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नियोजित शिक्षकों के समान वेतन मामले में आज SC में फिर होगी सुनवाई

बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी। इस फैसले पर राज्य के नियोजित शिक्षकों की निगाहें टिकी है। मंगलवार को इस मामले में हुई सुनवाई में शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन ने कोर्ट के सामने राज्य सरकार का पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे और न्यायाधीश उदय उमेश मलिक की खंडपीठ मे नियोजित शिक्षकों के मामले में सुनवाई की और इस मामले में कोर्ट ने अभी राज्य सरकार का पक्ष सुना है और अब शिक्षक संगठन के वकील अपना पक्ष रख रहे हैं। आज इस मामले में अहम सुनवाई होगी। इधर, आज आने वाले फैसले को लेकर शिक्षकों के साथ-साथ शिक्षक संघों में भी खासी गहमागहमी है. बिहार माध्ममिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडेय और महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने उम्मीद जताई है कि कोर्ट द्वारा आने वाला फैसला नियोजित शिक्षकों के हक में आएगा। इस मामले में पिछले सप्ताह भी देश के सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई थी। बिहार के नियोजित शिक्षकों के समान वेतन पर SC में अब अगली सुनवाई 23 को यह भी पढ़ें बता दें कि समान काम के लिए समान वेतन की मांग को लेकर पटना हाइकोर्ट ने शिक्षकों के हक में फैसला सुनाया था। इसके बाद राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इससे पहले केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया था। सरकार के हलफनामे में कहा गया कि नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट में पूर्व में सौंपी गई रिपोर्ट में सरकार ने यह कहा है कि वह प्रदेश के नियोजित शिक्षकों को महज 20 फीसद की वेतन वृद्धि दे सकती है। समान काम समान वेतन पर SC मे हुई सुनवाई, वेतन है शिक्षकों का मौलिक अधिकार यह भी पढ़ें इधर, आज आने वाले फैसले पर शिक्षकों के साथ-साथ शिक्षक संघों की भी नजर रहेगी। बिहार माध्ममिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडेय और महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने उम्मीद जताई है कि कोर्ट द्वारा आने वाला फैसला नियोजित शिक्षकों के हक में होगा।

बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी। इस फैसले पर राज्य के नियोजित शिक्षकों की निगाहें टिकी है। मंगलवार को इस मामले में हुई सुनवाई में शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन ने कोर्ट के …

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फूल सी बेटी पर कोई कैसे ढ़ा सकता है ऐसे कहर, जान कर दिल दहल जाएगा, पढ़ें खबर

कोई पिता अपनी फूल की बेटी की यह हालत कर सकता है और उसे दाने-दाने को तरसा स‍कता है, यकीन नहीं होता। पत्‍थर दिल पिता ने 12 साल की बेटी की यह हालत कर दी कि उसका वजन महज 15 किलाे रह गया और वह बोल तक नहीं पाती। उसके आंखों की रोशनी भी जा सकती है। मां घर छोड़कर गई तो पत्थर दिल पिता ने लड़की को कमरे में बंद कर दिया। उसने एक महीने से अधिक समय से उसे खाना नहीं दिया। बच्ची मौत के मुहाने तक पहुंच गई लेकिन फिर भी पिता का दिल नहीं पसीजा। मां घर छोड़ कर गई तो पिता हुआ पत्थर दिल,एक महीने से अधिक समय से खाना नहीं दिया था बच्ची कुपोषण का शिकार हो चुकी है। उसकी आंखों की रोशनी कभी भी जा सकती है। पिता के चंगुल से छुड़ाकर समाजसेवी संस्था ने जब बच्ची को अस्पताल में भर्ती करवाया तो खाना देख वह उस पर टूट पड़ी। यह दिल दहला देने वाला वाक्‍या अबोहर शहर का है। कमरे में बंद कर रखा था निर्दयी पिता ने, 12 साल की लड़की का वजन हुआ महज 15 किलो जानें एक मां की मजबूरी, डेढ़ साल की बेटी को अपनाने से किया इन्‍कार यह भी पढ़ें अबोहर के नई आबादी क्षेत्र के बड़ी पौड़ी मोहल्ले की गली नंबर एक में चिमनलाल अपनी 12 साल की बेटी और 9 साल बेटे के साथ रहता है। बेटी हिना आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। पत्नी निशा के घर छोड़कर चले जाने के बाद चिमनलाल ने बेटी का स्कूल जाना बंद करवा दिया। बिना मां के पिता ने बच्चे राम भरोसे छोड़ दिए। चिमनलाल एक कॉलेज की कैंटीन में काम करता है। वह सुबह काम पर जाते समय बच्ची को कमरे में बंद कर जाता। रात तक वह कमरे में भूखे-प्‍यासे पड़ी रहती थी। लौटने पर वह थोड़ा पानी वगैरह दे देता था। यह भी पढ़ें: अब 'शून्य' से बाहर निकलने की जंग लड़ रहा योद्धा, खामोशी में बयां हो रही वीरता की कहानी कभी सीवर साफ किया, झाड़ू लगाया, 45 की उम्र में इस शख्स के डांस की दीवानी है दुनिया यह भी पढ़ें नहीं देता था कुछ भी खाने को, अस्‍पताल में खाना देखते ही टूट पड़ी बेटा सोनू स्कूल जाता है। घर पर कुछ खाने को कुछ नहीं होता था इसलिए वह बाहर ही पड़ोसियों के पास कुछ खा लेता था। पिता के डर से बहन की हालत के बारे में वह किसी को कुछ नहीं बताता था। इसी बीच जब लोगों को लड़की के बारे में पता चला तो किसी ने समाजसेवी संस्था नरसेवा नारायण सेवा को इस बारे में जानकारी दी। इसके बाद संस्‍था के पदाधिकारियों ने बच्ची को पिता की कैद से छुड़ाकर सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। पिता की मौत से परेशान युवती ने जहर खाकर जान दी यह भी पढ़ें लड़की को अस्‍पताल में ले जाते लोग। मृतक फौजी भाई का बहन ने हड़पा फंड, पति के मिलकर की धोखाधड़ी यह भी पढ़ें लड़की को जब अस्पताल में हल्का खाना दिया गया तो वह उस पर ऐसे टूट कर पड़ी जैसे पहली बार खाना खा रही हो। बच्ची कुछ बोल भी नहीं पा रही है। डॉक्टर अब धीरे-धीरे उसकी डाइट बढ़ाएंगे। इस घटना का पता चलने पर जिला बाल विकास विभाग के अधिकारी भी अस्पताल पहुंचे। हाथ की नाड़ी से नहीं निकला खून तो पैरों से लिया सैंपल एक महीने से अधिक समय से खाना न मिलने से हिना के शरीर में विटामिन और प्रोटीन की इतनी कमी आ गई है कि शरीर में खून की बहुत कमी हो गई है। जांच के लिए जब खून के सैंपल लेने की बात आई तो हाथ की नसों से खून नहीं निकला। डॉक्टरों को पैरों से खून के सैंपल लेने पड़े। खून की कमी से हिना का शरीर हल्दी जैसा पीला हो गया है। मेरी बच्ची, जिंदा रखूं या मार दूं, मेरी मर्जी मोहल्ले के लोगों ने बताया कि उन्होंने कई बार चिमनलाल को समझाया कि वह लड़की को खाने को दिया करे। वह लोगों को यही जवाब देता है 'मेरी बच्ची है, मैं खाना दूं या न दूं, मारूं या जिंदा रखूं, तुम कौन होते हो पूछने वाले।' आंखों का कॉर्निया हो चुका है खराब : डॉक्टर बच्ची का इलाज कर रहे डॉक्टर साहब राम का कहना है कि उन्होंने पहली बार ऐसा केस देखा है। प्रोटीन की कमी से बच्ची की आंखों का कॉर्निया खराब हो चुका है। आंखों की रोशनी वापस आएगी या नहीं कहना मुश्किल है। कॉर्निया का ट्रांसप्लांट भी करनापड़ सकता है। पिता की मानसिक स्थिति की भी होगी जांच : संस्था लड़की को अस्पताल पहुंचाने वाली संस्था नरसेवा नारायण सेवा के प्रधान राजू चराया का कहना है कि संस्था पिता की भी मानसिक स्थिति की जांच करवा रही है। वह पूरे मामले में ठीक से कुछ नहीं बता रहा है।

