वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद में सेवा कर असेसी के बंटवारे के मामले में निकाले गए फार्मूले पर केंद्र और राज्य सरकार वित्त मंत्रियों के बीच भले ही सहमति बन गई हो, लेकिन इस फार्मूले के विरोध में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के अपने अधिकारी और कर्मचारी ने ही विरोध का झंडा थाम लिया है।
केंद्र सरकार के अप्रत्यक्ष कर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के विभिन्न संगठनों ने सरकार को अपनी प्रतिक्रिया से अवगत भी करा दिया है। इसके साथ ही यह चेतावनी भी दे दी है कि यदि जेटली इसका समाधान नहीं निकालते तो वे न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते है।
50,000 रुपये से अधिक नकद लेनदेन पर लगे कर
उनका कहना है कि सरकार को जल्दबाजी में नई टैक्स व्यवस्था लागू नहीं करनी चाहिए। यदि ऐसा होता है जीएसटी को लागू करने में और देरी हो सकती है।
ऐसा नहीं करने पर संगठन इसे न्यायालय में चुनौती भी दे सकता है। अब अप्रत्यक्ष कर विभाग के समूह ‘क’ श्रेणी के अधिकारियों के संगठन ने भी जेटली से मिल कर इस बारे में अपना विरोध दर्ज कर दिया है।
अधिकारियों का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर विभाग के पास कोई खास काम नहीं रह जाएगा। साथ ही राज्य सरकार के वाणिज्यिक कर विभाग के पास सेवा कर के असेसी को हैंडल करने का कोई अनुभव नहीं है।
इनका कहना है कि राज्यों को स्टेट जीएसटी, सेंट्रल जीएसटी या इंटीग्रेटेड जीएसटी लगाने का अधिकार देना संविधान का उल्लंघन है। ऑडिट और असेसमेंट के लिए 90 फीसदी असेसी को राज्यों के हवाले करने का कोई तार्किक या कानूनी आधार नहीं है। गौरतलब है कि अभी शत प्रतिशत सेवा कर असेसी केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं।