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इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति भी कुछ शर्तों के साथ है। शर्त यह है कि इसके तहत उत्पाद का सिंगल ब्रांड होना चाहिए और दुनिया के अन्य बाजारों में भी यह उत्पाद इसी ब्रांड नाम से बिकना चाहिए। इसके अलावा 51 फीसदी से अधिक के एफडीआई प्रस्ताव के लिए 30 फीसदी सामान की खरीद भारत से करना अनिवार्य है। यह खरीद भी मुख्यत:लघु, मध्यम एवं सूक्ष्म (एमएसएमई) क्षेत्र की इकाइयों से होनी चाहिए।
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उनका कहना है कि सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश को आकर्षित करने की भारी संभावना है और यदि इसका सही तरीके से लाभ लिया जाए तो इससे अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। इस क्षेत्र में रोजगार की भी संभावना है। यह भी गौरतलब है कि देश में चालू वित्तवर्ष की अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में 27.82 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया है जो कि एक वर्ष पहले की समान अवधि के 21.87 अरब डॉलर के मुकाबले 27 फीसदी अधिक है।
केंद्र सरकार के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के अनुसार, मुख्य रूप से सेवाओं, दूरसंचार, व्यापार, कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तथा वाहन जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश आया। भारत को सबसे अधिक एफडीआई सिंगापुर, मॉरीशस, नीदरलैंड तथा जापान से मिला। इससे पिछले वित्त वर्ष में देश में विदेशी निवेश का प्रवाह 23 फीसदी बढ़कर 55.6 अरब डॉलर रहा था। विदेशी निवेश भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है।