60 और 70 के दशक में बॉलीवुड में एक ऐसी हीरोइन की एंट्री हुई जिसकी खूबसूरती और अदाओं का हर कोई दीवाना हो गया। ये हीरोइन थी विम्मी जो बी आर चोपड़ा की खोज थीं। विम्मी अप्सरा जैसी सुंदर थी और उनका जादू हर किसी पर हावी था। लेकिन उनकी जिंदगी काफी दर्द भरी रही।
फिल्मों में आने से पहले ही विम्मी शादीशुदा थीं और उनकी पहली फिल्म रही 1967 में आई ‘हमराज’। इस फिल्म में उनके साथ सुनील दत्त थे। फिल्म तो हिट रही और उसमें उनकी एक्टिंग को काफी सराहा गया। इसके बाद तो विम्मी उस दौर की बड़ी स्टार बन गईं और निर्देशकों, प्रोड्यूसर उनके घर के चक्कर काटने लगे। लेकिन उनका करियर उनके पति की वजह से चल नहीं पाया।
एक वेबसाइट के मुताबिक, विम्मी के पति उन्हें काफी प्रताड़ित करते थे। यहां तक कि विम्मी को कौन सी फिल्म करनी चाहिए या नहीं, ये सब विमी के पति तय करते। पति की वजह से उनका स्टाडम कम होने लगा। इससे तंग आकर विमी अपने पति से अलग हो गईं लेकिन पति की वजह से उनकी जो छवि धूमिल हुई उससे उनके करियर पर काफी असर पड़ा।
फिल्ममेकर उनसे कतराने लगे और विम्मी को फिल्में मिलना बंद हो गईं, जिससे विम्मी के पास ना तो कोई इमोशनल सपोर्ट बचा और ना ही प्रोफेशनल। काम ना मिलने की वजह से विम्मी के पास आर्थिक तंगी हो गई। लेकिन इससे भी बुरा तो तब हुआ जब विम्मी ने कई प्रोड्यूसरों से आर्थिक मदद मांगी और सभी ने इंकार कर दिया। इसके बाद तो विम्मी की माली हालत और बुरी हो गई।
एक वक्त पर जिस हीरोइन के फिल्म में होने से ही फिल्म हिट हो जाती थी, बाद में उस हीरोइन को ही फिल्मों के लाले पड़ गए और जो बची-खुची फिल्में रिलीज हुईं वो भी फ्लॉप हो गईं। विम्मी की निजी जिंदगी भी काफी बुरे दौर से गुजर रही थी। आर्थिक तंगी के कारण विम्मी को अपना वो बंगला भी छोड़ना पड़ा जिसमें वो रह रहीं थीं।
एक वक्त पर महंगे कपड़े पहनने वाली, महंगी गाड़ियों में घूमने वाली और लाखों रुपए कमाने वाली हीरोइन बाद में ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी थी कि हर कोई हैरान था। विम्मी इस कदर गुमनामी में चली गईं थीं कि कोई उनकी खोज खबर लेने वाला नहीं था। डिप्रेशन, करियर के खत्म होने और माली हालत खराब होने की वजह से विम्मी ने खुद को शराब के हवाले कर दिया।
कहा जाता है कि आर्थिक तंगी की वजह से विम्मी ने खुद को वेश्यावृति के हवाले कर दिया था और इससे उनका बचा करियर भी बर्बाद हो गया।
और आखिर एक दिन ये हीरोइन इस दुनिया को छोड़कर चली गई। कहा जाता है कि आखिरी दिनों में उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि उनकी शव यात्रा निकाली जाए और उनकी लाश को एक ठेले पर डालकर ले जाना पड़ा था। उनकी अंतिम यात्रा में बस चार-पांच लोग ही थे।