भाजपा ने विधानसभा टिकटों के ऐलान के बाद होने वाली बगावत को कम से कम करने के नई रणनीति बनाई है। पहले तो ऐसे संभावित नेताओं को ज्यादा वक्त नहीं दिया जाएगा। वहीं, टिकट की दौड़ में पीछे रह गए नेताओं को मनाने की लिए हर जिले में वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
टिकटों को लेकर इसबार भाजपा में ज्यादा ही उथल-पुथल मची है। सिटिंग विधायक होने के बावजूद हर विधानसभा सीट पर पांच-छह नए दावेदार चुनाव लड़ने के लिए दम भर रहे हैं। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में तो पर्यवेक्षकों के समक्ष आठ-आठ दावेदार तक सामने आ चुके हैं। चूंकि, प्रत्येक सीट से किसी एक ही दावेदार का नाम तय होना है। ऐसे में ऐन मौके पर बगावत को कम करने के लिए पार्टी ने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार पर्यवेक्षकों के जरिए दावेदारों का पैनल मिलने के बाद पहले भाजपा स्टेट पार्लियामेंट्री बोर्ड इनका परीक्षण करेगा। इसके बाद पैनल केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड को भेजे जाएंगे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि नामांकन की तिथियों पर ही प्रत्याशियों का ऐलान किया जाएगा। इससे बगावत करने वाले कुछ नेताओं को अपनी तैयारियों के लिए कम मौका मिलेगा। इससे बगावत करने वालों की संख्या सीमित रहने की संभावना है। 2017 चुनाव में टिकट न मिलने पर कई नेताओं ने बागी तेवर अपना कर चुनाव मैदान में कूद गए थे। इससे पुरोला, केदारनाथ और रानीखेत में पार्टी के प्रत्याशियों को मामूली हार के अंतर का सामना करना पड़ा था।
दिवाकर व ओम गोपाल ने कमल चिह्न पर लड़ा था
2012 के चुनाव में पूर्व मंत्री दिवाकर भट्ट व पूर्व विधायक ओमगोपाल रावत ने भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था। तब दिवाकर देवप्रयाग से कांग्रेस प्रत्याशी मंत्री प्रसाद नैथानी तो ओमगोपाल कांग्रेस के ही सुबोध उनियाल से चुनाव हार गए थे। 2017 में भी दोनों भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन तब इनका टिकट कट गया था। बाद में भट्ट ने यूकेडी तो ओम गोपाल ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। वर्ष 2018 में ओम गोपाल भाजपा में वापस लौट आए थे।
भाजपा में कार्यकर्ताओं को अपनी दावेदारी करने का अधिकार है। यह भी सच है कि किसी एक ही दावेदार को टिकट मिलना है। जिसे भी टिकट मिलेगा, पार्टी कार्यकर्ता सामूहिक जिम्मेदारी के साथ कमल के फूल चिह्न को जिताने के लिए काम करेंगे। -मदन कौशिक प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा