हिंदू संस्कार से जुड़ा कर्णछेदन अब बना फैशन, जानिए परंपरा से जुड़े तथ्य

    कर्णछेदन हिंदू धर्म में एक परंपरा और संस्कार से जुड़ा है। जितने भी संस्कार एक मनुष्य के पैदा होने से लेकर उसके अंतिम संस्कार तक में होते हैं उनमें कर्णछेदन भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लेकिन आजकल शरीर के किसी भी अंग को छिदवाना आम हो गया है। लोग अपने कान के साथ ही नाक, भौ, हाथ, जुबान, गला, पेट, नाभि को भी छिदवा रहे हैं। ऐसे में क्या यह संस्कार स्टाइल बन गया है। बॉलीवुड और हॉलीवुड में तो कई एक्टर पियर्सिंग करवा चुके हैं। आइए जानते हैं।

पियर्सिंग का महत्व
हमारे हिंदू धर्म में जन्म संस्कार से लेकर उसके नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णछेदन, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह संस्कार जैसे 16 संस्कार होते हैं। इनमें ही कर्णछेदन भी होता है। जिसमें शिशु के कान को छेदा जाता है। लेकिन आज इस संस्कार का महत्व कम और स्टाइल ज्यादा दिख रहा है। सभी धर्मों के लोग कर्णछेदन करवा रहे हैं। बल्कि कई और अंगों को भी छेद रहे हैं। कर्णछेदन की परंपरा भी हिंदू धर्म में कुछ लोगों में निभाई जाती है। लेकिन हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक इसको शुभ और अशुभ से जोड़ा गया है।

क्या कहता है यह संस्कार
कर्ण छेदने की परंपरा नौवें नंबर पर आती है। हिंदू धर्म में हम जिन अवतार की बात करते हैं वहां भी इस संस्कार को निभाया गया है। उस समय राजाओं के दोनों कर्णों का छेदन होता था। कहते हैं कि कर्णछेदन का वैज्ञानिक महत्व रहा है। जिजसे लोगों के मस्तिष्क तक रक्त का संचार अच्छे से होता है और लोग मेधावी होते हैं। पुरुषों में यह पौरुष गुण और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए अच्छा होता है। इससे चेहरे पर भी एक निखार मिलता है। हालांकि लोग अपने शरीर के अन्य भाग में पियर्सिंग कराते हैं जो खतरनाक माना गया है। लोग जीभ, पेट, भौ में छेद करवाते हैं। इससे यहां संक्रमण का खतरा है। साथ ही शरीर में नुकसान भी होता है। इसलिए शरीर के अन्य हिस्से में पियर्सिंग करवाने से  बचना चाहिए।

GB Singh

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