चीन के विदेश मंत्री वांग यी गुरुवार रात साढ़े आठ बजे दिल्ली पहुंचे। शुक्रवार सुबह 11 बजे वांग यी विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मिलेंगे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की यात्रा के बाद भारत पहुंचे वांग यी की मुलाकात संभवत: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से भी होगी। मई 2020 में भारत के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आई गिरावट के मद्देनजर वांग यी की इस यात्रा को काफी अहम माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात का मांगा वक्त
चीन की तरफ से वांग की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के लिए भी समय मांगा गया है। वांग की इस यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि उनके विमान के पालम एयरपोर्ट पर पहुंचने तक आधिकारिक तौर पर न तो भारत की तरफ से कुछ बताया गया था और न ही चीन की तरफ से। विमान पहुंचने के घंटेभर बाद विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बस इतना बताया कि शुक्रवार 11 बजे दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात होनी तय की गई है।
कश्मीर पर की थी सख्त टिप्पणी
इस यात्रा की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गलवन घाटी में चीन की घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच कोई आधिकारिक कूटनीतिक यात्रा नहीं हुई है। हालांकि वांग यी और जयशंकर के बीच एक मुलाकात रूस में हुई है और तीन बार उनके बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई है। भारत आने से पहले वांग यी पाकिस्तान में थे जहां उन्होंने इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) की बैठक में कश्मीर पर टिप्पणी की थी जिस पर भारत ने बेहद सख्त प्रतिक्रिया जताई थी।
दो लाख सैनिक एलएसी पर तैनात
गलवन में चीनी सैनिकों की घुसपैठ और जून में दोनों देशों के सैनिकों की बीच हुई खूनी भिड़ंत के बाद भारत और चीन के रिश्ते काफी खराब हो चुके हैं। दोनों तरफ से अभी भी तकरीबन दो लाख सैनिक पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात हैं। सैनिकों की वापसी और मई, 2020 से पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर पर अभी तक 15 दौर की बातचीत हो चुकी है। पिछले दो दौर की वार्ता (जनवरी और मार्च, 2022) काफी सकारात्मक माहौल में हुई है।
सैनिकों की वापसी को लेकर बन सकती है सहमति
गैर-आधिकारिक तौर पर कुछ अधिकारियों ने यह भी बताया है कि सैनिकों की वापसी को लेकर दोनों देशों के बीच एक सहमति बनती दिख रही है। इसके पहले भी वर्ष 2017 में डोकलाम (भूटान-भारत-चीन सीमा पर स्थित) में दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव काफी बढ़ गया था तब अप्रैल, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकात के बाद रिश्तों में काफी बदलाव आए थे।
गलवन घुसपैठ से बिगड़े रिश्ते
उनके बीच दूसरी और अंतिम अनौपचारिक मुलाकात नवंबर, 2019 में चेन्नई के पास हुई थी। इसमें फैसला किया गया था कि वर्ष 2020 में अगली मुलाकात होगी। लेकिन गलवन घुसपैठ से रिश्तों की गाड़ी पूरी तरह से पटरी से उतर गई और तब से अभी तक दोनों नेताओं के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई है। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए दोनों नेताओं के बीच फिर मुलाकात होगी?
चीन की तरफ से बनाया गया दबाव
इसका जवाब शुक्रवार को वांग यी और जयशंकर के बीच मुलाकात से निकल सकता है। विशेषज्ञ वांग यी के इस दौरे को दोनों देशों की तरफ से रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम बता रहे हैं। खास तौर पर तब जबकि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वैश्विक व्यवस्था में बड़े बदलाव की बात सरकारें और कूटनीतिक विश्लेषक कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि यात्रा के लिए चीन की तरफ से ज्यादा दबाव बनाया गया था।
नेपाल और बांग्लादेश जाने की संभावना
वांग यी भारत के बाद देर रात नेपाल जाएंगे। उनके बांग्लादेश जाने की भी संभावना है। वांग यी की इस यात्रा को चीन की तरफ से दक्षिण एशिया में चीन की इमेज में सुधार करने और अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ : ढांचागत सुविधाओं से जोड़ने की योजना) की दिक्कतों को दूर करने के तौर पर देखा जा रहा है। चीन फिर से बीआरआइ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कर रहा है।