दिल्ली हाइकोर्ट में मैरिटल रेप पर आखिरी दौर की बहस मंगलवार से शुरू हो गयी है. याचिकाकर्ता के वकील ने दिल्ली हाइकोर्ट में दलील दी है कि बिना पत्नी के इच्छा के अगर पति जबरदस्ती करे तो उसे बलात्कार के श्रेणी में रखा जाए. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अपनी बात रखते हुए नेपाल सुप्रीम कोर्ट और कई देशों के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कोर्ट के सामने रखा.
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दूसरी तरफ कोर्ट मे RIT नाम की एक संस्था ने भी याचिका दाखिल कर कोर्ट से कहा कि मैरिटल रेप कानून में कोई बदलाव की जरूरत नही है, क्योंकि कानून का दुरुपयोग होता है. तकरीबन 5 हज़ार कॉल उनके पास रोजाना आते है. कई लोग कानून के गलत इस्तेमाल की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं. दरसअल निर्भया केस के बाद बलात्कार से जुड़े क़ानून मे कुछ परिवर्तन किए गए है, जिसका कुछ NGO ये कह कर विरोध कर रहे है कि इससे पुरुषों के ख़िलाफ़ ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है.
केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किए जाने का विरोध किया है. दिल्ली हाई कोर्ट में कई अर्जी दाखिल कर उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ रेप को अपराध नहीं माना जाएगा. इस प्रावधान को कई NGO ने गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने की गुहार लगाई थी.
केंद्र सरकार की ओर से एक हलफनामा दाखिल करके कोर्ट को बताया गया है कि धारा 498 के तहत पुरुषों का उत्पीड़न बढ़ सकता है. याचिका में एनजीओ की ओर से कहा गया है कि कई कानून है जिसमें महिलाओं को प्रोटेक्शन मिला हुआ है और नए कानून की जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में अशिक्षा, आर्थिक रूप से महिलाओं की कमजोर स्थिति, समाज की मानसिकता और गरीबी अहम कारण हैं.
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