नरेडको के प्रेसिडेंट प्रवीण जैन ने बताया कि अभी फ्लैट की बिक्री पर 4.5 फीसदी सेवा कर (सर्विस टैक्स) व एक फीसदी वैट लगता है। इसके अलावा भी कई प्रकार के टैक्स लगते हैं, जो कुल मिलाकर 10 फीसदी होते हैं। कई राज्यों में कुल टैक्स इससे अधिक भी है। इसलिए छोटे फ्लैट की कीमत पर कोई खास अंतर नहीं होगा।
जैन ने बताया कि जिन मकानों की कुल लागत में जमीन की लागत निर्माण लागत से अधिक है, वे मकान जीएसटी लागू होने के बाद महंगे हो जाएंगे। अमूमन बड़े आकार के मकानों में जमीन की लागत निर्माण लागत से अधिक होती है। बिल्डर्स का कहना है कि जमीन की लागत में उस प्रकार के टैक्स शामिल नहीं होते हैं, जिन्हें इनपुट क्रेडिट में शामिल किया जा सके।
सरकार के दावे और बिल्डर्स की राय में नहीं है एकरूपता
नरेडको व अन्य बिल्डर्स के विपरीत सरकार का दावा है कि जीएसटी के तहत फ्लैट पर पहले के मुकाबले कम टैक्स लगेगा, जिससे फ्लैट सस्ते हो जाएंगे। सरकार की तरफ से कहा गया है कि फ्लैटों के निर्माण पर कम जीएसटी लगेगा, जबकि मौजूदा व्यवस्था के तहत केंद्र एवं राज्यों के अनेक अप्रत्यक्ष कर इन पर लगाए जाते हैं।
सरकार का कहना है कि जीएसटी के तहत समस्त इनपुट क्रेडिट से 12 फीसदी की मुख्य दर की भरपाई की जा सकेगी। इसके परिणामस्वरूप फ्लैट के दाम में शामिल इनपुट टैक्स को फ्लैट की कुल लागत का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा।
कई बिल्डर 1 जुलाई से पहले मांग रहे हैं पूरा भुगतान
सरकार को यह भी शिकायतें मिली हैं कि निर्माणाधीन फ्लैटों की बुकिंग एवं आंशिक भुगतान कर चुके लोगों से बिल्डर्स यह कह रहे हैं कि वे या तो 1 जुलाई, 2017 से पहले ही पूरा भुगतान कर दें अथवा 1 जुलाई, 2017 के बाद किए जाने वाले भुगतान पर ज्यादा टैक्स अदा करने के लिए तैयार रहें। सरकार का कहना है कि असलियत इसके विपरीत है।