कोई पिता अपनी फूल की बेटी की यह हालत कर सकता है और उसे दाने-दाने को तरसा स‍कता है, यकीन नहीं होता। पत्‍थर दिल पिता ने 12 साल की बेटी की यह हालत कर दी कि उसका वजन महज 15 किलाे रह गया और वह बोल तक नहीं पाती। उसके …

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रूह कंपा देने वाली मर्डर मिस्ट्री का सच, जिसने करोड़ों लोगों के उड़ाए थे होश

चार दशक पहले 26 अगस्त, 1978 का दिन हिंदुस्तान कभी नहीं भुला पाएगा, जब दिल्ली की होनहार लड़की गीता और प्रतिभाशाली लड़के संजय चोपड़ा को दो बदमाशों रंगा-बिल्ला ने मौत की नींद सुला दिया था। दोनों रिश्ते में भाई-बहन थे। उस दिन दोनों ने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) जाने के लिए बदमाश रंगा और बिल्ला से लिफ्ट मांगी थी। लिफ्ट देने के बाद दोनों बदमाशों ने चलती कार में गीता और संजय चोपड़ा के साथ मारपीट की और उसी रात दोनों की हत्या कर झाड़ियों में फेंक दिया था। 29 अगस्त, 1978 को दोनों की हत्या की बात सामने आई तो निर्भया की तरह पूरा देश उबल पड़ा। दरअसल, हत्या से पहले गीता चोपड़ा के साथ दुष्कर्म भी किया गया था। मीडिया और देश की जनता के दबाव में आखिरकार पुलिस ने कड़ी मेहनत के बाद दोनों को पकड़ा और 4 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद रंगा-बिल्ला को फांसी मिली। वहीं, बाद में केंद्र सरकार बहादुर बच्चे-बच्चियों के लिए ब्रेवरी अवार्ड लाई। जिसका नाम गीता और संजय चोपड़ा के नाम पर रखा गया। यह ब्रेवरी अवॉर्ड तब से हर साल 26 जनवरी की परेड के दौरान बहादुर बच्चों को दिया जाता है। आरुषि मर्डर मिस्ट्रीः 10 साल बाद भी वही सवाल, L-32 में आखिर क्या हुआ था उस रात? यह भी पढ़ें संजय ने बहन को बचाने के लिए लगा दी थी जान की बाजी जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि लिफ्ट देने के बाद रंगा और बिल्ला ने लूटपाट के इरादे से दोनों का अपहरण किया था। लेकिन इस दौरान शक होने पर गीता और संजय चोपड़ा ने कार रोकने की जिद की, लेकिन रंगा-बिल्ला ने कार नहीं रोकी तो भाई-बहन दोनों से भिड़ गए। संजय उस वक्त 10वीं कक्षा का छात्र था, लेकिन 5 फुट 10 इंच की लंबाई वाला संजय अच्छा बॉक्सर भी था। बहन के विरोध के साथ वह भी रंगा-बिल्ला से भिड़ गया। हताश बदमाशों ने दिल्ली में ही एक सुनसान स्थान में ले जाकर गीता के साथ दरिंदगी की। इस बीच बीच संजय ने जान की बाजी लगा कर अपनी बहन को बचाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन रंगा-बिल्ला ने उसे मार डाला। फिर पकड़े जाने के डर से उनहोंने गीता की भी हत्या करके शव को एक झाड़ी में फेंक दिया। EXCLUSIVE: इन 10 सवालों ने आरुषि हत्याकांड को बनाया मर्डर मिस्ट्री, जानिए कहां हुई चूक यह भी पढ़ें गुस्से में थी दिल्ली, हुआ था जबरदस्त प्रदर्शन होनहार भाई-बहन संजय चोपड़ा और गीता चोपड़ा की हत्या से दिल्ली की जनता बेहद नाराज थी। उनकी नाराजगी दिल्ली पुलिस के रवैये को लेकर भी थी। समय बीतने के साथ लोगों का गुस्सा भड़कता गया। गीता चोपड़ा दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस स्थित जीसस एंड मैरी कॉलेज में कॉमर्स सेकेंड ईयर की छात्रा थी।ऐसे में छात्रों में भी जबरदस्त गुस्सा था। आरुषि मर्डरः राजेश व नूपुर की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, SC में अहम सुनवाई आज यह भी पढ़ें उस दौर में निर्भया के प्रदर्शन जैसी स्थिति हो गई थी। देश भर में प्रदर्शन हो रहे थे। अचानक एक दिन छात्रों का हुजूम बोट क्लब पहुंच गया। गुस्साए कई छात्र तो तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के घर तक पहुंच गए और दिल्ली पुलिस के खिलाफ नारे लगाने लगे। उधर, छात्र-छात्राओं की भीड़ बोट क्लब पर बढ़ती जा रही थी। इनमें जीसस एंड मेरी कॉलेज की छात्राओं की संख्या सर्वाधिक थी। उस दौरान छात्र संगठन भी सड़कों पर थे। छात्रों के गुस्से का शिकार हुए थे पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, पथराव में फूटा था सिर बोट क्लब पर बढ़ती प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने पुलिस प्रशासन के साथ केंद्र सरकार को भी चिंतित कर दिया था। प्रदर्शकारी छात्र-छात्राएं लगातार आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे, लेकिन पुलिस थी कि वह अंधेरे में ही तीर चला रही थी। तब तत्कालीन एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्ट्री