विदेशी कंपनियों को बढावा देने के मामले को लेकर संघ की संस्था स्वदेशी जागरण मंच अब अपनी ही राज्य सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में है। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि कुपोषण से शिकार लोगों को रेडिमेड फूड पैकेट देने का प्रयास विदेशी कंपनियों को मदद पहुंचाने की कवायद है। मंच ने शुरूआती दौर में इस कदम का विरोध केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के समक्ष किया है। लेकिन आने वाले दिनों में वह अपने उन राज्य सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रहा है जिन्होंने अपने प्रदेश में पैक्ड खाना बांटने की व्यवस्था शुरू की है। विधान परिषद के सातवें नेता होंगे योगी आदित्यनाथ, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी रखेंगे बरकरार…
कुपोषण की बढ़ती समस्या से संघ चिंतित
देश में बढ़ रही कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या और उससे निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर नाखुशी जताते हुए स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक अश्विनी महाजन ने अमर उजाला को बताया कि वे जल्द ही महाराष्ट्र सरकार को इस मामले में पत्र लिखने वाले हैं। राजस्थान और गुजरात के बाद अब महाराष्ट्र ने अपने यहां पैक्ड फूड देने की व्यवस्था शुरू की है। उनका कहना है कि दुनिया के शोध बताते हैं कि कुपोषण के शिकार बच्चों और महिलाओं कों भरपूर और ताजा भोजन कराना चाहिए, इससे यह बिमारी दूर होती है।
बावजूद उसके कुछ राज्य सरकारों ने डिब्बाबंद भोजन की व्यवस्था शुरू की है। कुपोषण के शिकार लोगों को डिब्बा बंद भोजन को विदेशी कंपनियों को मदद की कवायद बताते हुए महाजन ने राज्य सरकारों से तुरंत यह व्यवस्था बंद करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही इस मामले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देंवेद्र फडणवीस को पत्र लिखेंगे। महाजन का कहना है कि विश्व में आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहे भारत में कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या 6 प्रतिशत से बढकर 7 हो गई है। इसके समाधान के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए वह नहीं उठाए जा रहे हैं।
भारत में क्या है कुपोषण के हालात, क्यों चिंतित है संघ?
देश में कुपोषण के हालात बेहद बुरे हैं। भोजन सुरक्षा का कानून बनने के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या में गिरावट नहीं आ रही है। आलम यह है कि 5 वर्ष से कम उम्र के 44 मिलियन बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या तो कम हो रही है। लेकिन उसकी रफ्तार महज 1 प्रतिशत है, जिसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। बीते दिनों स्वास्थ्य राज्य मंत्री फगन सिंह कुलस्ते ने राज्यसभा में यह जानकारी दी थी कि देश में करीब 93.4 लाख बच्चे सघन कुपोषण के शिकार हैं। जिसमें से 10 प्रतिशत को तत्काल डाक्टरी उपचार की जरूरत है। सरकार के आंकडों के अनुसार कुपोषण के सघन शिकार बच्चों की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसके अलावा कुपोषण की शिकार महिलाओं की संख्या भी देश में कम नहीं है। एनएफएच्एस4 के आंकडों के अनुसार देश में 41 प्रतिशत महिलाओं की संख्या ऐसी हैं जोकि मातृत्व सुख के बाद बच्चों को स्तन का दूध नहीं पिला सकती हैं।
केंद्र एवं राज्य सरकारों का प्रयास असफल
केंद्र और राज्य सरकारें लंबे समय से कुपोषण के खिलाफ अभियान के रूप में कार्यक्रम चला रहीं हैं। बावजूद उसके जमीन पर हालात सुधरने के नाम नहीं ले रहे हैं। बिहार, यूपी,मध्यप्रदेश,राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ, गुजरात,ओडिसा, पश्चिम बंगाल सरीखे राज्यों में कुपोषण के शिकार बच्चों और महिलाओं की संख्या बेहद ज्यादा है।
क्या है कुपोषण
कुपोषण की बिमारी के लिए सबसे बडा कारण संतुलित भोजन न मिलना है। महिलाओं को संतुलित भोजन न मिलने से उनमें रक्त की कमी हो जाती है जिससे उन्हें एनीमीया रोग हो जाता है। तो बच्चों में कुपोषण के वजह से उनका पूरा विकास नहीं हो पाता है।
संघ क्यों है चिंतित
देश की तरक्की के साथ संघ देशवासियों की भी तरक्की चाहता है। इसलिए संघ ने अपना दायरा हिन्दूत्व के अलावा सामाजिक सरोकार के मुद्दों की ओर भी बढाना शुरू कर दिया है। कुपोषण के शिकार लोगों की अधिकांश संख्या आदिवासी अथवा ग्रामीण और पिछडे इलाकों में है। संघ यह बात लंबे समय से कहता रहा है कि पिछडेपन का लाभ उठाकर इसाई मशीनरी अपना पैर पसार रहीं हैं। और धर्म परिवर्तन को बढावा दे रही हैं। इसलिए संघ का जोर अब गरीब और पिछडे इलाकों में कमी दूर कर अपनी पकड मजबूत करनी है। यही वजह है कि स्वदेशी जागरण मंच सरीखे संघ के आर्थिक सोच वाले संगठन भी मैदान में उतर गए हैं।
डिब्बा बंद भोजन की कवायद के जरिए विदेशी कंपनियों की मदद कैसे
मेनका गांधी को स्वदेशी जागरण मंच ने बीते दिनों जो पत्र लिखा है उसमें स्पष्ट चिंता जताई है कि डिब्बा बंद भोजन की कवायद विदेशी कंपनियों की मदद के लिए है। मंच का कहना है कि आरयूटीएफ, रेडी टू यूज थेरापियूटीक फूडस के जरिए कुपोषण के शिकार बच्चों की मदद नहीं की जा सकती है। आरयूटीएफ पूरी तरह से आर्थिक हित साधने की व्यवसायिक कवायद है। भूखे को संतुषि के नाम पर लाभ की भूखी फूड इंडस्ट्री की यह एंट्री प्वाईंट है। इसमें अधिकांश लोग ऐसे जुडे हुए हैं जोकि देश में खाद्य उद्योग को बढावा देने में जुटे हुए हैं।
स्वदेशी जागरण मंच को डिब्बा बंद भोजन मुहैया कराने का यह खेल पेप्सी, कारगील, न्यूट्रिसाइट, ब्रिटानिया, यूनीलीवर, एडेसिया, जेनरल मिल्स, ग्लेक्सो, अमूल, डीएसएम, मार्स और इंडोफूड सरीखे कंपनियों की कवायद नजर आ रही है। यही वजह है कि स्वदेशी जागरण मंच ने केंद्र के महिला बाल विकास मंत्रालय के अलावा अपनी राज्य सरकारों के खिलाफ मोर्च पर उतरने का निर्णय लिया है। जल्द ही इसका असर नजर आने लगेगा।