ये शीर्षक पढ़कर अगर आप पूछेंगे कि विराट कोहली का काम आखिर है क्या? जाहिर है कि वो एक क्रिकेटर हैं और उनका काम है क्रिकेट खेलना. उनका काम है अच्छी बल्लेबाजी करना. उनका काम है चौके छक्के लगाना. उनका काम है मैदान में आए दर्शकों का मनोरंजन करना, जिससे दर्शकों का पूरा पैसा वसूल हो. लेकिन आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि विराट कोहली इनमें से कोई भी काम करने के लिए मैदान में नहीं उतरते हैं.
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उनका काम अलग है. उनका सिर्फ एक काम है और वो काम है टीम को जीत दिलाना. उन्हें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि वो टीम के कप्तान हैं या नहीं वो सिर्फ मैदान में टीम को जीत दिलाने के लिए उतरते हैं. अगर आपको लग रहा हो कि यही काम तो दुनिया के सारे खिलाड़ियों का होता है तो जरा ठहरिए. क्रिकेट की रिकॉर्ड बुक को खंगालिए. आपको कुछ बातें जरूर समझ आएंगी. दरअसल, ये कड़वी सच्चाई है कि भारतीय क्रिकेट के इतिहास में व्यक्तिगत उपलब्धियों को लेकर बड़े बड़े खिलाड़ियों पर ऊंगली उठती रही है.
कपिल देव से लेकर सचिन तेंडुलकर तक के बारे में ऐसी बातें कही जाती रही है. राहुल द्रविड़ के उस फैसले पर विवाद तक हो चुका है, जब मुल्तान टेस्ट में सचिन तेंडुलकर 194 रन पर थे और राहुल द्रविड़ ने पारी समाप्ति का एलान कर दिया था. सचिन ने बाद में कहा भी था कि उनके खाते में बहुत सारे दोहरे शतक नहीं है इसलिए उन्हें राहुल का फैसला अखरा. कपिल देव के संन्यास, रणजी ट्रॉफी हारने के बाद दिलीप वेंगसरकर की नम हुई आंखे या ऐसे सैकड़ों किस्से हैं जो बताते हैं कि ‘टीम गेम’ होने के बाद भी खेल में व्यक्तिगत उपबल्धियां कितना मायने रखती हैं. विराट कोहली इन बातों से परे हैं. उन्हें टीम की जीत से मतलब है.
कप्तानी संभालने के बाद विराट ने दी थी सलाह
कुछ महीने पहले इंग्लैंड की टीम भारत के दौरे पर थी. मुंबई टेस्ट में जीत के बाद विराट कोहली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो आखिरी जवाब दिया था वो याद कीजिए. विराट कोहली ने कहा था कि उन्होंने कप्तान बनने के बाद खिलाड़ियों के साथ ‘कम्यूनिकेशन’ पर काफी ध्यान दिया. उन्होंने खिलाड़ियों को समझाया कि टेस्ट क्रिकेट में कई बार मैदान में कुछ समय ऐसा मिलता है जब आप अपनी काबिलियत से मैच का रूख अपनी टीम की तरफ मोड़ सकते हैं लेकिन आप ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि आपको अपना कोई व्यक्तिगत रिकॉर्ड दिख रहा होता है.
अगर उस वक्त उस व्यक्तिगत उपलब्धि की फिक्र किए बिना टीम के लिए खेला जाए तो कामयाबी निश्चित तौर पर मिलेगी. विराट ने ये भी कहाकि वो इस सोच को खिलाड़ियों के दिमाग से निकालने में कामयाब हुए हैं. यही वजह है कि आज टीम के हर खिलाड़ी में एक चैंपियन दिखाई दे रहा है.
टीम इंडिया में मौजूदा खिलाड़ियों की टोली है भी ऐसी जो अगले 7-8 साल तक एकसाथ क्रिकेट खेलेगी. ऐसे में करियर के शुरूआती दिनों में इतनी अहम बात समझ आ जाए तो निश्चित तौर पर ये कप्तान के लिए और उसकी टीम के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है.
टीम हित में विराट ‘सेट’ करते हैं उदाहरण
जिस तरह विराट कोहली मैदान में अपनी बल्लेबाजी से टीम के बाकि खिलाड़ियों को प्रेरित करते हैं. वैसे ही उन्होंने इस सोच को बदलने के लिए भी पहले खुद को बदला. कुछ उदाहरण समझिए. न्यूजीलैंड के खिलाफ बीती सीरीज में भुवनेश्वर कुमार कोलकाता टेस्ट में 6 विकेट लेकर आए थे. टीम इंडिया ने वो टेस्ट मैच जीता था. भारतीय क्रिकेट फैंस बरसों से एक शब्द सुनते आ रहे हैं – ‘विनिंग कॉम्बीनेशन’. यानि अगर टीम जीत रही है तो ‘प्लेइंग 11’ में बदलाव करने की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन विराट कोहली ने अगले टेस्ट मैच में उन्हें ‘ड्रॉप’ कर दिया. यहां तक कि इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज के शुरूआती 3 टेस्ट मैचों में भुवनेश्वर कुमार ‘प्लेइंग 11’ में जगह नहीं बना पाए.
ऐसा इसलिए क्योंकि विराट कोहली की सोच साफ है कि भुवनेश्वर कुमार की जरूरत टीम को तभी है अगर पिच में उन्हें गेंद के ‘स्विंग’ होने की कोई संभावना दिख रही है. वरना सिर्फ पिछले मैच के प्रदर्शन या दोस्ती के आधार पर विराट कोहली टीम नहीं चुनते. ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब विराट कोहली ने चेतेश्वर पुजारा से उनके रन रेट को लेकर बात की थी. विराट कोहली का मानना था कि मुश्किल परिस्थितियों में पुजारा टीम इंडिया पर दबाव को झेल लेते हैं लेकिन उन्हें रन भी बनाने होंगे.
उन्होंने एक टेस्ट मैच में चेतेश्वर पुजारा को बाहर भी बिठा दिया था क्योंकि उससे पहले पुजारा ने 67 गेंद पर 16 रन और 159 गेंद पर 46 रनों की पारी खेली थी. कप्तान विराट कोहली और कोच के साथ सलाह मशविरे के बाद चेतेश्वर पुजारा की बल्लेबाजी में फर्क साफ दिखाई दिया. उन्होंने घरेलू क्रिकेट में बेहतर स्ट्राइक रेट के साथ बल्लेबाजी कर टीम में वापसी की.