संभाल रहे केंद्रीय मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बोट क्लब पहुंचे और प्रदर्शनकारी छात्रों से बातचीत करने लगे। ‘उड़ता पंजाब’ ही नहीं नशे में उड़ रहे कई राज्य, देश में 455 फीसद बढ़ा ड्रग्स का बाजार यह भी पढ़ें इसी दौरान छात्रों का एक समूह इस कदर भड़का कि उसने पथराव शुरू कर दिया। पत्थराव के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को भी पत्थर लगे और उनके माथे से खून निकलने लगा और देखते-देखते उनका कुर्ता खून में सन गया। बताया जाता है कि अटल बिहारी के माथे पर बाईं ओर चोट आई थी। छात्रों की इस हिंसक प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने मामले की जांच क्राइम ब्रांच से लेकर केेंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) को सौंप दी थी। वारदात के बाद मुंबई फिर दिल्ली भी आया रंगा, नहीं पकड़ सकी पुलिस शातिर अपराधी और गीता-संजय चोपड़ा के हत्यारे रंगा-बिल्ला यह मान चुके थे कि वह कभी पकड़े ही नहीं जाएंगे। यही वजह थी कि वह आराम से दिल्ली और देश के दूसरे कोनों में घूम रहे थे। दोनों में से एक अपराधी रंगा तो और भी निश्चिंत था। जहां वारदात के बाद बिल्ला दिल्ली में आराम से रह रहा था, तो वहीं रंगा मुंबई चला गया। वह वहां भी छोटी-मोटी वारदात को अंजाम दे रहा था। इस पूरे मामले में पुलिस की लापरवाही भी सामने आई थी। जांच में खुलासा हुआ था कि 26 अगस्त, 1978 को गीता और संजय चोपड़ा की निर्मम हत्या करने के बाद रंगा बंबई (अब मुंबई) चला गया था ओर वहां भी उसने अपराध किए थे। बाद में वह दिल्ली आया अपने साथी बदमाश बिल्ला के साथ आगरा चला गया। हैरानी की बात है कि वह ट्रेन या बस के जरिये आगरा गया, लेकिन पुलिस दोनों का पकड़ नहीं सकी। इत्तेफाक से पकड़े गए थे रंगा-बिल्ला जनता के प्रदर्शन और राजनीतिक दबाव के बीच दिल्ली पुलिस रंगा और बिल्ला को शिकारी की तरह ढूंढ़ रही थी, लेकिन वह दोनों अपनी ही एक गलती की वजह से पुलिस के हत्थे चढ़े थे। बताया जाता है कि आगरा से लौटते समय दोनों ने ट्रेन में सैनिकों से मारपीट भी कर ली थी। इसके बाद सैनिकों ने इन्हें पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। वारदात के 12 दिन बाद यानी 8 सितंबर 1978 को रंगा-बिल्ला पुलिस से भागने की कड़ी में आगरा से लौटने के दौरान कालका मेल में चढ़ रहे थे। उस समय रेलवे स्टेशन पर 100 से ज्यादा पुलिस वाले सादी वर्दी में खड़े थे। पुलिस को नहीं पता था कि रंगा-बिल्ला आने वाले हैं। हुआ यूं कि ये दोनों आर्मी वालों के लिए आरक्षित डिब्बे में चढ़ गए। इस बीच दो सैनिकों ने इनसे सवाल-जवाब किया तो आदत से मजबूर रंगा-बिल्ला उन पर ही रौब झाड़ने लगे। इस पर आर्मी वालों ने इनको पीटा और पुलिस के हवाले कर दिया। मां-बाप बच्चों का नाम नहीं रखते रंगा-बिल्ला हत्या और दरिंदगी के इस मामले से रंगा-बिल्ला नाम बदनाम हो गया। हालांकि, रंगा-बिल्ला इनका असली नाम नहीं था, बल्कि यह इन दोनों का निकनेम था। बावजूद इसके बाद कोई मां-बाप अपने बच्चों का नाम रंगा-बिल्ला रखना पसंद नहीं करता। बिल्ला मतलब जसबीर सिंह और इस मर्डर केस में उसका साथी था रंगा खुस, जिसका असली नाम था कुलजीत सिंह। ऑल इंडिया रेडियो में प्रोग्राम देना था दोनों को संजय व गीता के पिता मदन मोहन चोपड़ा नेवी में अधिकारी थे और मां रोमा घरेलू महिला थीं। संजय और गीता दोनों भाई-बहन बेहद प्रतिभाशाली थे। दोनों ऑल इंडिया रेडियो में युववाणी में प्रोग्राम करते थे। हादसे के दिन 26 अगस्त 1978 को उन्हें ऑल इंडिया रेडियो के लिए संसद मार्ग जाना था। दरअसल, दोनों को 7 बजे वेस्टर्न गानों के एक फरमाइशी प्रोग्राम ‘इन द ग्रूव’ में हिस्सा लेना था। प्रोग्राम खत्म कर तकरीबन दो घंटे बाद यानी नौ बजे पिता मदन मोहन चोपड़ा के साथ दोनों को वापस लौटना था। माता-पिता दोनों संजय-गीता का 8 बजे होने वाला प्रोग्राम सुनने के लिए बेताब थे। रेडियो ऑन करने पर उन्हें ताज्जुब हुआ, क्योंकि उनका प्रोग्राम ही रद हो गया था। उनके स्थान पर दूसरा प्रोग्राम ब्रॉडकास्ट हो रहा था। बावजूद इसके पिता मदन मोहन अपने बच्चों संजय-गीता को लेने नौ बजे ऑल इंडिया रेडियो पहुंचे। वहां नहीं मिले तो घर लौटे, लेकिन दोनों वहां पर भी नहीं थे। यूं हुआ था संजय-गीता का अपहरण 26 अगस्त 1978 को रंगा-बिल्ला नाम के दो अपराधी चोरी की कार लेकर दिल्ली की सड़कों पर घूम रहे थे। इस दौरान दोनों पेशेवर