वर्ष 2021 समाप्त होने में थोड़े दिन शेष हैं। पूरे वर्ष अमेरिका और चीन के बीच एक नया शीत युद्ध का दौर चलता रहा। इस वर्ष भारत समेत चीन का कई देशों के साथ सीमा गतिरोध जोरों पर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नए वर्ष में चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में नरमी आएगी या चीन अमेरिका के बीच गतिरोध और बढ़ेगा ? आखिर किस दिशा में अमेरिका और चीन के संबंध जाएंगे ? क्या टी-2 को लेकर दोनों देशों के बीच जंग के आसार बनेंगे? बाइडन का चीन के प्रति क्या रवैया होगा? क्या नए वर्ष में भी बाइडन प्रशासन का तिब्बत और ताइवान एजेंडा बना रहेगा? तिब्बत और ताइवान को लेकर चीन का क्या स्टैंड होगा? ऐसे कई सवाल हैं जो आपके मन में भी कौंध रहे होंगे। आइए जानते हैं कि आखिर विशेषज्ञों की इस पर क्या राय है।
1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि नए वर्ष में चीन और अमेरिका के संबंधों में कोई नया बदलाव आने वाला नहीं है। हालांकि, ओमिक्रोन वायरस के प्रकोप को देखते हुए दोनों देशों का जोर अपनी आंतरिक व्यवस्था को ठीक करने पर होगा। खासकर आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से निपटने की व्यस्तता होगी। उन्होंने कहा कि जहां तक सवाल अमेरिका और चीन के संबंधों का है तो बाइडन प्रशासन ने तिब्बत का राग छेड़कर यह संकेत दे दिया है कि उनके पास ड्रैगन के खिलाफ मोर्चा खोलने के और भी कई मुद्दे हैं।
2- प्रो. पंत का कहना है कि बाइडन प्रशासन ने बहुत चतुराई से तिब्बत का मुद्दा छेड़कर चीन का ध्यान ताइवान की और से हटाना चाहा है। बाइडन प्रशासन ऐसे कई मोर्चों पर चीन का ध्यान बांटना चाहता है। इसमें तिब्बत के साथ उइगर मुस्लिमों की समस्या भी शामिल है। बाइडन प्रशासन इस जुगत में हैं कि चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग का ध्यान ताइवान से ज्यादा तिब्बत और चीन में उइगर मुस्लिमों की ओर खींचा जाए। इन मसलों को लेकर दोनों देशों के बीच एक नए तरह का शीत युद्ध शुरू हो सकता है।
3- उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन अपने इसी टी-2 प्लान (T2 Plan) के तहत तिब्बत के लिए उजरा जेया को नया वार्ताकार नियुक्त किया है। उजरा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह तिब्बत की धार्मिक नेता दलाई लामा या उनके प्रितिनिधियों और चीन सरकार के बीच वार्ता करवाएं, ताकि तिब्बत की धार्मिक और जातीय पहचान व अधिकारों को बचाने वाला समाधान निकाला जा सके। बता दें कि दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच वर्ष 2010 के बाद कोई औपचारिक वार्ता भी नहीं हुई है। यानी वर्ष 2013 से चीन की सत्ता में मौजूद वर्तमान राष्ट्रपति शी चिनफिंग के कार्यकाल में दोनों पक्ष बातचीत की टेबल पर नहीं मिले हैं।
4- प्रो. पंत का कहना है कि अमेरिका कभी भी चीन के साथ किसी तरह का सैन्य मुठभेड़ नहीं चाहेगा। हां, कूटनीतिक मोर्चे पर चीन के खिलाफ बाइडन प्रशासन अपनी एक ठोस रणनीति जरूर बनाएगा। इस वर्ष भी दोनों देशों के बीच कूटनीतिक जंग के तेज होने के आसार हैं। कूटनीतिक मोर्चे पर बाइडन प्रशासन ने अपना एजेंडा सेट कर लिया है। इसलिए चाहे ताइवान का मसला हो या तिब्बत का दोनों मोर्चे पर कूटनीतिक जंग के ज्यादा आसार हैं। बाइडन का लोकतांत्रिक देशों का सम्मेलन इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। ऐसा करके बाइडन प्रशासन ने संकेत दिया है कि भविष्य में दोनों देशों के बीच वैचारिक जंग और तेज होगी।
अमेरिकी प्लान का दूसरा अहम मोर्चा ताइवान
1- हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी और रणनीतिक सक्रियता बढ़ा चुका अमेरिका ताइवान के बहाने चीन पर तीर तानने का अवसर नहीं गंवाना चाहता। प्रो. पंत का कहना है कि ताइवान, अमेरिका और चीन के बीच टकराव का बड़ा कारण बन सकता है। यदि ऐसा होता है कि क्वाड की चौकड़ी में अमेरिका का अहम साझेदार और हिंद महासागर में बड़ी ताकत रखने वाले भारत की भूमिका को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं होगा। यही वजह है कि अमेरिका इन दिनों ताइवान के हितों की हिफाजत का हवाला देते हुए बीजिंग पर निशाना साध रहा है। अमेरिकी योजना का दूसरा अहम मोर्चा ताइवान
2- चीन की नाकेबंदी में अमेरिकी योजना का दूसरा अहम मोर्चा ताइवान है। अमेरिका यह पहले ही साफ कर चुका है कि वो ताइवान के खिलाफ चीन की किसी भी कार्रवाई का जवाब देगा। इतना ही नहीं जापान, दक्षिण कोरिया जैसे अहम पूर्वी एशियाई देश भी ताइवान के हितों की हिफाजत की तरफदारी जता चुके हैं। उधर, चीन अपनी वन-चाइना पालिसी की दुहाई देते हुए ताइवान में किसी भी विदेशी दखल का विरोध करता है। चीन के लड़ाकू विमान ताइवान के आसमान में उड़ान भरते नजर आते हैं।
2022 में चुनावी लकीर को बड़ा करने की कोशिश
हिंद-प्रशांत के इलाके से लेकर हिमालय तक टी-2 के दोनों मोर्चे ऐसे वक्त गर्मा रहे हैं, जब चिनफिंग 2022 में अपनी चुनावी लकीर को बड़ा करने की कोशिश में जुटे हैं। वर्ष 2018 में राष्ट्रपति के कार्यकाल की समय सीमा का प्रावधान खत्म किए जाने के बाद उनका प्रयास 20वीं पार्टी कांग्रेस बैठक में अगला कार्यकाल हासिल करने का होगा। मगर, तिब्बत से लेकर ताइवान के मोर्चे पर टकराव और हांगकांग से लेकर आर्थिक स्तर पर मौजूद चुनौतियां राष्ट्रपति शी के जीवन प्रयत्न राष्ट्रपति के सपने को तोड़ भी सकते हैं।