गीता में क्यों कहा गया है “जब जब होई धरम की हानि बढ़े असुर अधम अभिमानी”

“जब जब होई धरम की हानि बाढ़ है असुर अधम अभिमानी तब तब प्रभु ले विविध स्वरूपा प्रगट भए सज्जन भूपा” गीता में कह गए इस श्लोक का शाब्दिक अर्थ है कि जब-जब धर्म की हानि होगी और असुरों का संचार होगा तब तब प्रभु अपने विविध स्वरूप में इस धरा पर अवतरित होंगे और अधम अभिमानी स्वरूप राक्षसों और असुरों का नाश करके धरती को पवित्र बनाएंगे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब जब धर्म का नाश होगा तब तब प्रलय आएगी।

क्योंकि गीता में कहा गया है कि धर्मो रक्षति रक्षिता यदि आप धर्म की रक्षा करते हैं तो धर्म भी आपकी आगे आकर रक्षा करता है। जो मनुष्य धर्म की रक्षा नहीं कर पाता वह निर्लज्य और मनुष्य हीन मानवता विहीन कहा जाता है। हर मनुष्य की पहचान उसका धर्म होता है और धर्म किसी जाति पर आधारित नहीं होता बल्कि धर्म मानवता का होता है मानवता का धर्म निभाने में असमर्थ होता है तो वह मनुष्य योनि में जन्म लेने के योग्य या हकदार नहीं होता।

आज कुछ इसी तरह का परिदृश्य हम सभी देख रहे हैं। जिस तरह से धर्म को ताक पर रखकर धर्म की हानि की जा रही है उससे स्वयं भगवान रूष्ट हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि धर्म की हानि कभी नहीं करनी चाहिए और हमेशा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने कर्मों की ओर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कर्म ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिसे करने से आपको उसी के अनुरूप और प्रतिकूल फल की प्राप्ति होती है। यदि आपने कर्म अच्छे किए हैं तो आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी यानी कि आपको अच्छे कर्मों की प्राप्ति होगी और अगर कहीं आपने गलत कार्य किया है प्रतिकूल कार्य किया है तो आपको नर्क योनि जाना पड़ सकता है।

मानव अगर अपनी योनि में रहकर पुण्य कार्य करें तो धरती प्रफुल्लित हो जाती है और प्रकृति उसे आशीर्वाद देती है लेकिन अगर मानव राक्षसी गुणों पर उतर आए और वह प्रकृति का नाश करने पर उतारू हो जाए तो प्रकृति उसे अभिशाप देती है और वह नर्क की यातना झेलता है। गीता में साफ कहा गया है कि “कर्म ही कर्मण्य धिकाराय…मा फलेसु कदा चिन:” अर्थात मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

आज जिस तरह से प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है उसी का नतीजा यह है कि प्रकृति आज हम सभी को और किए गए कर्म का प्रतिकूल फल हम सभी को दे रही है और यह एक अभिशाप के समान है। इसलिए जरूरी है कि हम अपने कर्मों को सुधारें और वापस प्रकृति की देवी की आराधना में लग जाए क्योंकि वही एकमात्र सहारा है जो हमारा जीवन सुरक्षित रख सकते हैं।

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