ज्येष्ठ माह में कई तरह के व्रत और त्योहार पड़ेंगे। इसी रंभा तृतीया का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से सुहागिनों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस बार रंभा जयंती का व्रत दो जून को होगा। यह व्रत ज्येष्ठ मास में तृतीया तिथि में मनाई जाती है। इस दिन विधि विधान से अगर पूजा की जाए तो काफी अच्छा होगा। आइए जानते हैं।
क्यों होती है रंभा जयंती पर पूजा
ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को व्रत होता है। इस बार रंभा जयंती दो जून को है। कहा जाता है कि रंभा अप्सरा होने के नाते इनके कई नाम से भी पूजा होती है। उनकी पूजा से लोगों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत न केवल सौभाग्य के लिए बल्कि प्रेम के लिए और संबंधों में मधुरता के लिए भी किया जाता है। महिलाओं के लिए यह काफी अच्छा होता है। क्योंकि रंभा की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी इसलिए इनका महत्व ग्रंथों में है।
कैसे करें रंभा जयंती पर पूजा
रंभा जयंती को रंभा तीज भी कहते हैं। इस दिन पूजा करने से पहले सुबह उठकर स्नान करें और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठकर सूर्य देव की तरफ दीप जलाएं। सुहागिन महिलाएं माता लक्ष्मी और सती की पूजा करें। साथ ही अप्सरा की पूजा करें। कई लोग चूड़ियों को भी रंभा के प्रतीक के रूप में पूजते हैं। साथ ही रंभोत्कीलन यंत्र की भी पूजा होती है। चंदन, फूल, फल अर्पण करके गुलाबी चावलों को चढ़ाते हैं और प्रार्थना करते हैं। मंत्रों का जाप भी करें। इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को आशाीर्वाद मिलता है और कुंवारी महिलाएं वर पा सकती हैं।
GB Singh