कोरोनाकाल में जितनी तेजी से पेट्रोल और डीजल के दामों ने छलांग लगाई है उससे ज्यादा तेजी से भागा है खाद्य तेल। यह अपने रिकार्ड उच्चतर स्तर पर पहुंच गया है। सरसो के साथ रिफाइंड आयल, पॉम आयल, ओलिव आयल, मूंगफली का तेल, सोया, तिल और नारियल के तेल का दाम भी काफी बढ़ गए हैं।
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किए जा रहे उपाय में अभी महंगाई नियंत्रण करने के लिए इन खाद्य तेलों के दामों में भी गिरावट जरूरी दिख रही है। सरकार में मंथन चल रहा है। बताया जा रहा है कि अब सभी पक्ष इस बात ध्यान दे सकते हैं कि देश में खुदरा के साथ थोक महंगाई को भी नियंत्रण में करने के उपाय खोजे जाएं। फिलहाल तो जिस तरह से खाद्य तेलों के दाम अचानक से एक महीने के अंदर बढ़े हैं उससे महंगाई भी अब काबू से बाहर हो गई है।
थोक महंगाई बढ़कर दहाई पर पहुंची
सिर्फ जिंस कारोबार यानी खाद्य और दलहन की बात करें तो इससे महंगाई में काफी इजाफा हुआ है। थोक और खुदरा दोनों पर स्तर पर जमकर दाम बढ़े हैं। अप्रैल 2021 में थोक मूल्य सूचकांक यानी डब्लूपीआइ पर आधारित अगर महंगाई सालाना की बात करें तो यह सालाना करीब 10.49 फीसद बढ़कर अपने अब तक के सबसे उच्चतर स्तर पर पहुंच गई है। दहाई पर थोक मूल्य सूचकांक का पहुंचना ही अपने आप में काफी मुश्किल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, सूचकांक में इतनी तेजी का प्रमुख कारण सिर्फ कच्चे पेट्रोलियम और खनिज तेल के दाम में बढ़ोतरी होने की वजह को बताया जा रहा है। इसी तरह अगर सिर्फ महीने के आधार पर थोक मूल्य सूचकांक की बात करें तो मार्च के 7.39 फीसद के मुकाबले यह 310 आधार अंक आगे बढ़ा था।
उपभोक्ता से जुड़े सूचकांक में कमी
लेकिन गौर करने वाली बात है कि उसी महीने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी की सीपीआइ पर आधारित महंगाई घटकर 4.29 फीसद पर आ गई। जानकारों की माने तो ऐसा माना जा रहा है कि खाद्य तेलों के अलावा अन्य खाद्य कीमतों में आई कमी की वजह से यह अंतर दिखाई पड़ा। सीपीआइ मार्च में 5.52 फीसद रहा जो थोक मूल्य सूचकांक से काफी कम है। जानकार बताते हैं कि अभी जैसे–जैसे फसलों की पैदावार का समय होगा वैसे–वैसे दामों में भी गिरावट देखने को मिलेगी लेकिन जिस तरह से दामों के बढ़ने का चलन शुरू हुआ है उससे यह कहना मुश्किल है कि यह गिरावट कब तक रहेगी। बताया तो यह भी जा रहा है कि जिंस कारोबार में शामिल दलहन और चावल के अलावा अन्य चीजों के दामों में बढ़ोतरी होगी। इनमें भी अंतर दिखेगा लेकिन यह उतना प्रभावी नहीं होगा।
क्या कहता है आपका किचन
किचन में खाने का स्वाद महंगाई से हमेशा बेस्वाद हुआ है। कभी सब्जियों के दाम में आग लग रही है तो कभी दलहन में। अब तो खाद्य तेलों ने ऐसा महंगाई को आग लगाया है जिससे लोगों के पसीने छूट गए हैं। यह उछाल कुछ महीनों में ज्यादा देखने को मिला है। दिल्ली के बाजारों की बात करें तो यहां सरसों का तेल का खुदरा दाम 50 से 90 रुपए प्रति लीटर महंगा हो गया है। ब्रांड के सरसों तेल और महंगे हुए हैं। इसी तरह मूंगफली के तेल का दाम भी 40 रुपए से 90 रुपए तक महंगा हो गया है। इनके भी ब्रांडों में काफी अलग–अलग दाम है। सोयाबीन के तेल का भी यही हाल है। यह भी 50 रुपए से 80 रुपए तक बढ़ा है। पहले जिस तेल की कीमत 125 रुपए प्रति लीटर थी अब वह 170 से लेकर 210 रुपए तक पहुंच गया है।
कहीं जमाखोरी तो नहीं वजह
अचानक से बढ़े दामों के पीछे लोग जमाखोरी को वजह बता रहे हैं। लेकिन मामले में मंडियों में दालों के कारोबार के सगंठन से जुड़े लोगों का कहना है कि बाजार में यह खबरें भी तेज हैं कि जमाखोरी की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन कोरोना की वजह से सरकारों का ध्यान इस ओर न जाने से भी मुश्किलें बढ़ी हैं। उपाय सरकारों को ही ढूंढना है। वहीं कुछ जानकार बता रहे हैं कि दलहन में कुछ दालों का उत्पादन इस साल कम रहने से भी दालों की कीमत में इजाफा हो सकता है। पिछले दिनों सरकार की ओर से जानकारी दी गई कि खाद्य तेलों की स्थिति अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सुधर रही है और दाम गिर रहे हैं। वहीं लॉकडाउन की वजह से मांग भी घटी है। लेकिन सरकार की ओर से कदम उठाए जा रहे हैं और स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।
GB Singh