नई दिल्ली: 10 दिसंबर को देश के सभी प्रमुख विपक्षी दलों की बैठक होने जा रही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू इस बैठक के आयोजक हैं। इस बैठक से पहले जो अहम बात निकल कर सामने आ रही है, वह यह है कि बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के इसमें शामिल होने पर सस्पेंस बना हुआ है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक मायावती संभवतया इस बैठक में शिरकत नहीं करेंगी। सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोट्र्स में यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने उनके प्रतिनिधि सतीश चंद्र मिश्रा को इस संबंध में मनाने के प्रयास किए थे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
इससे पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनावों में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया था। उसके बाद मायावती के इस संभावित कदम को विपक्षी एकजुटता के लिहाज से बड़ा झटका माना जा रहा है। दरअसल इस साल मार्च में कर्नाटक चुनावों के बाद जेडीएस- कांग्रेस के गठबंधन बनाकर सरकार में आने और यूपी के गोरखपुर, कैराना, फूलपुर लोकसभा उपचुनावों में विपक्ष ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को शिकस्त दी थी।
उसके बाद से ही 2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस के महागठबंधन की चर्चाएं चल रही हैं। लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जिस तरह मायावती ने कांग्रेस को नजरअंदाज कियाए उससे इस तरह की संभावना पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। सपा नेता अखिलेश यादव भी कई बार कह चुके हैं कि यदि बसपा के साथ गठबंधन के मसले पर उनको दो कदम पीछे भी हटना पड़ेगा तो वो इसके लिए तैयार हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बसपा के साथ सीटों पर समझौते के लिहाज से अखिलेश यादव ने ये बात कही लेकिन बसपा की तरफ से अभी तक सीधे तौर पर किसी भी दल के साथ गठबंधन को लेकर कुछ नहीं गया है।
यूपी में विपक्षी दलों का गठबंधन इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से पिछली बार बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए ने 73 सीटें जीती थीं। ऐसे में बीजेपी को इस बार रोकने के लिए विपक्ष की नजर इस संभावित गठबंधन पर है लेकिन मायावती के रुख ने फिलहाल विपक्ष के लिए संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी है।