रूस-यूक्रेन जंग (Russia Ukraine War) से पैदा हुए हालात को देखते हुए नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (NATO) की सदस्यता का विस्तार किया जा रहा है। फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन और प्रेसिडेंट सौली नीनिस्टो पहले ही निश्चित कर चुके हैं कि उनका देश NATO सदस्यता के लिए पूरी तरह से तैयार है। रविवार को नाटो प्रमुख जेम्स स्टेलबर्ग ने भी कहा कि वो फिनलैंड को फास्ट-ट्रैक सदस्यता देंगे। इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पर दबाव बढ़ेगा। हालांकि, फिनलैंड ने यह शर्त रखी है कि अगर वह नाटो की सदस्यता ग्रहण करता है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संगठन को लेनी होगी। इसके लिए सभी 30 देशों का समर्थन जरूरी है। नाटो का सदस्य देश तुर्की इसका विरोध कर रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है। क्या नाटो में बिना किसी शर्त के स्वीडन और फिनलैंड शामिल हो सकते हैं। स्वीडन और फिनलैंड की राह में क्या बड़ी बाधा है।
फिनलैंड ने नाटो में शामिल होने के लिए रखी शर्तें
सामूहिक सुरक्षा नाटो के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है। नाटो सदस्य देशों में एक या एक से ज्यादा सदस्यों पर हमला होने की स्थिति में सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा। फिनलैंड और स्वीडन की आवेदन प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग एक साल का वक्त लग सकता है। नाटो सदस्य बनने के लिए सभी संगठन के 30 देशों को नए सदस्यों को मंजूरी देनी होती है। जब तक सभी सदस्य इसकी मंजूरी नहीं दे देते, तब तक नाटो खुलकर उनकी मदद नहीं कर सकता। इस प्रक्रिया के पूरे होने तक फिनलैंड और स्वीडन ने सुरक्षा की गारंटी मांगी है। अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन पहले ही कह चुके हैं कि यदि फिनलैंड और स्वीडेन पर किसी भी तरह का हमला होता है तो वे उनका समर्थन करेंगे और मदद करेंगे।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि स्वीडन और फिनलैंड के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए फिनलैंड नाटो की सदस्यता ग्रहण करने के पूर्व सदस्य देशों से अपनी सुरक्षा की गारंटी जरूर चाहेगा। यही उसका मकसद है। अगर ऐसे में नाटो संगठन का एक भी सदस्य इस प्रस्ताव का विरोध करता है तो फिनलैंड के समक्ष एक बड़ी दिक्कत उत्पन्न हो सकती है। उन्होंने कहा भले ही अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश उसकी सुरक्षा की गारंटी दे रहे हैं, लेकिन नाटो संगठन का यह प्रावधान है कि सभी सदस्य देशों की इसमें सहमति जरूरी है।
2- उन्होंने कहा कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने कहा था कि वह स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के पक्ष में नहीं है। तुर्की इसके लिए अपनी मांगों को आगे रख रहा है। तुर्की का कहना है कि वह चाहता है कि दोनों नार्डिक देश अपने क्षेत्र में मौजूद कुर्द समुदाय के लिए अपने समर्थन को खत्म कर दें। इसके अलावा तुर्की को कुछ हथियारों की बिक्री पर लगे प्रतिबंध को भी हटा दें। उधर, अमेरिका और पश्चिमी सैन्य गठबंधन नाटो को पूरा विश्वास है कि तुर्की दोनों यूरोपीय देशों की नाटो सदस्यता का विरोध नहीं करेगा।
3- प्रो पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन जंग के बाद पश्चिमी देशों में कहीं न कहीं एक असुरक्षा की भावना बढ़ी है। खासकर फिनलैंड और स्वीडन जो पहले नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहे थे, अब वह समर्थन में उतर आए हैं। उन्होंने कहा कि यह बदलाव यूक्रेन पर हमला और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आक्रामकता का परिणाम है।
4- प्रो पंत ने कहा कि अब लोगों के अंदर एक भय है कि अगर रूस ने यूक्रेन की तरह उनके देश में हमला किया तो क्या होगा। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को भले ही पश्चिमी देशों और अमेरिका से आर्थिक और सैन्य सहयोग के साथ नैतिक समर्थन मिल रहा है, लेकिन नाटो में शामिल नहीं होने के कारण वह युद्ध में सीधे तौर पर मदद नहीं कर सकते।
5- उन्होंने कहा कि फिनलैंड और स्वीडन नाटो के सबसे करीबी सहयोगी हैं। दोनों देश नाटो के आपरेशन्स और एयर पुलिसिंग में योगदान करते हैं। यूक्रेन में रूसी हमले के बाद फिनलैंंड औपचारिक रूप से नाटो के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहा है। इतना ही नहीं वह जंग से जुड़े मुद्दों पर हुई हर बैठक में हिस्सा ले रहा है। इसी के साथ वह सैन्य अभ्यास में भाग भी ले रहा है। नाटो की गाइडलाइन के मुताबिक सदस्य देश को ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) का दो फीसद रक्षा में खर्च करना होता है। फिनलैंड इस गाइडलाइन को काफी पहले से अनुसरण कर रहा है। स्वीडन भी अपने सैन्य बजट को बढ़ा रहा है। इसलिए वह नाटो में शामिल होने का प्रबल दावेदार है।
फिनलैंड के नाटो में शामिल होने से क्या होगा
फिनलैंड ने 1917 में आजादी की घोषणा की थी। उससे पहले फिनलैंड का ज्यादातर हिस्सा, रूस के अधीन था। फिनलैंड दूसरे युद्ध के दौरान रूस के खिलाफ जंग लड़ चुका है। वर्ष 1917 में फिनलैंड रूस से आजाद हुआ था। रूस की 1300 किमी लंबी सीमा फिनलैंड से मिलती है। उसके लिए फिनलैंड एक बफर जोन है। फिलहाल नाटो के सदस्य देशों नार्वे, पोलैंड, एस्टोनिया, लातिविया, लिथुआनिया की रूस के साथ करीब 1,200 किलोमीटर लंबी सीमा है। फिनलैंड नाटो में आ जाता है, तो यह बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। इसके अलावा रूस की व्यापारिक राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग फिनलैंड की सीमा से 170 किलोमीटर दूर है। फिनलैंड के नाटो सदस्य बनते ही रूस के उत्तरी मोर्चे पर भी नाटो की सेना पहुंच जाएगी।