500 साल पुरानी है बनारस में सिल्क के उत्पाद बनाने की परंपरा, बनते हैं 50 से अधिक उत्पाद
अपनी परंपरा से जुड़े उपहार देकर दिवाली को बनाए यादगार
उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण में रेशम उद्योग में फूंकी नई जान
वाराणसी,10 नवंबर
एक जनपद, एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत बनारस की रेशमी साड़ियां, अंगवस्त्र या अन्य उत्पाद अपनों को उपहार देकर दिवाली को खास बन सकते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना संक्रमण के दौरान बनारस के रेशम कारोबार को न सिर्फ बचाया बल्कि उसे ओडीओपी में शामिल कर रेशम उद्योग में जान फूंक दी है। रेशम कारोबारियों का मानना है कि रेशम उद्योग को बचाने की प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की अपील से रेशम उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के लोगों से इस दीपावली में अपने प्रियजनों और मित्रों को एक जनपद एक उत्पाद के सामानों का उपहार देने की अपील की है। इससे शहर के रेशम उद्योग को बढावा मिलेगा।
पूरी दुनिया में मशहूर हैं रेशम के उत्पाद
वाराणसी के रेशम उत्पादों की पूरी दुनिया में अपनी पहचान है। खासकर बनारसी साड़ी खास अवसरों के लिये हर किसी की पहली पसंद है। बनारसी रेशम से करीब 50 से अधिक उत्पाद बनाए जाते हैं। जिनको इस दिवाली आप अपनों को भेंट दे सकते हैं। इसमें बनारसी रेशम की साड़ी, रेशम से बने वॉल हैंगिंग, सिल्क के बने हुए कुशन कवर, स्टोल , टाई, पेपर होल्डर और बटुए आदि। बाजार में ये 500 से लेकर 1000 रुपए की कीमत में उपलब्ध हैं। यह उत्पाद उपयोगी होने के साथ-साथ दिवाली को यादगार बना सकते हैं। सिल्क उत्पाद से जुड़े प्रमुख व्यवसायी राहुल मेहता, मुकुंद अग्रवाल, निर्यातक रजत सिनर्जी समेत कई व्यापारियों का मानना है कि रेशम से बने उत्पादों को गिफ्ट देने का एक सिलसिला बनेगा तो इससे कारोबारियों, निर्यातकों से लेकर इनको बनाने वालों तक को लाभ होगा।
बनारस की संस्कृति में शामिल है बनारस का रेशम
वाराणसी में अपने विशिष्ट मेहमानो को अंगवस्त्र देने की परंपरा है। खासतौर पर बौद्ध भिक्षुओं में
अपने धर्मगुरुओं को उनके सम्मान में रेशम से निर्मित अंगवस्त्र दिए जाने की परम्परा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी वाराणसी में अंगवस्त्र एक बुनकर ने भेंट किया था। जिस पर बुनकर ने कबीर के दोहे, “चदरिया झीनी रे झीनी, राम नाम रस भीनी, चदरिया झीनी रे झीनी, चदरिया झीनी रे झीनी, की बुनकारी की गई थी । यही नहीं, अयोध्या में भी रेशमी अंग वस्त्र गया था, जिस पर जय श्री राम और अयोध्या पवित्र धाम की बुनकारी की गई थी।
बौद्ध की तपोस्थली सारनाथ के विशेषज्ञ पद्मश्री डा॰ रजनीकांत (भौगोलिक संकेतक) और कारोबारी रितेश पाठक बताते है कि हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि भगवान बुद्ध के अनुयायी पूरी दुनिया में बनारसी सिल्क का इस्तमाल पूजा और वस्त्रों के रूप में करते हैं। जिसे किंमखाब, ग्यासार, ज्ञानटा, दुर्जे, पेमाचंदी, आदि नामों से जाना जाता है। बौद्ध धर्म से जुड़े ब्रोकेट के सिल्क वस्त्र पूरी दुनिया में काशी से ही जाते हैं। थाईलैंड, श्रीलंका, मंगोलिया जैसे कई देशों में भी बनारसी सिल्क वाराणसी से निर्यात होता है। बालीवुड के साथ हालीवुड की पहली पसंद हैं रेशम के उत्पाद। बनारसी सिल्क हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है। बनारस की पहचान यहां के रेशम उद्योग की परंपरा करीब 500 साल पुरानी है।