अपराधी किसी शिकार की तलाश में थे। ये महज इत्तेफाक था कि नई दिल्ली के गोल डाकखाना के पास इनकी कार गुजरने के दौरान संजय और गीता ने उनसे लिफ्ट मांगी। इस पर दोनों ने उन्हें बिठा लिया। संजय और गीता के कपड़ों और बातचीत से रंगा-बिल्ला ने भांप लिया था कि दोनों अमीर घर हैं और अपहरण करके इनके परिवार से अच्छी-खासी रकम फिरौती के रूप में हासिल की जा सकती है। इसके बाद रंगा-बिल्ला ने कार में संजय-गीता का अपहरण कर लिया। अपहरण के बाद अचानक हो गई एक अनहोनी रंगा-बिल्ला ने संजय-गीता का अपहरण करने के बाद यह तय कर लिया था कि इनके मां-बाप से मोटी रकम वसूलने के बाद इन्हें छोड़ देंगे। लेकिन इस दौरान उनकी कार एक बस से टकरा कर क्षतिग्रस्त हो गई। संजय-गीता को अचानक हुआ अनहोनी का अहसास कार हादसे के बाद रंगा-बिल्ला की शारीरिक भाषा से संजय-गीता को लग गया था कि वे इस कार में फंस गए हैं।दोनों कार को रोकने के लिए रंगा-बिल्ला से भिड़ गए। कई राहगीरों ने चारों को गुत्थम-गुत्था होते हुए देखा भी और बाद में इन्होंने गवाही भी दी। चोरी की गाड़ी के नंबर से गफलत में रही पुलिस मामला हाईप्रोफाइल था और एफआइआर दर्ज करते ही पुलिस कार और आरोपियों की तलाश में जुट गई। इस दौरान एक चश्मदीद सामने आए, जिनका नाम भगवान दास था। उन्होंने बताया कि दो लोग एक फिएट में बच्चों को जबरन ले जा रहे थे। नींबू के कलर की एक फिएट गोल मार्केट चौराहे पर उनके पास से गुजरी थी। उसकी पिछली सीट में संजय और गीता थे। भगवान दास ने गाड़ी का नंबर एमआरके 8930 बताया था। रंगा-बिल्ला ने कार चोरी करने के बाद उसका नंबर बदल दिया था। इससे पुलिस की उलझन बढ़ गई थी। चोरी की कार थी हरियाणा के रविंदर गुप्ता की पुलिस ने दबाव बढ़ता देखकर अपनी जांच का दायर बढ़ा दिया। जांच की कड़ी में उस कार और कार के मालिक को खोजने के लिए पुलिस ने ट्रांसपोर्ट विभाग की मदद भी ली। जांच के दौरान पता चला कि कार पानीपत के रहने वाले रविंदर गुप्ता की थी। पुलिस ने पानीपत पहुंचने पर पाया कि नंबर तो एचआरके 8930 था, लेकिन कार फिएट नहीं थी। हालांकि, पुलिस अब इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि उस पर फर्जी नंबर प्लेट लगी थी। आखिरकार मिल ही गई वारदात वाली कार भारी दबाव और जांच के दौरान 31 अगस्त को कार मजलिस पार्क में मिली। कार का नंबर डीएचडी 7034 था और इस नंबर की कार चोरी हो गई थी। हैरानी की बात यह थी कि इसी मॉडल की एक और कार चोरी हुई थी और इसका नंबर डीईए 1221 था। कार के मालिक अशोक शर्मा के मुताबिक, नई दिल्ली के अशोका होटल के सामने से कार चोरी हुई थी। अशोक ने उसे चोरी के छह हफ्ते पहले ही खरीदा था। जांच में मिला कि स्टीरियो और स्पीकर गायब थे। पहली नजर में उसमें कुत्ते की चैन और कई ब्लेड्स मिलीं। दो नंबर प्लेट्स भी मिलीं जिसमें एक असली थी। कार की सफेद ग्रिल को बदल कर काला कर दिया गया था। जांच में बालों के गुच्छे और खून के धब्बे भी मिले। अनहोनी अब होनी में तब्दील हो गई थी। फिंगरप्रिंट्स और दूसरे फोरेंसिक सबूतों ने साफ तौर पर बता दिया था कि इस केस में बिल्ला का हाथ है। 29 अगस्त को शुरू हुई थी पुलिस की असली चुनौती रंगा पहले ट्रक ड्राइवर था। हालांकि, वह बाद में मुंबई में टैक्सी चलाने लगा था। इस बीच उसे शाम सिंह नाम के आदमी ने बिल्ला से मिलवाया था। बताया जाता है कि इस मुलाकात के चंद दिनों पहले ही बिल्ला ने दो अरब नागरिकों को मारा था। क्रिमिनल माइंड का होने के चलते रंगा-बिल्ला दोनों एक साथ गैंग चलाने लगे। टैक्सी की जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि संजय और गीता का अपहरण और हत्या रंगा-बिल्ला ने ही की है। इसके बाद पुलिस ने देश के कई राज्यों में रंगा-बिल्ला की खोज में टीमों को लगा दिया। आखिरकार दोनों को पकड़ लिया गया। 31 जनवरी, 1982 को रंगा-बिल्ला को दी गई फांसी पुलिस के हत्थे चढ़े रंगा-बिल्ला को लेकर लोगों में भारी रोष था। देश का हर शख्स चाहता था कि रंगा-बिल्ला को फांसी हो। जांच में पाया गया था कि दोनों ने वारदात के दौरान कार में कई अहम सबूत छोड़े थे। सड़क पर कार दौड़ाने के दौरान कई गवाह भी मिल गए थे। गीता चोपड़ा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह पता चला था कि उसके साथ दरिंदगी हुई थी। हालांकि, कानूनी प्रक्रिया में चार साल लगे और आखिरकार 31 जनवरी, 1982 को दोनों को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।

