इस बार अयोध्या में सरयू के तट पर मनाई जाने वाली दीवाली के मौके पर दीयों का कीर्तिमान बनाने की चर्चा है। रामलला की धरती इस बार छत्तीसगढ़ के गोबर से बने दीयों से रौशन होगी। गोबर और मिट्टी से बने दीये न सिर्फ इकोफ्रेंडली होते हैं, बल्कि स्वरोजगार के लिए भी एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं, क्योंकि पाटरी आज सिर्फ मिट्टी के दीयों तक ही सीमित नहीं है। मिट्टी से तमाम तरह की कलाकृतियां बनाकर अच्छी कमाई की जा सकती है। आइये जानें आप भी पाटरी में अपना स्वरोजगार किस तरह आगे बढ़ा सकते हैं…
ऐसे बढ़ाया कदम
दीप्ति बताती हैं कि जब पाटरी में उनकी दिलचस्पी जगी तो उन्होंने इसके बारे में और ज्यादा पढ़ने और सीखने की कोशिश शुरू की। इसके लिए कुछ कोर्स भी किए और फिर अपने घर के ही एक कमरे में अपना एक स्टूडियो खोला। शुरू में उन्होंने मिट्टी से बने दीये और शो पीसेज बनाने शुरू किए। जब लोगों का अच्छा रिस्पांस मिलने लगा, तो वह इसे उनकी मांग के अनुसार बनाने लगीं। इंटरनेट मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाट्सएप और यूट्यूब आदि) के जरिये अब वह लोगों को न सिर्फ अपने प्रोडक्ट के बारे जागरूक करती हैं, बल्कि बच्चों, किशोरों, हाउसवाइफ, प्रोफेशनल्स और आर्ट टीचर्स को भी इसे सीखने के लिए प्रेरित करती हैं, उन्हें उनकी सुविधानुसार सिखाती भी हैं।
यहां से सीखें
पाटरी और सेरेमिक के आइटम्स की मांग आजकल कमोबेश हर छोटे-बड़े शहर में है। इसलिए ये हर शहर, कस्बे, गांव में बन भी रहे हैं और तमाम पोर्टल्स, शोरूम्स या एग्जिविशंस में डिजाइनर्स दीयों और सजावटी वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। यदि आप भी मिट्टी और गोबर से बनने वाले दीयों और लुभावने डिजाइनर सामानों में दिलचस्पी रखते हैं और इसे सीख कर इसमें आगे बढ़ना चाहते हैं, तो अपने शहर में जहां भी ये बनते हैं या जो लोग इसकी ट्रेनिंग दे रहे हैं, वहां से इसे सीख सकते हैं।
दीप्ति भी अपने स्टूडियो में लोगों को सिखाने के लिए इंट्रोडक्टरी कोर्स (एक माह), बेसिक कोर्स (तीन माह), एडवांस कोर्स (छह से 12 माह) के रूप में चार साल के बच्चे से लेकर युवाओं, गृहणियों और कामकाजी पेशेवर्स को इसकी ट्रेनिंग देती हैं, जिसमें वह चाक, भट्टी, क्ले तैयार करने की विधि से लेकर तमाम चीजें लोगों को बनाना सिखाती हैं। वैसे, आप चाहें तो यूट्यूब के जरिये भी पाटरी और सेरेमिक्स में अपनी स्किल बढ़ा सकते हैं।
कमाई के अच्छे मौके
पाटरी और सेरेमिक से डेकोरेटिव आइटम बनाने की कला सीखकर आप कई तरह से अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। इसके आइटम बनाकर बेचने के अलावा, एग्जिबिशन आदि लगा सकते हैं, जहां लोगों को आपके आइटम की जानकारी होने पर ज्यादा से ज्यादा लोग इसे खरीदने के लिए आगे आ सकते हैं। इसके अलावा, पाटरी आर्ट सीखकर आप भी दीप्ति गुप्ता की तरह अपना स्टूडियो खोल सकते/सकती हैं, जहां इस तरह के आइटम बनाकर बेचने के अलावा, बच्चों, किशोरों या पेशेवरों को इसे सिखा सकते हैं।
आजकल हर जगह हाबी के तौर पर पॉटरी सीखने का काफी क्रेज भी देखा जा रहा है। बच्चे जहां इसे शौकिया तौर पर सीख रहे हैं, वहीं तमाम कारपोरेट कंपनियों में काम रहे प्रोफेशन;ल्स अपना स्ट्रेस दूर करने के लिए, कुछ क्रिएटिव करने की चाह में इसे सीखना पसंद करते हैं। बड़ी संख्या में गृहणियां भी इसे सीखने के लिए आगे आ रही हैं, ताकि वे खुद दीपावली, गणेश उत्सव जैसे मौकों पर खुद से अपने लिए दीये, मूर्तियां और अन्य सजावटी सामान बना सकें।
अगर आप आर्ट टीचर हैं, तो पाटरी सीखकर न सिर्फ अपनी स्किल बढ़ा सकते/सकती हैं, बल्कि स्कूल-कालेजों में अपने स्टूडेंट्स को यह सिखा भी सकते हैं। कारपोरेट कंपनियों में आजकल ऐसे आर्टिस्ट की बड़ी मांग देखी जा रही है, जो कंपनियों में जाकर उनके कर्मचारियों को प्रशिक्षण देते हैं। कुल मिलाकर, यह आपके जुनून, शौक और मेहनत पर निर्भर करता है कि इसे आप किस तरह से करियर के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। फिलहाल, इसमें कमाई की कोई सीमा नहीं है। अपने इनोवेटिव आइडिया से, क्रिएटिविटी से पाटरी/सेरेमिक्स में आप भी हर महीने दो से ढाई लाख रुपये तक कमा सकते हैं।
लागत और संसाधन
पाटरी का व्यवसाय शुरू करने के लिए कम से कम आपके पास एक कमरे की जगह होनी चाहिए या फिर आप किराये पर भी कोई जमीन लेकर यह शुरू कर सकते हैं, जहां आपको अपना स्टूडियो बनाने के लिए भट्टी, चाक, सांचा, क्ले, बने आइटम को रखने की जगह जैसे संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी। ये सभी चीजें खरीदने और स्टूडियो को चलाने के लिए लगभग चार से पांच लाख रुपये चाहिए। अगर आप चाहें, तो दीप्ति गुप्ता की तरह अपने घर की छत पर ही एक टीनशेड डालकर उसे एक स्टूडियो का रूप दे सकते हैं, जहां आप क्ले यानी मिट्टी बने शो पीसेज और मग, कप, बोल, प्लैेटर आदि उपयोगी आइटम बनाकर कमाई कर सकते हैं और लोगों को वहीं पर लाइव तरीके से सिखा भी सकते हैं।