नई दिल्ली : शिवरात्री से पहले हिमालय के क्षेत्र में आने वाले पटनीटॉप में महादेव का महादेव का त्रिशूल मिला है। इस त्रिशूल को देखते ही लोग इसका दर्शन करने के लिए दौड़ पड़े हैं।

जम्मू से 120 किलो मीटर दूर तथा समुद्र तल से 1225 मीटर की ऊंचाई पर, पटनीटॉप के पास सुध महादेव (शुद्ध महादेव) का मंदिर स्तिथ है। यह मंदिर शिवजी के प्रमुख मंदिरो में से एक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पर एक विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े जमीन में गड़े हुए हैं जो कि पौराणिक कथाओ के अनुसार स्वंय भगवान शिव के हैं।
इस मंदिर से कुछ दुरी पर माता पार्वती की जन्म भूमि मानतलाई है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2800 वर्ष पूर्व हुआ था जिसका की पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पूर्व एक स्थानीय निवासी रामदास महाजन और उसके पुत्र ने करवाया था। इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग, नंदी और शिव परिवार की मुर्तियां हैं।
पुराणों की कहानी के अनुसार माता पार्वती नित्य मानतलाई से इस मंदिर में पूजन करने आती थी । एक दिन जब पार्वती वहां पूजा कर रही थी तभी सुधान्त राक्षस, जो कि स्वंय भगवान शिव का भक्त था, वहां पूजन करने आया। जब सुधान्त ने माता पार्वती को वहां पूजन करते देखा तो वो पार्वती से बात करने के लिए उनके समीप जाकर खड़े हो गया।
जैसे ही माँ पार्वती ने पूजन समाप्त होने के बाद अपनी आँखें खोलीं तो वो एक राक्षस को अपने सामने खड़ा देखकर घबरा गईं।
घबराहट में वो जोर जोर से चिल्लाने लगीं। उनकी ये चिल्लाने की आवाज़ कैलाश पर समाधि में लीन भगवान शिव तक पहुंची। महादेव ने पार्वती की जान खतरे में जान कर राक्षस को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका। त्रिशूल आकर सुधांत के सीने में लगा।
उधर त्रिशूल फेंकने के बाद शिवजी को ज्ञात हुआ कि उनसे तो अनजाने में बड़ी गलती हो गई। इसलिए उन्होंने वहां पर आकर सुधांत को पुनः जीवन देने की पेशकश की पर दानव सुधान्त ने इससे यह कह कर मना कर दिया कि वो अपने इष्ट देव के हाथों से मरकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है।
भगवान ने उसकी बात मान ली और कहा कि यह जगह आज से तुम्हारे नाम पर सुध महादेव के नाम से जानी जाएगी। साथ ही उन्होंने उस त्रिशूल के तीन टुकड़े करकर वहां गाड़ दिए जो की आज भी वही हैं। मंदिर परिसर में एक ऐसा स्थान भी है जिसके बारे में कहा जाता है की यहाँ सुधान्त दानव की अस्थियां रखी हुई हैं।
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