चार दशक पहले 26 अगस्त, 1978 का दिन हिंदुस्तान कभी नहीं भुला पाएगा, जब दिल्ली की होनहार लड़की गीता और प्रतिभाशाली लड़के संजय चोपड़ा को दो बदमाशों रंगा-बिल्ला ने मौत की नींद सुला दिया था। दोनों रिश्ते में भाई-बहन थे। उस दिन दोनों ने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) जाने के …

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आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड, नए भूस्खलन जोन का भू-वैज्ञानिक सर्वे

प्रदेश में इन दिनों हो रही भारी बारिश के चलते जगह-जगह नए भूस्खलन जोन सामने आने से आपदा प्रबंधन महकमे की नींद उड़ी हुई है। फिर चाहे वह बागेश्वर का कपकोट क्षेत्र हो अथवा पौड़ी जिले में कोटद्वार के नजदीक लालपुल के नजदीक का क्षेत्र या फिर दूसरे इलाके। ये न सिर्फ सांसें अटका रहे हैं, बल्कि पहाड़ की लाइफ लाइन कही जाने वाली सड़कों को भी बाधित किए हुए हैं। सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी के अनुसार इस समस्या से निबटने के मद्देनजर सभी जिलाधिकारियों को नए भूस्खलन जोन का भू-वैज्ञानिक सर्वे कराने को कहा गया है, ताकि इसके आधार पर ट्रीटमेंट किया जा सके। आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में हर साल ही बरसात जनजीवन पर भारी पड़ती है। खासकर उन पर्वतीय इलाकों में, जो भूस्खलन की जद में हैं। वहां वर्षाकाल काला पानी की सजा से कम नहीं होता। थोड़ी सी बारिश हुई नहीं कि भूस्खलन की आशंका से सांसें अटकने लगती हैं। यही नहीं, जगह-जगह सड़कें बाधित होने से आवाजाही में दिक्कत के साथ ही रोजमर्रा की जरूरतों की किल्लत से जूझना पड़ता है सो अलग। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि प्रदेशभर में विभिन्न मार्गों पर भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील 43 भूस्खलन जोन लोक निर्माण विभाग ने चिह्नित किए हैं। इसके अलावा चार सौ से अधिक गांव भूस्खलन की दृष्टि से खासे संवेदनशील माने गए हैं। इस मर्तबा हो रही बारिश से न सिर्फ नए भूस्खलन जोन सामने आ रहे है, बल्कि गांवों के लिए भी खतरा बढ़ा है। जाहिर है कि इससे सरकार की पेशानी पर भी बल पड़े हैं। कुछ इस तरह खतरा उठाकर जर्जर पुलों से होकर गुजर रही जिंदगी यह भी पढ़ें सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी ने भी माना कि इस बरसात में जगह-जगह नए भूस्खलन जोन सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में सभी जिलाधिकारियों से जानकारी मांगी गई है। इसमें सड़कों के साथ ही भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील गांवों के बारे में विस्तृत ब्योरा मांगा गया है। उन्होंने बताया कि जितने भी नए भूस्खलन जोन सामने आ रहे हैं, उनके भू-वैज्ञानिक सर्वे के बाद इनके ट्रीटमेंट के लिए कदम उठाए जाएंगे। इसमें वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान समेत अन्य संस्थाओं की मदद भी ली जाएगी। नैनीताल की माल रोड पर मांगी रिपोर्ट केदारनाथ आपदा के पांच सालः रुद्रप्रयाग में रखी हैं अंतिम निशानियां यह भी पढ़ें सचिव आपदा प्रबंधन के मुताबिक सरोवरनगरी नैनीताल में माल रोड पर भू-धंसाव के मद्देनजर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र (डीएमएमसी) की टीम निरीक्षण के लिए भेजी गई है। वह स्थलीय निरीक्षण के साथ ही भू-धंसाव के कारणों की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट देगी। इसके अलावा अन्य वैज्ञानिक संस्थानों से भी सहयोग मांगा गया है, ताकि माल रोड पर बेहतर ट्रीटमेंट कर भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने पाए।

प्रदेश में इन दिनों हो रही भारी बारिश के चलते जगह-जगह नए भूस्खलन जोन सामने आने से आपदा प्रबंधन महकमे की नींद उड़ी हुई है। फिर चाहे वह बागेश्वर का कपकोट क्षेत्र हो अथवा पौड़ी जिले में कोटद्वार के नजदीक लालपुल के नजदीक का क्षेत्र या फिर दूसरे इलाके। ये …

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पुलिस ने खंगाली कचहरी, चौकन्ना रहने का निर्देश

कचहरी सीरियल ब्लॉस्ट के आरोपियों की पेशी को लेकर कचहरी में सुरक्षा सख्त रही। सीरियल ब्लॉस्ट के दो आरोपियों को सजा होने के बाद मंगलवार को तारिक काजमी और मोहम्मद अख्तर की यहां पेशी मंडल कारागार में थी, लेकिन इसका असर कचहरी में भी दिखा। एसपी सिटी अनिलकुमार ¨सह के नेतृत्व में अचानक पहुंचे पुलिस बल ने कचहरी के चप्पे-चप्पे की तलाशी ली। मुल्जिम ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों को हिदायत दी गई कि अभियुक्तों के आसपास भीड़ एकत्र न होने दें। एसपी सिटी ने कचहरी सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को चौकन्ना रहने की हिदायत दी। मौके पर एक पुलिस कर्मी की वर्दी में कमी मिलने पर स्पष्टीकरण तलब किया गया। एक मेडल डिटेक्टर भी खराब पाया गया, जिसे ठीक कराने के लिए निर्देशित किया गया। कचहरी की सुरक्षा व निगरानी को लेकर अधिवक्ताओं से भी सहयोग मांगा है।

कचहरी सीरियल ब्लॉस्ट के आरोपियों की पेशी को लेकर कचहरी में सुरक्षा सख्त रही। सीरियल ब्लॉस्ट के दो आरोपियों को सजा होने के बाद मंगलवार को तारिक काजमी और मोहम्मद अख्तर की यहां पेशी मंडल कारागार में थी, लेकिन इसका असर कचहरी में भी दिखा। एसपी सिटी अनिलकुमार ¨सह के …

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2019 फतह करने के लिए सपा ने तैयार की अपनी टीम

