– देवबंदी विचारधारा के शहरकाजी मौलाना मतीनुल हक ओसामा
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कुर्बानी का धार्मिक के अलावा आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संतुलन का कारण है। करोड़ों लोग कुर्बानी कराते हैं। मीट खाने वाले गरीबों में मीट बांटते हैं। जानवरों की खालों को दान करते हैं, जिसे बेचकर मदरसे या अन्य संस्थानों में गरीब बच्चों का पालन पोषण होता है। लोग मीट नहीं खाएंगे तो 80 रुपये प्रति किलो मिलने वाली सब्जी 800 रुपये किलो मिलेगी। इतनी उपलब्धता भी नहीं है। जानवरों की कुर्बानी नहीं होगी तो सड़कों पर इंसानों से ज्यादा जानवर दिखेंगे। यह पारिस्थितिकी तंत्र है।
– शिया बुद्धिजीवी डॉ. मजहर अब्बास नकवी
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कुर्बानी का विरोध नहीं किया है, जिन्होंने यह बात कही है, यह उनकी निजी राय हो सकती है। मंच गोहत्या के खिलाफ रहा है और आगे भी रहेगा।
– मोहम्मद समी अंसारी, प्रांत सह संयोजक, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
अल्लाह के पास कुर्बानी की भावना पहुंचती है। इस्लाम रहम करने वाला धर्म है। अल्लाहताला ने पैगंबर का कुर्बानी का इम्तिहान उनकी भावना देखने के लिए लिया था। बकरीद पर बकरों की कुर्बानी के बजाय क्रोध, ईर्ष्या, बुराइयों की कुर्बानी करें। यही धर्म सिखाता है।
– कमलमुनि जैन, राष्ट्रसंत, जैन धर्म
बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी बहुत गलत है। देश का कानून उन्हें ऐसा करने की इजाजत देता है, इसलिए इसका प्रावधान है। मेरे हिसाब से यह नहीं होना चाहिए। अगर कुर्बानी नहीं होगी तो जानवर बढ़ेंगे यह कहना गलत है। बकरा, मुर्गा खाया जाता है, इसीलिए उनकी आबादी बढ़ाने के लिए उनको पाला जाता है। कुक्कुट पालन इसीलिए होता है क्योंकि उनको खाया जाता है।
– डॉ. अर्चना त्रिपाठी, पशु प्रेमी
बकरीद मुसलमानों का बड़ा त्योहार है। त्योहार खुशी से मनाया जाए। सभी को यह व्यवस्था करनी चाहिए कि शांति से त्योहार मने। कुर्बानी कराना मुस्लिमों के धर्र्म में बताया गया है। इसलिए इसमें दूसरा धर्म कैसे हस्तक्षेप करे।
– महंत कृष्णदास, पनकी मंदिर