कार्तिक मास में पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा का बहुत खास महत्व है। इन दोनों ही दिनों में पूजा पाठ करने का काफी लाभ मिलता है। अमावस्या में जहां दीपावली पड़ती है वहीं पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है। कहा जाता है कि यह पर्व देवताओं का पर्व होता है। इस पर्व में देवता दीपावली का त्योहार मनाते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है। इसी पूर्णिमा को सिखों के गुरुनानक देव जी का भी जन्म हुआ था। वहीं गंगा स्नान भी लोग इसी दिन करते हैं। आइए जानते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ
कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा सभी पूर्णिमा में काफी श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पूजा करते हैं। शाम के समय दीपदान करने का चलन है। लोग कार्तिक पूर्णिमा को दान पुण्य के लिहाज से भी काफी अच्छा मानते हैं। कुछ लोग इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। इस दिन हर तरह के शुभ कार्य मान्य है। देव दीपावली को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखा जाता है। काफी कहानियां भी हैं इसके पीछे। कहा जाता है कि इस दिन दान जरूर करना चाहिए। लोगों को नदी में स्नान करके 19 नवंबर को सुबह सूर्य उदय से पूर्व से लेकर दोपहर ढाई बजे तक शुभ मुहूर्त में डूबकी लगाकर दान कर सकते हैं।
क्या है पौराणिक कथा
जानकारी के मुताबिक, त्रिपुरासुर नाम का राक्षस ने जब प्रयाग में तपस्या की तो तीनों लोक उसके तेज से त्राहिमाम करने लगे। ब्रह्माजी ने त्रिपुरासुर से वरदान मांगने को कहा तो उसने मांगा कि देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी और निशाचर में कोई भी उसको मारने वाला न हो। ब्रह्माजी के वरदान देते ही त्रिपुरासुर ने काफी लोगों को परेशान कर दिया। देवता भी भागने लगे। तब देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। उसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन देवताओं ने दीप जलाकर खुशी मनाई और देव दीपावली मनाई। इसलिए इस दिन दीपदान का भी महत्व है।
GB Singh