2019 लोक सभा चुनाव में पार्टी का परचम लहराने के लिए समाजवादी पार्टी ने कमर कस ली है। इस क्रम में समाजवादी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने जिला कार्यकारिणी में बदलाव करते हुए कुछ नए चेहरों को जगह दी है तो कुछ को पुरानी जिम्मेदारी सौंपी गई है। कुछ कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों में विस्तार करते हुए जिलाध्यक्ष प्रहलाद यादव ने जिला कार्यकारिणी की नई सूची जारी कर दी। राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर जिलाध्यक्ष प्रहलाद यादव की तरफ से जारी नई सूची में प्रहलाद यादव को जिलाध्यक्ष, जवाहर लाल मौर्य को जिला महासचिव बनाया गया है। राजमन यादव को जिला उपाध्यक्ष से सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दयानंद विद्रोही और रामनाथ यादव को उपाध्यक्ष तो मीडिया प्रभारी राघवेंद्र तिवारी राजू को मीडिया प्रभारी के साथ-साथ सचिव पद का भी दायित्व सौंपा गया है। मिर्जा कदीर बेग, पंकज शाही, अशोक यादव, श्याम देव निषाद को जिला उपाध्यक्ष, सत्येंद्र गुप्ता जिला कोषाध्यक्ष, राघवेंद्र तिवारी राजू , जयराम यादव, गिरधारी सिंह सैंथवार, जयप्रकाश यादव, रामअवतार विश्वकर्मा, रामबचन यादव, फसीरुद्दीन उर्फ पप्पू चौधरी, मनमोहन यादव, शक्ति सिंह, श्याम मिलन यादव, देवेन्द्र भूषण निषाद, रमेश यादव, ओम प्रकाश, खरभान यादव को जिला सचिव नामित किया गया है। इन्हें बनाया गया कार्यकारिणी सदस्य जनहित की कोई योजना लागू नहीं कर पाई सरकार : माता प्रसाद यह भी पढ़ें राजेश सिंह सैंथवार, कैलाश राजभर, फूलचंद विश्वकर्मा, झीनक पाल, रमाशकर प्रजापति, पन्नेलाल यादव पहलवान, अर्जुन मौर्या, सूर्यभान शर्मा, पतासी देवी गौड़, मीना गुप्ता, जानकी देवी, रामजीत यादव, नावेद मलिक अहमद, अवधेश पाडेय, अली हुसैन मैना भाई, रामनरायण यादव, दीनानाथ आजाद, अलबेला यादव, रामलखन गौड़, छोटे लाल राजभर, नन्दलाल कन्नौजिया, रत्‍‌नेश यादव, सुरेन्द्र यादव को कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया है।

2019 लोक सभा चुनाव में पार्टी का परचम लहराने के लिए समाजवादी पार्टी ने कमर कस ली है। इस क्रम में समाजवादी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने जिला कार्यकारिणी में बदलाव करते हुए कुछ नए चेहरों को जगह दी है तो कुछ को पुरानी जिम्मेदारी सौंपी गई है। कुछ कार्यकर्ताओं …

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चंद्रशेखर आजाद और अटल बिहारी वाजपेयी दोनों महामानव : राम नाईक

अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने जिस तरह देश के लिए अपने प्राणों को त्यागकर महामानव की छवि प्रस्तुत की। ठीक उसी तरह देश के विकास में अहम योगदान देने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हमें महामानव मानना होगा। सूबे के राज्यपाल राम नाईक ने यह बात बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी ंिंवश्वविद्यालय (सीएसए) में इंडियन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज एसोसिएशन द्वारा आयोजित दो दिवसीय कुलपति सम्मेलन के उद्घाटन सत्र पर कही। उन्होंने यहां आते ही सबसे पहले शहीद चंद्रशेखर आजाद की नवनिर्मित प्रतिमा का उद्घाटन किया। राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति का कार्यकाल पांच वर्ष हो, इसके लिए कमेटी गठित हुई है। सीएम के संज्ञान में भी मामला है, आशा है कि जो परिणाम होगा वह सकारात्मक होगा। बोले आजादी के 70 वर्षो बाद यूपी में जमीन लगभग उतनी है, पर आबादी जरूर तीन गुना बढ़ी। फिर भी प्रदेश के किसानों ने यह कमाल कर दिखाया कि हम आयात से निर्यात की स्थिति में पहुंच गए। कार्यक्रम के दौरान प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि देश में इस वर्ष रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन 28 करोड़ 38 लाख टन हुआ है। जिसमें 578 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन उत्तर प्रदेश से है। हालांकि निराशा जताते हुए कहा कि पिछले 15 वर्षो में कृषि विज्ञान केंद्र उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके, जितनी उनसे उम्मीद थी। बोले, फसलों का उत्पादन बढ़ा है पर लागत अधिक होने से किसानों की आय नहीं बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है। स्वागत भाषण सीएसए कुलपति प्रो. सुशील सोलोमन ने दिया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से भारतीय कृषि विश्वविद्यालय के कार्यकारी सचिव डॉ.आरपी सिंह, रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.अरविंद कुमार, आइसीएआर के उप निदेशक (प्रसार) डॉ.एके सिंह आदि मौजूद रहे

अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने जिस तरह देश के लिए अपने प्राणों को त्यागकर महामानव की छवि प्रस्तुत की। ठीक उसी तरह देश के विकास में अहम योगदान देने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हमें महामानव मानना होगा। सूबे के राज्यपाल राम नाईक ने यह बात …

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केजीएमयू में वार्ड से लेकर ओपीडी तक कामकाज ठप, टले सवा सौ ऑपरेशन-दांव पर हजारों की जान

