कभी बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती का दाहिना हाथ माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी अंतत: कांग्रेस पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं। बृहस्पतिवार को अपने कई समर्थकों के साथ पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में वे पार्टी में शामिल हो जाएंगे। बसपा के बड़े मुस्लिम चेहरे रहे नसीमुद्दीन की कभी पार्टी और सरकार में तूती बोलती थी। संवाददाता से बातचीत में नसीमुद्दीन ने भी स्वीकार किया कि एक-दो दिन में अगला राजनीतिक निर्णय ले लेंगे।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, राहुल की नसीमुद्दीन से पहली मुलाकात 28 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई। जनवरी मध्य में एक और मुलाकात में बात आगे बढ़ी। इस बीच राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने जमीनी स्तर की पूरी तैयारी कर ली।
गत रविवार को राहुल के साथ सिद्दीकी की मुलाकात में आगे की राजनीति और रणनीति के साथ उनके समर्थकों के शामिल होने के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया।
सिद्दीकी के साथ तीन पूर्व मंत्री, चार पूर्व सांसद, लगभग तीन से चार दर्जन पूर्व विधायक, विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ चुके उम्मीदवारों के भी कांग्रेस में शामिल होने की संभावना है। इनमें से सिद्दीकी सहित बसपा का खुलकर विरोध कर रहे अधिकतर लोग बुधवार शाम तक दिल्ली पहुंच जाएंगे।
बसपा से निकाले गए थे नसीमुद्दीन
बसपा के उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के प्रभारी रह चुके नसीमुद्दीन प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। पिछले वर्ष 10 मई को मायावती ने पैसों के लेन-देन में गड़बड़ी करने का आरोप लगाते हुए उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। मायावती का आरोप था कि पश्चिमी यूपी के प्रभारी रहते सिद्दीकी ने उम्मीदवारों से पैसे लिए थे लेकिन उन्हें पार्टी के कोष में जमा नहीं किया।
नसीमुद्दीन ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने और विधानसभा चुनाव में केवल 19 सीटें जीत पाने का ठीकरा मायावती ने उनके सिर फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि वे मायावती की ब्लैकमेलिंग और लगातार पैसों की मांग से आजिज़ आ गए थे। एक सप्ताह बाद ही नसीमुद्दीन ने अपने कुछ समर्थकों के साथ एक नई पार्टी राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा बना ली थी। लेकिन तभी से उनके अगले राजनीतिक कदम के बारे में कयास लग रहे थे।
अखिलेश से भी की बात
नसीमुद्दीन की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से कई मुलाकातें हुई। इसके बाद उनके सपा में शामिल होने की संभावना बढ़ गई थी। पिछले वर्ष सितंबर में उन्होंने स्वीकार भी किया कि उन्हें सपा की ओर से पार्टी में शामिल होने का ऑफर मिला है। लेकिन दो वजहों से वे सपा में शामिल नहीं हो पाए। अखिलेश उनके सभी समर्थकों को पार्टी में समायोजित कर पाने में मुश्किल महसूस कर रहे थे। साथ ही, उन्हें सपा में दाखिल किए जाने पर पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा।
यूं आए कांग्रेस के करीब
इसी के बाद सिद्दीकी ने कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ाईं। उनकी राहुल गांधी से दो मुलाकातें हुई। राहुल ने उनके प्रमुख समर्थकों को कांग्रेस में समायोजित करने और यथासंभव लोगों को टिकट देने का भी वादा किया। वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि सिद्दीकी के शामिल होने से कांग्रेस और सपा के रिश्तों में कोई फर्क नहीं आएगा। दोनों आगामी चुनावों में उत्तर प्रदेश में तालमेल करना चाहते हैं।
अभी अलग-अलग लड़ेंगे
लेकिन अगले महीने होने वाले गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव के लिए दोनों दलों ने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए। उनका मानना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में एक साथ लड़ने से कांग्रेस के अगड़ी जातियों के समर्थक बिदक कर भाजपा को वोट दे आए थे। अलग-अलग लड़ने से वे यदि कांग्रेस के पास लौटते हैं तो इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है।