लखनऊ: APPLE कम्पनी में मैनेजर विवेक तिवारी की हत्या के बाद पुलिस विभाग पर उठ रहे सवालों का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। सिपाही प्रशांत ने जिस तरह विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या की, न तो वह पुलिसिंग का हिस्सा है और न ही आत्मरक्षा के लिए उठाया गया कदम। अब खाकी पर लगे इस बदनुमा दाग को मिटाने के लिए पुलिस विभाग के आला अधिकारी चिंतन और मंथन कर रहे हैं। विवेक तिवारी जैसी घटना दोबारा न हो इसके लिए लखनऊ पुलिस के सिपाहियों की ट्रेनिंग करायी जायेगी।
लखनऊ पुलिस के 6 हजार सिपाहियों को 12 दिनों की विशेष ट्रेनिंग करायी जानी है। सवाल उठने लगा है कि हर बार बड़ी घटना के बाद लीपापोती के लिए कुछ न कुछ नया करने की कोशिश की जाती है। इन कोशिशों का नतीजा लगभग शून्य ही रहता है। अब सिपाहियों की ट्रेनिंग से क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि पुलिस विभाग में अधिकारों के दुरूप्रयोग का सिलसिला थम जायेगा। असल में विवेक तिवारी के साथ जो घटना घटी तो अधिकारों के दुरुपयोग का नतीजा था। सिपाही प्रशांत को इस बात की गलत फहमी थी कि वह बेगुनाह विवेक को गोली मार देगा और उसका कुछ नहीं होगा।
इसके लिए प्रशांत ने अपनी जान पर खतरे की कहानी रची। क्या इस तरह कोई पुलिस वाला अपनी जान पर खतरे की बात बताकर किसी को भी खुलेआम गोली मार सकता है। वहीं इस घटना के बाद भी बाकी पुलिस वालों ने भी जो कुछ किया वह भी इस बात को दर्शाता है कि पुलिस के लोग शायद मानवता, शिष्टाचार और पुलिसिंग के असली मकसद को भूल चुके हैं। इस घटना की चश्मदीद गवाह सना इस बात का पहले ही कह चुकी है कि घटना के बाद उस पर पुलिस वालों ने कई तरह के दबाव बनाये।
उसे फोन नहीं करने दिया, मनचाही तहरीर लिखवायी गयी। गोली मारे जाने की घटना को पुलिस ने पहले सड़क हादसा और फिर आत्मरक्षा साबित करने की नाकाम कोशिश की। वहीं इस घटना के बाद कुछ पुलिस वाले आरोपी सिपाही प्रशांत और संदीप के पक्ष में लामबंद होने लगे। सोशल मीडिया पर उसे हीरो साबित किया जाने लगा। अनुशासन से बंधी पुलिस फोर्स में आरोपी सिपाहियों की पैरवी शुरू हो गयी।
विवेक तिवारी की हत्या ने पुलिस विभाग पर जो दाग लगाया उसे मिटा पाना शायद ही किसी ट्रेनिंग या फिर बयानबाजी के लिए आसान नहीं होगा। सिपाहियों की ट्रेनिंग क्या बदलाव लाती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। पर एक बात तय है कि सिपाही पद पर भर्ती होने के बाद 9 माह की ट्रेनिंग में पढ़ाया जाने वाला पाठ पुलिसकर्मी भूल जाता हैं। एक सिपाही की ट्रेनिंग पर लाखों रुपये का खर्च आता है। अब फिर से सिपाहियों की ट्रेनिंग पर पुलिस विभाग का खर्च भी बढऩे वाला है।
भ्रष्टïाचार और अराजककर्मियों पर नकेल की जरूरत: एम.सी. द्विवेदी