केजीएमयू के जूनियर डॉक्टरों ही हड़ताल से चिकित्सकीय सेवाएं चरमरा गई। वार्डो में भर्ती हजारों मरीजों की जिंदगी दांव पर रही। वहीं ओटी में काम ठप होने से तमाम मरीजों के ऑपरेशन नहीं हो सके। यही नहीं दूर-दराज से ओपीडी में आए लोगों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ा। केजीएमयू में चार हजार बेड हैं। वहीं वार्डो में 3500 के करीब मरीज भर्ती थे। इनमें से पांच सौ गंभीर मरीजों का इलाज ट्रॉमा सेंटर, आइसीयू, क्वीनमेरी व लॉरी इमरजेंसी में चल रहा था। इनमें जूनियर डॉक्टर ड्यूटी पर तैनात रहे। वहीं वार्डो में काम ठप कर दिया गया। ऐसे में विभिन्न विभागों में भर्ती तीन हजार मरीजों की जिंदगी दांव पर रही। यहां सुबह सीनियर डॉक्टर राउंड लेकर चले गए। मरीजों की देखभाल नर्सो के भरोसे रही। करीब 10 घंटे मरीजों की जान सांसत में रही। केजीएमयू में जूनियर डॉक्टरों से मारपीट, इमरजेंसी सेवाएं ठप-घंटो गिड़गिड़ाते रहे तीमारदार यह भी पढ़ें हालत गंभीर, फोन कर पूछा इलाज : गांधी वार्ड में कई गंभीर मरीज भर्ती थे। यहां सीनियर सुबह राउंड लेकर चले गए। इस दौरान एक बजे के करीब दो मरीजों की हालत गंभीर हो गई। जूनियर डॉक्टरों के मौके पर न होने से नर्स इलाज को लेकर दुविधा में पड़ गई। ऐसे में उन्होंने सीनियर डॉक्टर को फोन पर मरीज की हालत बताई। इसके बाद डॉक्टर की सलाह पर मरीज को दवा दी। ऐसा ही हाल न्यूरो सर्जरी, गैस्ट्रो सर्जरी, सीटीवीएस व अन्य विभागों का भी रहा। ओपीडी और वार्डो से जबरन निकाला: केजीएमयू में 54 भवन में 81 लिफ्ट, 10 में दांव पर जान यह भी पढ़ें रेजीडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (आरडीए) के पदाधिकारियों ने सुबह आठ बजे से कार्य ठप करने का एलान किया। कलाम सेंटर पहुंचे पदाधिकारियों को जूनियर डॉक्टरों की संख्या कम दिखी। ऐसे में झुंड में पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने न्यू ओपीडी, डेंटल ओपीडी ब्लॉक व वार्डो में भ्रमण कर ड्यूटी कर रहे जूनियर डॉक्टरों को जबरन बाहर निकाला। साथ ही प्रदर्शन स्थल पर पहुंचने का निर्देश दिया। ऑपरेशन के इंतजार में घंटों रहे भूखे: केजीएमयू में करीब 54 ओटी हैं। इनमें हर रोज माइनर और मेजर मिलाकर 200 के करीब ऑपरेशन होते हैं। स्थिति यह रही कि मंगलवार को एनेस्थीसिया के सीनियर रेजीडेंट ने मरीजों को बेहोशी देने से मना कर दिया, वहीं अन्य ने ऑपरेशन के बाद मरीज को केयर करने से हाथ खड़े कर दिए। सिर्फ ट्रॉमा की इमरजेंसी ओटी पूरी तरह रन रही। वहीं जनरल सर्जरी, क्वीनमेरी, नेत्र रोग अन्य विभागों में गंभीर केस बताकर लगभग 70 से 75 मरीजों का ऑपरेशन किया गया। इसके अलावा पीडियाट्रिक सर्जरी, आर्थोपेडिक, प्लास्टिक सर्जरी, यूरोलॉजी, सीटीवीएस, डेंटल के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल समेत विभिन्न विभागों में करीब 125 इलेक्टिव सर्जरी टाल दी गई। ऐसे में सर्जरी के इंतजार में रात से भूखे रहे मरीज बेहाल हो गए। एंजियोग्राफी व एंजियो प्लास्टी भी टली: लारी कार्डियोलॉजी में भी गंभीर मरीजों की ही एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी व पेसमेकर डाले गए। वहीं दूर-दराज से आए करीब आठ मरीजों को हड़ताल बताकर वापस कर दिया गया। यहां भी इमरजेंसी में जूनियर डॉक्टर मिले, जबकि वार्ड में इलाज नर्सो के भरोसे ही रहा। पैथोलॉजी में भी काम प्रभावित: मुख्य पैथोलॉजी में भी दिन में काम प्रभावित रहा। सैकड़ों मरीजों की रिपोर्टिग व जांचें नहीं हो सकीं। कलेक्शन सेंटर से लाए गए सैंपल पैथोलॉजी में टेक्नीशियन ने रन किया। मगर डॉक्टरों के न होने से शाम तक मरीजों को रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ा। ओपीडी-क्वीनमेरी में हंगामा: न्यू ओपीडी ब्लॉक व क्वीनमेरी के ओपीडी में जूनियर डॉक्टरों ने काम बंद करा दिया। ऐसे में सीनियर डॉक्टर पर ही मरीजों के चेकअप व हिस्ट्री नोट करने की जिम्मेदारी आ गई। इससे वहां मरीजों की लंबी लाइनें लग गई। भीड़ ने देर होने पर जमकर हंगामा किया। क्वीनमेरी में गर्भवती महिलाओं को भटकना पड़ा। कर्मियों के मुताबिक अव्यवस्था के चलते करीब दो हजार मरीज बगैर इलाज के ओपीडी से लौट गए। दिनभर का घटनाक्रम: -08:00 बजे आरडीए के पदाधिकारी कलाम सेंटर के समक्ष पहुंचे -08:45 बजे तक भीड़ कम रही, ऐसे में वार्ड और ओपीडी कूच किया -09:00 बजे वार्डो व ओपीडी में ड्यूटी कर रहे जूनियर डॉक्टरों को जबरन बाहर निकाला गया -10:00 बजे कुलपति से वार्ता का प्रस्ताव लेकर पहुंचे सीएमएस, एमएस व एफओ को लौटाया - 10:45 बजे वाइस डीन स्टूडेंट वेलफेयर के समझाने पर कुलपति से वार्ता के लिए राजी हुए -05:00 बजे प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा से वार्ता के बाद हड़ताल समाप्त, मीडिया पर रहा प्रतिबंध -06:00 बजे जूनियर डॉक्टर वार्डो में ड्यूटी पर पहुंचे क्या कहते हैं जिम्मेदार? केजीएमयू आइटी सेल के इंचार्ज डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि जूनियर डॉक्टरों ने पीजीआइ के समान मानदेय को लेकर कार्य बहिष्कार की घोषणा की थी। सीएमएस के साथ उनके प्रतिनिधिमंडल दल ने शासन स्तर से वार्ता की। इसके बाद शाम को सभी काम पर लौट आए। इमरजेंसी सेवाएं निर्बाध तरीके से चलती रहीं, मगर कुछ विभागों में ऑपरेशन नहीं हो सके।

केजीएमयू के जूनियर डॉक्टरों ही हड़ताल से चिकित्सकीय सेवाएं चरमरा गई। वार्डो में भर्ती हजारों मरीजों की जिंदगी दांव पर रही। वहीं ओटी में काम ठप होने से तमाम मरीजों के ऑपरेशन नहीं हो सके। यही नहीं दूर-दराज से ओपीडी में आए लोगों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ा। …

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विशेषाधिकार हननः बिना शर्त लिखित माफी मांगने पर छूटे पीलीभीत के पुलिस अधीक्षक

