कहीं घर पर तो कहीं सामूहिक होता है त्योहार
इस त्योहार को लेकर मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और उनका सभी लोग स्वागत करते हैं। लोगों की परेशानियों का निवारण होता है और आशीर्वाद भी देते हैं। पहाड़ पर इसे मनाने के अलग-अलग तरीके हैं। जैसे कुल्लू, मंडी और कांगड़ा में लोग इसे घरों में मनाते हैं। यह उनके लिए एक पारिवारिक पर्व के समान है। परिवार के लोग इकट्ठा होते हैं और अपने कुल देवता की पूजा करते हैं। वहीं सोलन और शिमला के तमाम गांवों में इसे सामूहिक तौर पर मनाते हैं। जो लोग मैदान में रहते हैं वे पहाड़ पर जाकर पूजा करते हैं और कुछ लोग मैदान में ही घर पर पूजा करते हैं।
कैसे मनाते हैं त्योहार
इस त्योहार में लोग अपने बड़ों को कुछ न कुछ देते हैं। इसमें दूर्वा और अखरोट के साथ कुछ सूखे मेवे शामिल हैं। लेकिन कहा जाता है कि अखरोट शुभ है। इस दौरान इन्हीं फसलों जैसे मक्कास धान, काकड़ी की शुरुआत भी होती है। घर पर अमरूद, सेब, गलगल, सिल्ला, काकड़ी, छल्ली इन चीजों को लाकर रखा जाता है और इन को सजाकर इनकी पूजा की जाती है। इसके बाद लोग उत्सव मनाते हैं। तरह तरह के पकवान घर में बनते हैं। यह हिमाचली पकवान होते हैं। जैसे ताारियां रोटी, सुहाल, पतरोड़े आदि। लोग भोग चढ़ाते हैं और अखरोट से खेलते भी हैं। रक्षाबंधन पर बांधी राखी भी सैरी माता को चढ़ाई जाती है। दिल्ली में काफी हिमाचल के लोग रहते हैं इसलिए वे फसल की तो पूजा नहीं कर पाते लेकिन अन्य चीजों की करते हैं। इस दौरान उत्सव मनाते हैं, लोग इकट्ठा होते हैं और पकवान बनाते हैं। रात में गाना-बजाना होता है। नई दुल्हन सावन में मायके आकर इस दिन अपने ससुराल जाती हैं। यह एक तरह से प्रकृति पूजा है।
GB Singh
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