श्री गंगा नगर। उरी हमले के बाद पैदा हुए तनाव के चलते BSF के जवानों ने अपनी छुट्टियां रद्द करा ली हैं। जवानों को लगा है किसी भी वक्त जंग हो सकती है।
कॉन्स्टेबल एस बोहरा। BSF हेडक्वार्टर ने पिछले हफ्ते इनकी छुट्टी मंजूर की। महीनों बाद बोहरा घर जा रहे थे। ट्रेन का टिकट भी कन्फर्म हो चुका था।
इसी बीच, उड़ी में आतंकी हमला हुआ। 18 जवान शहीद हो गए। भारत-पाकिस्तान सीमा पर हालात तनावपूर्ण हो गए। BSF ने जवानों को हाईअलर्ट कर दिया। हालात देख बोहरा ने घर जाने का फैसला टाल दिया। खुद अपनी छुट्टी कैंसिल करवाई।
क्या बोला भारत का ये जवान
अफसरों ने कारण पूछा तो बोहरा ने जवाब दिया, पाकिस्तान आए दिन हमले करता है। इस बार मौका मिल जाए तो पाकिस्तान को निपटाकर ही छुट्टी मनाने जाऊंगा। पत्रकारों की टीम रविवार को पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सरहद पर जवानों के बीच पहुंची। हर कहीं बोहरा जैसा ही जज्बा देखने को मिला। कई जवानों का छुट्टियों के मामले में यही रुख था।
महिला जवानों ने कहा-दुश्मन गलती से भी इधर आया तो जिंदा नहीं लौटेगा
झूंझुनू के नवलगढ़ की बबीता खेदड़ और प्रियंका, दौसा की अनीता मीणा तथा मध्यप्रदेश के खंडवा की सीमा एंगल चार साल से BSF में हैं। उनकी ज्वॉइनिंग के बाद पहली बार यह मौका आया है, जब सीमा पर तनाव हुआ है। रोजाना इनके पास भी परिचितों के फोन आते हैं।
सभी एक ही बात कहते हैं, बॉर्डर पर अभी माहौल अच्छा नहीं है। छुट्टी लेकर घर चली जाओ तो कुछ कहते हैं कि बाॅर्डर से ड्यूटी कट करवाकर आॅफिस में लगवा लो। लेकिन चारों ने इससे साफ इनकार कर दिया। चारों रोजाना की तरह दिन में हथियारों के साथ तारबंदी पर जाती हैं और पाकिस्तान की एक-एक हरकत पर नजर रखती हैं।
पंजाब के ये दो घर सीमा पर, देखीं दो लड़ाइयां, लेकिन डर नहीं
पंजाब के फिरोजपुर जिले का फारूवाल गांव। सीमा पर लगी फेंसिंग से 10 मीटर की दूरी पर रह रहे बाशिंदे भी उड़ी हमले से वाकिफ हैं। सीमा पर तनाव है। ये जानते हुए भी कहते हैं हमने दो लड़ाइयां देखी हैं, इब तो डर नहीं लगता। एक परिवार की मुखिया जमना बीबी ने बताया कि उनकी दो एकड़ जमीन है। सुबह चार साढ़े चार बजे ही उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। सुबह जल्दी उठकर भैंसों को हरा चारा डालना, फिर दूध निकालना उनका सबसे पहला काम होता है। इसके बाद सुबह उठकर दिन के अन्य काम शुरू हो जाते हैं। महिलाएं खाना बनाना, साफ-सफाई बच्चों को स्कूल भेजने के साथ-साथ पुरुषों के काम में भी हाथ बंटाती हैं।
सीमा पार चले जाते थे भैंस चराने
इसी तरह मोहन सिंह (जिनका परिवार यहां रहा है) बोले कि वे तो कई लड़ाइयां झेल चुके हैं। छन्न बनाने (घास-फूस की छत) का काम करने वाले कांशीचंद कहते हैं कि हल्लों के टाइम (बंटबारे के समय) वह सिर्फ (9) साल का था। 1965 की लड़ाई के पहले तो हम रोज भैंसें चराने के लिए पार ( पाकिस्तान) में चले जाते थे। इसके बाद कुछ सख्ती हुई। यहीं बस नहीं पाकिस्तानियों के साथ ताश भी खेलते थे। सोचते हुए मोहन सिंह कहते हैं कि ओह वी समां हुंदा सी भाजी…।
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