी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कामाख्या मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जहां से मंदिर की दूरी 20 किमी है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे सभी बड़े शहरों से यहां के लिए फ्लाइट्स अवेलेबल हैं। नेपाल जाकर इन 10 डिशेज़ को बिल्कुल भी न करें मिस यह भी पढ़ें रेल मार्ग- वैसे तो नार्थ इस्ट इंडिया के लिए हर एक शहर से ट्रेनें चलती हैं जिससे आप यहां तक पहुंच सकते हैं। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहां से कामाख्या के लिए ट्रेन ले सकते हैं या फिर स्टेशन से ही ऑटो या टैक्सी लेकर डायरेक्ट मंदिर पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग- गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कामाख्या मंदिर की दूरी 8 किमी है। स्टेशन से बाहर निकलकर आपको ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और बसें मिल जाएंगी

असम के गुवाहाटी शहर के पास देवी सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला …

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एक्साइटिंग और खतरनाक दोनों तरह के एक्सपीरियंस के लिए यहां का रोड ट्रिप करें प्लान

साल 2013 में आई रोहित शेट्टी की मूवी 'चेन्नई एक्सप्रेस' तो आपको याद ही होगी जिसमें राहुल(शाहरूख खान) अपने दादा जी अस्थियों को रामेश्वरम में बहाता है। ऊपर नीला आकाश नीचे नीले समुद्र का ये नजारा सिर्फ मूवी में ही नहीं असल में ही इतना ही खूबसूरत है। और अगर कहीं आप यहां रोड ट्रिप का प्लान कर रहे हैं तो यकीन मानिए इससे बेहतरीन नजारा आपने पहले शायद कभी नहीं देखा होगा। पामबन आइलैंड तक पहुंचने के लिए आपको पामबन ब्रिज से गुजरना पड़ता है। मुंबई ब्रांदा कुर्ला पुल से पहले पामबन ब्रिज इंडिया का सबसे लंबा सी ब्रिज हुआ करता था। तमिलनाडु में स्थित यह इंडिया का ऐसा पुल है जो समुद्र के ऊपर बना हुआ है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां से गुजरना कितना एक्साइटिंग और अलग एक्सपीरियंस होता होगा। यह नेचर और तकनीक का बेजोड़ मेल है। जो उच्च तीव्रता वाले भूंकप से भी नहीं हिल सकता। पामबन ब्रिज का रोड ट्रिप –– ADVERTISEMENT –– तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है। ऐसे में अगर आप रामेश्‍वरम जाना चाहते हैं तो अपने सफर को रोमांचक बनाने के लिए पामबन पुल से होकर जा सकते हैं। समुद्र की लहरों के बीच सफर के बारे में सोचकर ही एक्साइटमेंट होने लगती है। पुल पर रुककर आप इसके खूबसूरत नजारों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। रोड ट्रिप और भी ज्यादा एक्साइटिंग होती है अगर आपके साथ कंपनी अच्छी हो लेकिन यहां अकेले आकर भी आप बोर या अकेला फील नहीं करेंगे। ट्रैवलिंग के दौरान प्लास्टिक से फैलने वाली गंदगी को ऐसे कर सकते हैं कम यह भी पढ़ें पामबन पुल का ब्रैकग्राउंड कामाख्या देवी का मंदिर, जहां प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा यह भी पढ़ें पामबन पुल को ब्रिटिश रेलवे द्वारा 1885 में शुरू किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की टीम के निर्देशन में गुजरात के कच्छ से आए कारीगरों की मदद से इसे खड़ा किया गया था और 1914 में ये बनकर पूरा हुआ था। फरवरी 2016 में इसने अफना 102 साल पूरा किया। इतना पुराना होने के बावजूद भी ये आज ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। एडवेंचर के साथ बर्फबारी का मजा लेना हो तो साच पास है बहुत ही खूबसूरत जगह यह भी पढ़ें पामबन पुल की बनावट यह पुल बीच में खुलता भी है। हालांकि कंक्रीट के 145 खंभों पर टिके इस पुल को समुद्री लहरों और तूफानों से ख़तरा बना रहता है। पहले यह देश का सबसे बड़ा समुद्र पुल हुआ करता था जिसकी लम्‍बाई 2.057 किमी. है।

साल 2013 में आई रोहित शेट्टी की मूवी ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ तो आपको याद ही होगी जिसमें राहुल(शाहरूख खान) अपने दादा जी अस्थियों को रामेश्वरम में बहाता है। ऊपर नीला आकाश नीचे नीले समुद्र का ये नजारा सिर्फ मूवी में ही नहीं असल में ही इतना ही खूबसूरत है। और अगर …

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रेस्टोरेंट में खाना खाने पहुँचा शख्स, लौटा तो ऐसा पाया खुद को

कई बार हमे ख़ुशी के मौके पर बाहर खाना खाने का प्लान बनाते हैं और कई बार मूड भी हो जाता है कि हम बाहर खा लेते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कोई चीज़ें हमें सूट नहीं करती और हमें उसके बारे में बाद में पता चलता है. ऐसा ही एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जायेंगे. आइये आपको भी बता देते हैं. Video: बुजुर्ग दम्पति ने ऐसा काम कर उड़ाए सबके होश दरअसल, ये मामला दक्षिण कोरिया का है जहां पर एक शख्स को बाहर खाना महंगा पड़ गया. 71 वर्षीय ये शख्स जब एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गया लेकिन जब घर आया तो कुछ घंटों बाद उसकी हालत खराब थी जिसे देखकर वो भी हैरान था. घर लौटने के 12 घंटे बाद उसके हाथ की चमड़ी जैसे सड़ने लगी और देखते ही देखते उसके हाथ पर फोड़े पड़ गए जिससे उसे असहनीय दर्द होने लगा. इस फोड़े से उसकी चमड़ी भी सड़ने लगी. इसी को देखते हुए उसने डॉक्टर को दिखाया जो पता चला कि मांस खाने वाले बैक्टेरिया विब्रियो की वजह से ऐसा हुआ है, डॉक्टर ने उसके हाथ से पस निकाला लेकिन डॉक्टर ने बताया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. Video: यहाँ तभी जाना जब जीवन बीमा करवा लो डॉक्टर ने बताया वो शख्स मधुमेह से पीड़ित था और उसे किडनी की बीमारी भी थी जिससे वो डायलिसिस पर था. डॉक्टरों ने उसे इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स दिया. आपको बता दें, ऐसी हालत में मधुमेह वाले लोगों को और भी तकलीफ होने लगती है और उनकी ये बीमारी ठीक होने में काफी समय लग जाता है. लेकिन डॉक्टर को मजबूरन उसका हाथ काटना पड़ा जिससे उसके बाद उसकी हालत में सुधार देखा गया.

कई बार हमे ख़ुशी के मौके पर बाहर खाना खाने का प्लान बनाते हैं और कई बार मूड भी हो जाता है कि हम बाहर खा लेते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कोई चीज़ें हमें सूट नहीं करती और हमें उसके बारे में बाद में पता …

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