एसपी पीलीभीत ने आज सुबह दस बजे विधान परिषद सभापति के कक्ष में हुई बैठक में बिना शर्त मौखिक और लिखित माफी मांगी । जिसके बाद सभापति ने उन्हें माफ़ कर दिया। बताया गया कि सदन में उपस्थित होने के कारण उन्हें माफ़ कर दिया गया है। बताते चलें कि विधान परिषद के सभापति रमेश यादव ने विशेषाधिकार हनन के मामले में पीलीभीत के पुलिस अधीक्षक (एसपी) बालेन्दु भूषण सिंह को बुधवार को सदन में तलब किया गया था। सदन में इस मामले को सपा सदस्य शतरुद्र प्रकाश ने उठाया था। शतरुद्र ने बताया कि पीलीभीत के थाना बीसलपुर में बीती 17 अगस्त को दर्ज हुई एक एफआइआर के सिलसिले में वह 21 अगस्त को विधान परिषद सभापति से बातचीत करने गए थे। उनके आग्रह पर सभापति ने सच्चाई जानने के लिए पीलीभीत के एसपी को दोपहर लगभग तीन बजे फोन मिलवाया। उधर से बताया गया कि एसपी, जिलाधिकारी के साथ दौरे पर हैं। इस पर सभापति ने डीएम को फोन मिलवाया। डीएम से कहा गया कि वह एसपी की सभापति से बात करवायें। डीएम ने एसपी को फोन दिया लेकिन, उन्होंने सभापति से बात करने की बजाय फोन काट दिया। फिर सभापति ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को मामले की जानकारी दी तो उन्होंने खुद एसपी को फोन मिलवाया लेकिन, बात नहीं हो सकी। बकौल शतरुद्र, कुछ समय बाद जब बात हुई तो एसपी ने सभापति से फोन पर कहा कि 'इस मामले में कई एमएलसी फोन कर चुके हैं, आज मौर्य (आशय केशव प्रसाद मौर्य से) का भी फोन आया था लेकिन, मैं तो उसे (एफआइआर से संबंधित कोई व्यक्ति) हर हाल में बड़े घर (जेल) भेजूंगा। उन्होंने एसपी के व्यवहार को सभापति की गरिमा और सदन के विशेषाधिकार हनन का कृत्य बताते हुए उन्हें सदन में बुलाकर दंडित करने की मांग की। खुद सभापति को इस घटना का उल्लेख करना पड़ा। स्वतंत्रता दिवस पर छह पुलिसकर्मियों को राष्ट्रपति का पुलिस पदक, 70 को सराहनीय सेवा मेडल यह भी पढ़ें सभी दलों के सदस्य एसपी को सदन में बुलाकर दंडित करने की मांग पर एकमत थे। नेता सदन डॉ.दिनेश शर्मा की अनुपस्थिति में उनका दायित्व संभाल रहे कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने सभापति से अनुरोध किया कि एसपी को सदन में बुलाने से पहले एक बार वह उन्हें बुलाकर उनका पक्ष जान लें। इस पर विपक्षी दलों के सदस्यों ने तीखी आपत्ति जतायी। अंतत: सभापति ने सरकार को निर्देश दिया कि एसपी पीलीभीत को बुधवार दोपहर एक बजे सदन की बैठक में उपस्थित कराया जाए। पीलीभीत के 75वें कप्तान के रूप में बालेन्दु भूषण सिंह को पीलीभीत का चार्ज मिला। 15 जून 1963 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे बालेन्दु भूषण सिंह 2009 कैडर बैच के आईपीएस हैं। उन्होंने एमए जियोग्राफी में अपनी शिक्षा ग्रहण की है। प्रतापगढ़ के रजवाड़े खानदान से ताल्लुख रखने वाले बालेन्दु भूषण सिंह की गिनती प्रदेश के तेज तर्रार पुलिस अधिकारियों के तौर पर मानी जाती है। इससे पहले यह कई जिलों की कप्तानी सम्भाल चुके हैं और उनकी कार्यशैली के मद्देनज़र उन्हें इस बार पीलीभीत का चार्ज सौंपा गया है

एसपी पीलीभीत ने आज सुबह दस बजे विधान परिषद सभापति के कक्ष में हुई बैठक में बिना शर्त मौखिक और लिखित माफी मांगी । जिसके बाद सभापति ने उन्हें माफ़ कर दिया। बताया गया कि  सदन में उपस्थित होने के कारण उन्हें माफ़ कर दिया गया है।  बताते चलें कि विधान …

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करोड़ों का हीरा चुराकर भागी चींटी, पुलिस कर रही तलाश

चोरी होना जैसे आम हो गई है. हम अपने देश की बात करें तो यहां पर चोर चोरी आसानी से कर लेते हैं और उसके बाद पकड़ में भी नहीं आते. पुलिस उन्हें ढूंढ़ती ही रह जाती है और वो दूसरी जगह चोरी करके भाग भी जाते हैं. ऐसी ही एक लूट की खबर सामने आई है जो बड़ी हैरानी भरी है. इस चोरी को किसी इंसान ने नहीं बल्कि एक चींटी ने किया है जिसे पुलिस भी तलाश रही है. जी हाँ, सही कह रहे हैं हम, आइये जानते हैं क्या है मामला. अापने ये कभी नहीं सुना होगा कि कोई चींटी चोरी करके चली जाए और आपके हाथ भी ना आये. ये चींटी कुछ खाने की चीज़ नहीं बल्कि एक कीमती हीरा चुरा कर सबसे अमीर बन गई है. इस चींटी का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि एक चींटी हीरा उठाकर ले जा रही है लेकिन पुलिस ने इसे पकड़ा या नहीं इस बात की कोई जानकारी नहीं मिली है. इस वीडियो को न्यूयॉर्क पोस्ट ने शेयर किया है जिसके साथ लिखा है 'ये जानकारी नहीं मिली है कि चींटी को अधिकारियों ने पकड़ा या नहीं, क्या इसके मालिक को हीरा लौटाया गया?'. इस वीडियो पर कई सारे कमेंट आ रहे हैं और यूज़र्स को ये वीडियो काफी पसंद भी आ रहा है. इसके बाद देख सकते हैं कि चींटी कैसे अमीर बना गई है और वो इतना अमीर हो कर क्या करेगी ये तो वही जाने.

चोरी होना जैसे आम हो गई है. हम अपने देश की बात करें तो यहां पर चोर चोरी आसानी से कर लेते हैं और उसके बाद पकड़ में भी नहीं आते. पुलिस उन्हें ढूंढ़ती ही रह जाती है और वो दूसरी जगह चोरी करके भाग भी जाते हैं. ऐसी ही …

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