राधाष्टमी का भी है खास महत्व, कृष्ण के इतने दिनों बाद मनाई जाती है यह

       श्रीकृष्ण और राधा के बारे में जितने भी प्रसंग हैं वह काफी आनंदित करते हैं। इनका प्रेम अमर है और समाज को एक सीख भी प्रदान करता है। शादी के बिना भी लोग श्रीकृष्ण को राधा के साथ ही जोड़ते हैं। जन्माष्टमी के बाद राधा के जन्म का भी उत्सव मानाया जाता है। कथाओं में तो कहा जाता है कि कान्हा से ज्यादा समझदार थीं राधा। क्योंकि वह उम्र में भी उनसे बड़ी थीं। दोनों का प्रेम आज भी लोग याद करते हैं। इसी महीने राधाष्टमी मनाई जाएगी। आइए जानते हैं इसका महत्व। 
कृष्ण से पहले पैदा हुई राधा
भाद्रपद के कृष्णपक्ष में अष्टमी के दिन कान्हा का जन्मदिन मनाया जाता है। यह उत्सव उनके छठी मनाने तक चलता है। इसके 15 दिन के बाद ही शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन कान्हा के सबसे करीब राधा का जन्म हुआ बताया जाता है। जैसे कृष्ण जन्माष्टमी होती है वैसे ही राधा अष्टमी होती है। यह 14 सितंबर को मनाई जाएगी। राधाकृष्ण मंदिरों में इसकी खूब तैयारी चलती है। राधा और कृष्ण और प्रेम की बातें आज भी लोगों को काफी रोमांचित करती हैं। वृंदावन में रास रचाने और कृष्ण के हर कार्य में राधा के भागीदार बनने से उनकी दोस्ती अटूट बनती है। कृष्ण ने समाज को उस खाके से अपने समय में ही निकालने में काफी हद तक सहयोग किया जिसमें एक पुरुष की मित्र महिला हो सकती है।

जन्म को लेकर कथाएं
राधा और कृष्ण की उम्र को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं लेकिन अगर इसमें न पड़ें तो ऐसा कोई भी प्रसंग नहीं मिलता जिसमें इनके उम्र का फासला दिखा हो। बताते हैं कि राधा कृष्ण से उम्र में 11 माह बड़ी थीं। तो कुछ पुराण उन्हें 5 माह बड़ी बताते हैं। पद्म पुराण के अनुसार राधा बरसाने में वृष भानु और कीर्ति के घर जन्मी थीं। वृष भानु वैष्य गोप थे। बताते हैं कि जब कृष्ण का जन्म हुआ तो राधा थीं और वह भी कृष्ण के उत्सव में अपने माता पिता के साथ शामिल हुई थीं। जब कंस का अत्याचार बढ़ गया तो नंदगांव से जाकर लोगों ने वृंदावन में शरण ली थी। वृंदावन ही राधा और कृष्ण का अतिप्रिय गांव बन गया था। यहां वे अपने दोस्तों के साथ खेलते थे और रास रचाते थे।

क्या है महत्व
राधाअष्टमी का महत्व हिंदू धर्म में काफी है। राधाकृष्ण के मंदिरों में जिस प्रकार कृष्ण का जन्मोत्सव होता है ठीक वैसे ही राधा के जन्म की भी तैयारियां होती हैं। मंदिरों को काफी सजाया जाता है और कार्यक्रम होते हैं। राधा के जन्म को लेकर व्रत व त्योहार की परंपरा अभी तक दिखाई नहीं देती हैं, लेकिन समाज में कुछ लोग इसका पालन करते हैं।

GB Singh

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