हिंदी सिनेमा में 70-80 का ऐसा दौर था जब नायिकाओं के साथ खलनायिकाओं का भी अहम रोल हुआ करता था। उसी दौर में एक्ट्रेस बिंदु ने एंट्री की और देखते ही देखते उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली। बिंदु का जन्म 17 अप्रैल 1951 को गुजरात में हुआ था। आज उनके जन्मदिन पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं।70 के दौर में कलाकारों ने फिल्मों के साथ डायलॉग से भी अपनी पहचान बनाई। ऐसा ही एक डायलॉग है ‘मोना डार्लिंग’। इस डायलॉग के साथ डार्लिंग मोना यानी बिंदु को भी भुलाना मुश्किल है। कभी नायिका तो कभी खलनायिका, कभी आइटम डांसर तो कभी कुछ और किरदार निभाने वालीं बिंदु ने हिंदी सिनेमा में खास मुकाम बनाई है।।
बिंदु के पिता नानूभाई देसाई फिल्म निर्माण के क्षेत्र में थे जबकि उनकी मां ज्योत्सना रंगमंच की एक्ट्रेस थीं। बिंदु को अभिनय विरासत में मिला था। एक इंटरव्यू में बिंदु ने बताया कि ‘मेरी 6 बहनें और एक भाई था, घर में मैं सबसे बड़ी थी। 13 साल की उम्र में मेरे पिता का निधन हो गया था। घर की सारी जिम्मेदारियां मुझ पर आ गई थीं। मैंने पैसा कमाने के लिए मॉडलिंग की, फिर 1962 में निर्देशक मोहन कुमार की सुपरहिट फिल्म ‘अनपढ़’ में काम करने का मौका मिला।
पहली फिल्म के बाद बिंदु को कोई काम नहीं मिल रहा था क्योंकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी, हिंदी उतनी अच्छी नहीं थी। इसी बीच उनकी मुलाकात चंपक लाल झवेरी से हुई। चंपक उनकी बिल्डिंग के पीछे ही रहते थे और उनकी बहन के दोस्त थे। बिंदु और चंपक के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं लेकिन जब चंपक के घरवालों को पता चला तो कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी थीं।
बिंदु ने अपनी शादी के बारे में बात करते हुए बताया कि ‘पाबंदियों के बावजूद हमारा प्यार परवान चढ़ता गया। 1964 में हमने शादी कर ली लेकिन मेरे ससुराल वालों ने हमें घर से बेदखल कर दिया और पुश्तैनी संपत्ति में भी कोई हिस्सा नहीं दिया। इस दौरान चंपक हमेशा मेरे साथ रहे। उन्होंने मुझे हौसला दिया और हम ससुरालवालों से अलग होकर रहने लगे। सच पूछा जाए तो मेरा ससुराल से पूरी तरह नाता टूट चुका था।’
फिल्मों में निगेटिव किरदार करने का बिंदु के निजी जीवन पर भी असर पड़ा। उन्होंने बताया कि ‘मैंने फिल्मों में बुरी मां की कई भूमिकाएं निभाई हैं। मेरी बहन के बच्चे जब भी मेरे साथ फिल्म देखने जाते थे तो वह फिल्म देखते वक्त स्क्रीन में देखते थे फिर मेरी तरफ देखते थे और कहते थे, बिन्दु आंटी आप हमारे साथ तो ऐसा नहीं करती फिर फिल्म में ऐसा क्यों करती हो? यही नहीं जब मैं सिनेमाहॉल में फिल्म देखने जाती थी तो लोग चिल्ला पड़ते थे कि मैं आई हूं तो कोई गड़बड़ तो होगी।’
1970 में आई फिल्म ‘कटी पतंग’ का मशहूर कैबरे सॉन्ग ‘मेरा नाम है शबनम’ से बिंदु रातों रात आइटम क्वीन बन गईं। हेलेन और अरुणा ईरानी जैसी एक्ट्रेस के होने के बावजूद अपना नाम इंडस्ट्री में उन्होंने स्थापित कर लिया। बिंदु को उनके निगेटिव रोल के किरदारों की वजह से याद किया जाता है। जिसमें से इम्तिहान, हवस, जंजीर जैसी फिल्में रही हैं। इसके अलावा बिंदु ने ‘आया सावन झूम के’, ‘अमर प्रेम’, ‘राजा जानी’, ‘मेरे जीवन साथी’, ‘अभिमान’, ‘घर हो तो ऐसा’ और ‘बीवी हो तो ऐसी’ जैसी कई फिल्मों में काम किया।