संक्रांति के महत्व को हिंदू धर्म में लोग भली भांति जानते हैं। हर साल विशेष संक्रांति पड़ती है। संक्रांति को सूर्यदेव की राशि बदलने से भी जानते हैं। सूर्य जिस राशि में जाएंगे उसे संक्रांति कहेंगे। वैसे तो जनवरी में पड़ने वाली मकर संक्रांति सबसे बड़ी होती है लेकिन ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली संक्रांति को मिथुन संक्रांति कहते हैं और यह भी काफी खास है। आइए जानते हैं कैसे करें पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त।
कब करें पूजा
इस बार 15 जून को सूर्य मिथुन राशि में जा रहे हैं। इसलिए इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है। साल भर कुल 12 संक्रांति होती है और सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्र में विराजते हैं। यह दिन सूर्य देवता को समर्पित है और इसकी पूजा विधि से करना जरूरी है। मकर संक्रांति की तरह की इस दिन भी स्नान और दान करने का खासा महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन से वर्षा शुरू हो जाती है, जैसे मकर संक्रांति से सर्दी कम होना शुरू होती है। 15 जून को दोपहर में 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू होकर यह शाम को सात बजकर 20 मिनट तक पूजाकाल रहेगा। महापुण्य काल दोपहर में उसी समय से लेकर ढाई बजे तक रहेगा।
संक्रांति का पर्व कैसे मनाएं
संक्रांति के पर्व को मनाने के लिए सुबह ही उठना होगा और स्नान करके आपको दान की तैयारी करनी होगी। इसी दिन सिलबट्टे की भी पूजा होती है। सिलबट्टे को धरती का रूप माना गया है इसलिए इस दिन लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। साथ ही सिलबट्टे को जल से और दूध से नहलाते हैं। इसलिए कभी सिलबट्टे पर पैर लग जाता है तो लोग उसे प्रणाम करते हैं। सिलबट्टे को फूल और सिंदूर लगाते हैं। इस दिन गेहंू और घी का दान करना चाहिए। अगर गेहूं न हो तो कोई भी अनाज दान कर सकते हैं।
GB Singh