सरकारी छूट गरीबों और असहायों के लिए होता है, लेकिन इन सारी सुविधाओं का फायदा रईस और रसूखदार जैसे लोग जमकर उठाते रहे हैं. अब शायद वक्त बदलने लगा है और ऐसे संपन्न लोग इन रियायतों को ना कहने का साहस दिखाने लगे हैं. हालांकि ऐसे लोगों की संख्या गिनती में ही है.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी ऐसे लोगों में हैं जो सरकारी रियायतों का फायदा अब तक उठाते रहे हैं. लेकिन मुख्यमंत्री राव ने अब खेती पर मिलने वाली सब्सिडी नहीं लेने का फैसला किया है. वह स्वैच्छिक तौर पर हर साल 8,000 रुपए प्रति एकड़ से मिलने वाली छूट छोड़ेंगे. इस साल मई तक पूरे राज्य में 71 लाख किसानों को यह सब्सिडी दी जानी है. ऐसा करने वाले वह राज्य के पहले किसान होंगे.
गैस पर लोगों ने नहीं छोड़ी छूट
राव फरवरी में किसानों को दिए जाने वाले सब्सिडी संबंधित नए दिशा-निर्देश जारी करने के बाद यह घोषणा करेंगे. मुख्यमंत्री राव का यह ‘त्याग’ ‘अमीर किसानों’ जिसमें कई मंत्री भी शामिल, सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, ग्रुप-1 के ढेरों अधिकारियों समेत कई बड़े लोगों को उत्साहित करेगा कि वो भी इस तरह का ‘त्याग’ करें. इन लोगों के लिए ऐसे आर्थिक मदद की कोई दरकार नहीं है क्योंकि ऐसे लोग तो नाममात्र के ही किसान हैं.
हालांकि इस पर अभी संशय ही है कि राव की यह मुहिम ज्यादा कामयाब होगी. केंद्र सरकार की ओर से संपन्न लोगों द्वारा एलपीजी गैस छोड़ने का अभियान राज्य में पूरी तरह से नाकाम रहा. तेलंगाना राज्य में करीब 90 लाख एलपीजी गैस उपभोक्ता हैं, जिसमें से महज 5 फीसदी यानी 4.90 लाख लोगों ने यह सब्सिडी छोड़ने का फैसला लिया.
राव ने ही किसानों को दी जाने वाली आर्थिक मदद राज्य के हर तरह के कृषि योग्य जमीन के मालिकों को दिए जाने का फैसला किया था, ताकि सामाजिक या आर्थिक स्तर पर जारी अनियमितता को रोका जा सके.
मुख्यमंत्री को 6.8 लाख की मदद
मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के पास शहर के निकट इरावेल्ली में करीब 85 एकड़ की जमीन है, जिसके हिसाब से हर साल उनका दावा 6.8 लाख रुपए बनता है. सरकार को खरीफ फसल तक राज्य के सभी 71 हजार किसानों को मदद के लिए 5,600 करोड़ रुपए देने हैं. नवंबर में रबी फसल के लिए इन्हीं किसानों को 5,000 करोड़ और देने होंगे. इस तरह से सालभर में राज्य के पास 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का अतिरिक्त भार पड़ेगा.
राज्य सरकार ने 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान 17,500 करोड़ रुपए किसान कर्ज माफ करने का वादा किया था, इसके 4 साल में जाकर राज्य सरकार बैंकों को 4 किश्तों में यह भुगतान कर सकी थी.
अब हर साल किसानों को दी जाने वाले 10 हजार करोड़ की मदद राज्य पर आर्थिक बोझ ही बढ़ाएगी. हालांकि इसका मकसद कमजोर किसानों की खेती के लिए राह आसान करना था. अगर संपन्न लोग से इसे स्वैच्छिक तौर पर छोड़ने की अपील करते हैं तो इससे राज्य के खाते में हर साल 500 करोड़ की बचत होगी.
15 फीसदी किसान हैं ‘संपन्न’
कृषि विभाग के अनुसार, तेलंगाना राज्य में 62 फीसदी किसानों के पास 2.5 एकड़ से भी कम की जमीन है, जबकि 24 फीसदी किसानों के पास 2.5 से 5 एकड़, 11 प्रतिशत किसानों के पास 5 से 10 एकड़ और 3 फीसदी से कम लोगों के पास 10 से 25 एकड़ और 0.88 फीसदी लोगों के पास 25 एकड़ से ज्यादा की जमीन है.
मुख्यमंत्री ने इस आधार पर आकलन किया कि अगर 5 एकड़ से ज्यादा की जमीन वाले किसान का प्रदेश के कुल 71 लाख किसानों में से योग देखा जाए तो यह संख्या 15 फीसदी के करीब बैठती है, जो स्वैच्छिक तौर पर यह मदद छोड़ने में सक्षम हैं. हालांकि सरकार ने कहा कि है यह फैसला अनिवार्य नहीं है, इसे स्वैच्छिक तरीके से ही किया जा सकता है.