रूस- नाटो विवाद: विशेषज्ञों की राय ये क्षेत्र बन सकता है युद्ध का नया रण

रूस और यूक्रेन जंग (Russia Ukraine War) और फ‍िनलैंड एवं स्‍वीडन के नाटो (NATO) में शामिल होने के साथ एक बार फ‍िर शीत युद्ध (Cold War) जैसे हालात उत्‍पन्‍न हो गए हैं। इसमें एक तरफ अमेरिका के वर्चस्‍त वाली नाटो सेना है तो दूसरी और रूसी सैनिक हैं। दरअसल, रूस की आक्रामकता से बचने के लिए पश्चिमी देश नाटो संगठन के साथ जुड़ने में दिलचस्‍पी दिखा रहे हैं, उधर, नाटो के विस्‍तार के जवाब में रूस भी एक्‍शन मोड में आ गया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने यह ऐलान किया है कि रूस नाटो से निपटने के लिए 12 मिलिट्री यूनिक की स्‍थाना करेगा। हालांकि, उन्‍होंने नाटो या अमेरिका का नाम नहीं लिया, लेकिन इससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इससे क्षेत्र में अस्थिरता और सामरिक संघर्ष बढ़ेगा। क्‍या सच में एक बार फ‍िर शीत युद्ध जैसे हालात उत्‍पन्‍न हो गए हैं। फ‍िनलैंड और स्‍वीडन के नाटो सदस्‍यता से रूस को क्‍या आपत्ति है।

1- विदेश मामलों के जानकार प्रो अभिषेक सिंह का कहना है कि रूस और नाटो का यह संघर्ष नया नहीं है। इसकी बुनियाद शीत युद्ध के दौरान की है। एक बार फ‍िर अमेरिकी प्रभुत्‍व वाले नाटो के विस्‍तार से रूस चिंतित हो गया है। यूक्रेन जंग रूसी असुरक्षा की ही उपज है। फ‍िनलैंड और स्‍वीडन का नाटो की सदस्‍यता का मामला भी इसी से जुड़ा है। उन्‍होंने कहा कि फ‍िनलैंड बाल्टिक सागर के किनारे बसा एक गुटनिरपेक्ष मुल्‍क है। ऐसे में अगर नाटो चाहे तो एस्‍टोनिया और फ‍िनलैंड के बीच नाकेबंदी कर रूस की उत्‍तरी सीमा को घेराबंदी कर सकता है। एस्‍टोनिया पहले से ही नाटो संगठन का सदस्‍य देश है। रूस की सबसे बड़ी चिंता बाल्टिक सागर को लेकर है। अगर ऐसा हुआ तो पूरे बाल्टिक सागर में रूस का समुद्री व्‍यापार ठप पड़ सकता है। इस क्षेत्र में रूस की आवाजाही प्रभावित होगी। यही वजह है कि रूस नहीं चाहता कि नाटो उसकी उत्‍तरी सीमा के निकट पहुंचे।

2- प्रो अभिषेक ने कहा कि रूस ने जिस तरह यूक्रेन पर हमला करके तबाही मचाई है, उसने दूसरे पड़ोसी मुल्‍कों की चिंता बढ़ा दी है। रूस के पड़ोसी मुल्‍क अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है। यही कारण है कि अधिकतर देश नाटो में शामिल होकर खुद को सुरक्षित करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि सदस्य बनने पर अमेरिका और अन्य बड़े नाटो देश उनकी रक्षा करेंगे। स्वीडन और फिनलैंड रूस के पड़ोसी है। रूस कई बार स्वीडन के एयरस्पेस में घुसपैठ कर चुका है। दोनों ही देश रूस से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि फिनलैंड और स्वीडन नाटो में शामिल होना चाहते हैं। दोनों देश के नागरिक भी मौजूदा हालात को देखते हुए अब नाटो में शामिल होने के पक्ष में हैं, जबकि कुछ साल पहले तक बहुत कम लोग ऐसा चाहते थे। रूस कभी नहीं चाहता कि उसका कोई भी पड़ोसी देश नाटो का सदस्य बने।

रूस की सख्‍त चेतावनी

फिनलैंड की घोषणा के साथ कि वह नाटो में शामिल होने का समर्थन करता है। इसके बाद रूस ने फ‍िनलैंड की बिजली सप्लाई रोक दी। फिनलैंड अपनी कुल बिजली खपत का 10 फीसद रूस से आयात करता है। रूस ने कहा कि अगर फिनलैंड नाटो के खेमे में शामिल होना चाहता है तो हमारा लक्ष्य बिल्कुल वैध है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका हमारे देश को धमकी देता है तो हमारे पास आपके लिए Satan-2 मिसाइल है। अगर आप रूस के अस्तित्व को मिटाने की सोचेंगे तो आप राख हो जाएंगे। रूस ने कहा कि हम फिनलैंड की सीमा पर रणनीतिक हथियार तैनात नहीं करेंगे, लेकिन हमारे पास किंझल क्लास की मिसाइलें हैं, जो 20 या सिर्फ 10 सेकेंड में फिनलैंड तक मार कर सकती हैं। रूस ने यह भी संकेत दिया है कि रूस अपनी पश्चिमी सीमा पर अपने सैन्य बलों को व्यापक रूप से मजबूत करेगा।

यूक्रेन पर युद्ध के बाद फिनलैंड-स्वीडन में फैला डर

1- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के विरोध में 24 फरवरी को स्पेशल मिलिट्री आपरेशन का ऐलान किया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों में रूस विरोधी लहर पैदा हो गई। पुतिन के इस कदम से चैन की नींद सो रहा नाटो भी एकदम जाग गया और उसे एक नया बूस्ट मिल गया। रूस के सैन्य अभियान ने स्वीडन और फिनलैंड को इतना डरा दिया कि दशकों के सैन्य गुटनिरपेक्षता का हवाला देने वाले ये दोनों देश अचानक नाटो में शामिल होने की कोशिश करने लगे।

2- गौरतलब है कि नाटो में 30 देश शामिल हैं। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और जर्मनी ही ऐक्टिव दिखाई देते हैं। कुछ मामलों में बेल्जियम और स्वीडन को भी नाटो की सहायता में मिशन को अंजाम देते हुए देखा गया है। इसके अतिरिक्त बाकी के देश इन सक्रिय देशों की सैन्य मदद पर भी पूरी तरह से निर्भर हैं। इन देशों ने अपनी सुरक्षा में बहुत थोड़ा निवेश किया है, लेकिन रूसी सेना के आक्रमण ने नाटो को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करने और सदस्य देशों को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है।

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