विवेक तिवारी हत्याकाण्ड के बाद पुलिस विभाग में चल रही कार्रवाई और हलचल को लेकर पूर्व डीजीपी एमसी द्विवेदी ने साफ कहा है कि जो कुछ भी हुआ वह किसी भी हाल में सही नहीं था। सिपाहियों को इस तरह से विवेक पर गोली नहीं चलानी चाहिए थी। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि सिपाहियों की ट्रेनिंग कराना अच्छी बात है, पर इसके नतीजों को लेकर वे सशंकित हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग से ज्यादा व्यवस्था में बदलाव की आश्यकता है। पुलिस विभाग में फैले भ्रष्टाचार और अराजक पुलिस वालों पर नकेल कसने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि अक्सर कुछ भ्रष्ट पुलिस वाले किसी न किसी कारण से अपराध करके भी साफ बच निकलते हैं। यह देख विभाग में काम करने वाले दूसरे पुलिस वालों पर भी इसका गलत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग में अच्छा काम करने वालों की सराहना कम होती है। अच्छा काम करने वाले पुलिस वालों को बड़े स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए और किसी भी तरह के अपराध में लिप्त पुलिस वालों को कानून के हिसाब से ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो दूसरे पुलिसकर्मियों के लिए मिसाल का काम करे। पूर्व डीजीपी ने कहा इनाम और सजा का पैमाना सबके लिए एक होना चाहिए।
क्यों घटा दिया गया ट्रेनिंग पीरियड और क्वालीटी: आरके चतुर्वेदी
राजधानी के एसएसपी और फिर डीआईजी रह चुके सेवानिवृत्त आईपीएस आर.के. चतुर्वेदी ने पुलिस विभाग को ही खटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रदेश के पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में महज 12 से 15 हजार पुलिस कर्मियों की ही ट्रेनिंग की व्यवस्था है, जबकि कहीं अधिक पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण दिलाया जाता है। ट्रेनिंग स्कूल में जगह न होनेे पर नये सिपाहियों को पुलिस लाइन में ट्रेनिंग करायी जा रही है, जबकि पुलिस लाइन्स ट्रेनिंग की जगह नहीं है। पुलिस लाइन प्रभारी आरआई की जिम्मेदारी जिले में फोर्स के मैनेजमेंट की है न की सिपाहियों की ट्रेनिंग की। उन्होंने पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण अवधि को 1 वर्ष से घटाकर 9 महीने करने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण अवधि घटने से सिपाहियों की ट्रेनिंग की क्वालिटी में भी गिरावट देखने को मिली है। अधिकारियों के दिशा-निर्देशन में कमी आयी है। पुलिसकर्मियों में बढ़ती अनुशासनहीनता पर श्री चतुर्वेदी ने कहा कि कुछ वर्षों पूर्व तक सिपाही और दारोगा बावर्दी रहते थे। अब आलम यह हो गया कि सिपाही और दारोगा अधिकारियों के सामने भी अक्सर पूरी वर्दी पहन कर नहीं जाते हैं। धिकारियों के साथ चलने पर सिपाही और दारोगा बिना टोपी नज़र आते हैं। जब तब उन्हें इन छोटी-छोटी बातों के लिए टोका नहीं जायेगा तो अनुशासन का स्तर गिरता चला जायेगा। सिपाहियों के असलहे पर बात करते हुए पूर्व आईपीएस आरके चतुर्वेदी ने बताया कि सिपाहियों का असली असलहा राइफल है। उनको पिस्टल और रिवाल्वर दिया जाना गलत है। उन्होंने बताया कि इस तरह के ऑटोमेटिक असलहों का प्रयोग दरोगा या फिर ट्रेनिंग कर चुके सिपाही ही कर सकते हैं। उन्होंने स्पष्टï कहा कि विभाग को दुरुस्त करने के लिए ओवरहॉलिंग की जरूरत है, दिखावे की नहीं। फोर्स को एक बार फिर से बेसिंग पुलिसिंग का पाठ पढ़ाना जरूरी है। उन्होंने 12 दिनों के लिए शुरू होने वाली ट्रेनिंग पर कहा कि 9 माह में सीखा हुआ जो भूल गया वह 12 दिन की ट्रेनिंग में क्या सीख सकेगा।
लखनऊ, 4 अक्टूबर।