ऐसा माना जाता है कि क्रिकेट का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। इतिहास के पन्नों को खगालने पर पता चलता है कि आधुनिक दुनिया का सबसे पहला क्रिकेट 1709 में खेला गया था। इसे अंग्रेज उपनिवेश वर्जीनिया के अपने जेम्स रीवर इस्टेट में विलियम बायर्ड ने क्रिकेट खेला था। तबसे क्रिकेट ने कई तरह के रूप बदले हैं। शुरुआत में 6 दिन तक खेले जाने वाला क्रिकेट का चलन खत्म हो गया है। अब पूरा खेल 40 ओवर में ही ख़त्म कर दिया जाता हैं । कभी अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी आज लीग क्रिकेट में अलग-अलग देशों के खिलाड़ियों के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं।
लोग क्रिकेट के शुरुआती दौर में बैट की जगह डंडे से ही क्रिकेट खेलते थे। युग बदला तो टेक्नोलॉजी ने जन्म लिया और क्रिकेट बैट चलन में आ गया। आधुनिक युग के क्रिकेट बैट को बनाने के लिए विलो लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है लेकिन कैंब्रिज वैज्ञानिक ने बल्ले बनाने की नई टेक्नोलॉजी की खोज की है। इसे देख कर लगता है कि आने वाले समय में जल्द ही हमें क्रिकेट बैट में भी बदलाव होते नजर आएंगे।
अभी विलो लकड़ी के इस्तेमाल से बनता है क्रिकेट बैट
अभी हम क्रिकेट खेलने के लिए जिस बल्ले का इस्तेमाल देखते हैं। उसका निर्माण विलो लकड़ी से होता है। क्रिकेट का बैट भी दो तरह की विलो लकड़ी से ही बनता है। कश्मीरी विलो और इंग्लिश विलो। ज़्यादातर बल्लेबाज इंग्लिश विलो से बने बैट का ही इस्तेमाल करते हैं। बल्ला बनाने के लिए लकड़ी को पहले प्राकृतिक हवा में सूखने के लिए छोड़ा जाता है फिर उसका वजन नापा जाता। वजन के हिसाब से ग्रेडिंग करने के बाद ही बल्ले को तैयार करने की प्रक्रिया शुरु होती है। बता दें कि भारत में सबसे ज्यादा बल्लों का निर्माण मेरठ, जालंधर और कश्मीर में ही होता है।
कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने नए तरह के बल्ले की खोज की
दलअसल कैंब्रिज के वैज्ञानिकों ने बास की लकड़ी से बल्ले का निर्माण किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में सभी बल्लेबाज बास की लकड़ी से बने बल्लों का ही इस्तेमाल करेंगे। बांस के बने बल्ले से खेलना अब संभव हो गया है। हमने कई तरह के परिक्षण करने के बाद ही इस बल्ले का निर्माण करने की मंजूरी दी है।
क्या होंगी खासियतें
लैमिनेटेड बास के बल्ले अभी तक बन रहे विलो की लकड़ी से कही ज़्यादा मजबूत हैं। इनका निर्माण पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना भी आसानी से किया जा सकता है। बास के बल्लों से बने बैट से यॉर्कर वाली गेंदों पर चौके लगाने में आसानी होगी। इसके अलावा तेज गेंदों पर प्रहार करने के दौरान ये बल्ले टूटेंगे भी नहीं। इस पर बॉल जब मिडिल पर लगती है तो काफी मधुर आवाज भी निकलती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये बल्ले लकड़ी के बल्लों की तुलना में 40 % तक भारी होंगे पर ब्लेड्स हल्के होने के कारण शॉट्स लगाने में आसानी होगी।
ऋषभ वर्मा