तीन साल के मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान रेल मंत्रालय की सबसे बड़ी चुनौती भारतीय रेल की औसत रफ्तार को मौजूदा 80 किलोमीटर प्रति घंटा से बढ़ाकर पहले 170 किलोमीटर करने की थी. इस कीर्तिमान से भारतीय रेल की यात्री और माल ढुलाई क्षमता में इजाफा करने के साथ-साथ उसे 300 किलोमीटर की रफ्तार पर बुलेट दौड़ाने के लिए तैयार करने की थी. लेकिन रफ्तार की इस कवायद में रेलवे के सामने सुरक्षा की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई जिसके चलते मोदी सरकार को रेल मंत्री सुरेश प्रभु का विकल्प देना पड़ा.गाजीपुर सेनेटरी लैंडफिल हादसे में मृतकों के परिजनों को मिलेगा एक-एक लाख का मुआवजा
गौरतलब है कि मोदी सरकार के अबतक के सबसे अहम कैबिनेट विस्तार के बाद रेल मंत्री सुरेश प्रभू ने ट्वीट कर रेल मंत्रालय के अपने 13 लाख से अधिक साथियों को बधाई देते हुए साफ संकेत दिया कि रेल मंत्रालय से उनका जाना तय है. लिहाजा, अब रेल मंत्री के तौर पर मोदी सरकार एक नए चेहरे को सामने लाने जा रही है. वहीं एक बात यह भी साफ हो चुकी है कि सुरेश प्रभु को नए मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जाएगी.
गौरतलब है कि भारतीय रेल की सबसे बड़ी चुनौती को पूरा करने के लिए जहां अपने कार्यकाल के दौरान रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गतिमान एक्सप्रेस को 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दिल्ली से आगरा तक दौड़ाया वहीं दिल्ली से मुंबई तक के सफर को 12 घंटे में पूरा करने के लिए टाल्गो का सफल परीक्षण भी किया. टाल्गो ने दिल्ली से मुंबई के सफर को राजधानी एक्सप्रेस से भी 4 घंटे कम समय में पूरा कर रेल मंत्रालय को अपनी रफ्तार बढ़ाने में अहम दिशा दी है. लेकिन इस कोशिश को धक्का भी बीते महीने हुए तीन रेल हादसों से लगा जिसने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा किया कि क्या बुलेट ट्रेन दौड़ाने की कवायद में रेल मंत्रालय ने सुरक्षा के मापदंड को दरकिनार कर दिया.
बीते तीन साल के दौरान मंत्रालय में किसी बड़े बदलाव का इंतजार अभी तक किया जा रहा है. इसी कोशिश में रेल मंत्रालय को मौजूदा वित्त वर्ष से वार्षिक बजट बनाने की जिम्मेदारी लेकर सीधे वित्त मंत्रालय को दे दी गई. इसके बावजूद भारतीय रेल को ट्रैक पर लाने की कोई भी कोशिशों रंग लाती नहीं दिख रही है. बीते कुछ महीनों से हो रहे रेल हादसे और दिन प्रति दिन खराब होती यात्री सुविधाओं से मोदी सरकार दबाव में हैं कि वह रेल को नया मंत्री दें नहीं 2022 के टार्गेट से पहले 2019 के चुनावों में उसकी साख पर बट्टा लगा रहेगा.
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रेल की हकीकत वेटिंग टिकट
देश डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है. मोदी सरकार भी कैशलेस अर्थव्यवस्था पर जोर दे रहा है. लेकिन जब आप रेल का टिकट बुक करने बैठते हैं तो बहुत ही भाग्यशाली किस्म के लोगों के हाथ ही कंफर्म टिकट आता है. अधिकतर लोग वेटिंग टिकट ही बुक कर पाते हैं और यात्रा के अंतिम दौर तक पीएनआर स्टेटस चेक करते रहते हैं. इसके सुधार के लिए कुछ योजना रेलवे ने चलाई खासकर ‘डायनमिक फेयर’ और तत्तकाल टिकट.
तत्काल टिकट पर लाख पाबंदियों के बावजूद आसानी से टिकट हासिल करना टेढ़ी खीर है जबकि डायनमिक फेयर प्रणाली में यह आसान है. लेकिन यह इतना महंगा है कि आम आदमी के लिए मुफीद नहीं लगता. जेटली आपसे अनुरोध है कि कोई ऐसी योजना लाएं कि आम आदमी भी इमरजेंसी में रेलवे की बेहतर सुविधा का इस्तेमाल कर सके.
यात्रियों की भीड़
भारतीय रेल से देश में करीब 2.5 करोड़ लोग प्रतिदिन सफर करते हैं. यही वजह है कि आप को रेल यात्रा के हर मौके पर भीड़ ही भीड़ देखने को मिलती है. सबसे पहले टिकट काउंटर पर, वेटिंग रूम में, ट्रेन में सवार होने के लिए (खासकर जनरल डिब्बे), फूड स्टॉल पर, पीने वाले पानी के लिए नलों तक लंबी-लंबी लाइन लगी रहती है. इस भीड़ को खत्म करने के लिए जरूरत पूरे रेल ढ़ांचे को बदलने की थी लेकिन सुरेश प्रभु के अभीतक के कार्यकाल में इसकी शुरुआत नहीं की जा सकी है.
ट्रेन की खस्ताहाल सुविधाएं
ट्रेन में आप चढ़ गए और अगर आप का टिकट वातानुकूलित श्रेणी का नहीं है तो आप सफर नहीं बल्कि ‘सफर’ करते हैं. वजह है पुराने डिब्बे, सीटों के नीचे गंदगी और गंदे टॉयलेट. आपको यहां यह भी बता दें कि भारतीय ट्रेनों में 1909 में पहली बार टॉयलेट का इस्तेमाल शुरू हुआ था.
स्टेशन से बदलेगी रेल की तस्वीर
भारत के रेलवे स्टेशन (आईएसओ प्रमाणित कुछ स्टेशनों को छोड़) ऐसी जगह होती है जहां आप तभी जाना चाहेंगे जब आपकी मजबूरी हो. स्टेशन की पार्किंगों में गाड़ियों का और निकास-प्रवेश गेट पर जन समूह का कब्जा रहता है. इसके अलावा कोनों में जो गंदगी का अंबार लगा रहता है वह अलग. स्टेशन पर पूछताछ काउंटर पर लगे बोर्ड ठंड के दिनों में लोगों को हताश करते रहते हैं. इसके अलावा खाने-पीने की चीजों में भी यात्री खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.
सुरक्षित रेल यात्रा
पिछले दिनों हुए ताबड़तोड़ रेल हादसों के बाद आमजन में ‘असुरक्षित रेल’ की छवि बनती नजर आई है. आमजन सोशल मीडिया पर अपील कर चुका है कि बुलेट ट्रेन से पहले सुरक्षित ट्रेन भारत में आए. इसके लिए रेलवे को ठोस कदम उठाने की जरूरत है.