गणपति उत्सव करीब आ रही है। एक दिन बाद ही लोगों के घरों में भगवान गणेश पधारेंगे। लोगों ने इसके लिए तैयारी कर रखी है। घरों को सजाया है और मंडप लगाया है। वैसे तो इसकी धूम देश और विदेश के हर राज्य में दिखती है लेकिन महाराष्ट्र में इसकी छटा निराली है। यहां लोग एक महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। घरों को भी खूब सजाते हैं। सजावट में आम की पत्ती, फूल, केले के पत्ते और दूर्वा का खास महत्व दिखता है। दूर्वा गणेश को चढ़ाते भी हैं। आइए जानते हैं कि दूर्वा का गणेशा चतुर्थी पर क्या महत्व है।
गणेश चतुर्थी 31 अगस्त से शुरू हो रही है। यह 10 दिनों तक चलेगी। इसके बाद गणपति का विसर्जन किया जाएगा। गणेश चतुर्थी हमेशा शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन होती है इसलिए इस दिन को लेकर खास तैयारी की जाती है। घर-घर में स्थापना होती है। भगवान न केवल दुखहर्ता हैं बल्कि वह रिद्धि सिद्धि भी देते हैं। गणपति को मनाना जितना आसान हैं उतनी ही जल्दी वह नाराज भी होते हैं। ऐसे में उनको दूर्वा बहुत पसंद आती है। दूर्वा के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। दूर्वा चढ़ाते समय मंत्रों का जाप भी करना चाहिए और नियमों का पालन करना चाहिए।
कैसे अर्पित करें दूर्वा
दूर्वा भगवान गणेश को गणेश चतुर्थी के अवसर पर दस दिनों तक सुबह शाम चढ़ाएं। उसकी माला बनाएं। उसको द्वार पर टांगे। दूर्वा से सभी कष्ट दूर होते हैं। जिस प्रकार दूर्वा तमाम परेशानियों को सहने के बाद हरी-भरी होकर फिर से जीवित हो उठती है उसी प्रकार मनुष्य भी भगवान गणेश की पूजा करने के बाद अपने संकटों से उबरता है। दूर्वा को हमेशा जोड़े में चढ़ाएं। दो दूर्वा को जोड़कर एक गांठ लगाई जाती है। 22 दूर्वा को जोड़कर 11 गांठ लगाएं। दूर्वा अर्पित करते समय गणपति का कोई भी मंत्र याद करें और बोलें। दूर्वा मस्तक पर अर्पित करें। मंदिर में उगी या बगीचे की दूर्वा ही अच्छी होती है। कहीं और से लाएं तो वह साफ जगह की हो। उसे साफ करके ही भगवान को चढ़ाएं।