नई दिल्ली: एक अरब से अधिक आबादी,डॉक्टरों की कमी और बदलती लाइफस्टाइल इन तीनों के साथ ही प्रदूषण, साफ पीने के पानी की कमी जैसे कारकों की वजह से देश में कैंसर, डायबीटीज और हाई बीपी के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलीजेंस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसारए साल 2017 के दौरान सरकार के राष्ट्रीय परीक्षण कार्यक्रम के तहत जांच में यह पाया गया कि डायबीटीज और हाई बीपी के मरीजों की तादाद महज 1 साल में दोगुनी हो गई है। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलीजेंस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 के दौरान सरकार के राष्ट्रीय परीक्षण कार्यक्रम के तहत जांच में यह भी पाया गया कि एक साल के दौरान कैंसर के मामले भी 36 फीसदी तक बढ़ गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक देश में डॉक्टरों की भारी कमी है और फिलहाल देश में 11 हजार 82 की आबादी पर सिर्फ 1 डॉक्टर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ के तय मानकों के अनुसार यह अनुपात प्रति 1 हजार व्यक्तियों पर एक होना चाहिए। इस लिहाज से देखें तो यह अनुपात तय मानकों के मुकाबले 11 गुना कम है। बिहार जैसे राज्यों में तो तस्वीर और भी धुंधली है जहां 28 हजार 391 लोगों की आबादी पर 1 ऐलोपथी डॉक्टर उपलब्ध है।
डब्लूएचओ ने बीते साल अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में स्वास्थ्य के मद में होने वाले खर्च का 67.78 प्रतिशत लोगों की जेब से ही निकलता है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 17.3 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आधे भारतीयों की आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच ही नहीं है जबकि स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने वाले लोग अपनी आय का 10 फीसदी से ज्यादा इलाज पर ही खर्च कर रहे हैं। संगठन की विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में लगभग 23 करोड़ लोगों को 2007 से 2015 के दौरान अपनी आय का 10 फीसदी से अधिक पैसा इलाज पर खर्च करना पड़ा। यह संख्या ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की संयुक्त आबादी से भी अधिक है।