सर्दी, गर्मी और बारिश के मौसम की तरह ही अब बाढ़ का सीजन भी असम के लोगों की तकदीर बन गया है। इसकी कोई एक वजह नहीं, बल्कि कई वजह हैं। एक तो असम की भौगोलिक स्थिति इसके लिए काफी जिम्मेदार है। असम का उत्तरी हिस्सा भूटान और अरुणाचल प्रदेश से लगा है, जो कि पहाड़ी इलाके हैं। पूर्वी हिस्सा नगालैंड, पश्चिमी हिस्सा बंगाल एवं बांग्लादेश और दक्षिणी हिस्सा त्रिपुरा, मेघालय एवं मिजोरम से मिलता है। असम का कुल क्षेत्रफल 78,438 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 56,194 वर्ग किलोमीटर ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में है और बाकी 22,244 वर्ग किलोमीटर बराक नदी घाटी में है। यानी असम पूरी तरह नदी घाटी पर बसा हुआ है। लिहाजा वहां बाढ़, मिट्टी के कटाव और भूकंप का खतरा हर वक्त बना रहता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण और तापमान के बढ़ने से तिब्बत के पठार पर जमी बर्फ और हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी और अन्य नदियों पर बने बांधों का जलस्तर बढ़ जाता है। असम में बाढ़ के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार ब्रह्मपुत्र नदी है। इसकी छोटी-बड़ी कुल 35 सहायक नदियां हैं। तिब्बत से आने के बाद अरुणाचल प्रदेश से जब ये नदियां असम में प्रवेश करती हैं, तो पहाड़ी इलाके से सीधे मैदानी इलाके में आ जाती हैं, जिसकी वजह से ज्यादा तबाही होती है। हर साल चीन, भूटान, नेपाल और पड़ोसी राज्यों से छोड़े गए पानी के कारण असम में नदियों पर बने तटबंध टूट जाते हैं, इस वजह से भी पानी रिहायशी इलाकों में भर जाता है।
अगर चीन वक्त पर ब्रह्मपुत्र के पानी से जुड़ी जानकारी देने लगे तो असम में बाढ़ से होने वाली बर्बादी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा असम में बनाए गए बांधों से केवल बिजली बनाई जा सकती है, लेकिन उनमें पानी जमा करने का कोई इंतजाम नहीं है। असम को बाढ़ से बचाने के लिए ऐसे तटबंध बनाने होंगे, ताकि नदी किनारों को न काट पाए, लेकिन अभी तक ऐसी कोई भी योजना कारगर नहीं हो पाई। इसके अलावा बाढ़ की समस्या के लिए मानवीय गलतियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। आबादी बढ़ने के साथ-साथ लोग नदियों के पास बस्तियां बसाने लगे और जंगल काटे जाने लगे। सरकार द्वारा नदियों के करीब स्थायी निर्माण की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
वैसे असम को बाढ़ से मुक्त करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। साल 1980 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड एक्ट के तहत एक बोर्ड का गठन किया गया, जिसका काम है ब्रह्मपुत्र नदी पर तटबंध बनाना। इसके तहत पिछले कुछ दशकों में तटबंधों को बनाने और उनके रखरखाव पर करीब 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन इतना धन खर्च करने पर भी असम को बाढ़ से बचाने में कोई ठोस सफलता नहीं मिली है।